अंकिव बैसोया को दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (डूसू) अध्यक्ष बने बस दो महीने ही हुए थे और उन्हें अपने पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा। बैसोया के डूसू अध्यक्ष चुने जाने के चार दिन बाद ही सोशल मीडिया पर एक चिट्ठी वायरल हुई थी (देखें नीचे) जिसके अनुसार बैसोया ने डीयू में एडमिशन लेते वक़्त जो सर्टिफ़िकेट दिया था, वह फ़र्ज़ी था। जब इस मामले ने तूल पकड़ा तो तमिलनाडु के वेल्लोर स्थित तिरुवल्लुवर विश्वविद्यालय ने 3 अक्टूबर तमिलनाडु राज्य सरकार को लिए एक पत्र में इस बात की पुष्टि की कि डूसू के अध्यक्ष अंकिव बैसोया कभी उसके छात्र नहीं रहे। इससे पहले बैसोया ने दावा किया था कि उन्होंने साल 2013 से 2016 के बीच तिरुवल्लुवर विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन की पढ़ाई की थी। यह बात 3 अक्टूबर की थी। यानी 3 अक्टूबर को एबीवीपी को पता चल गया कि बैसोया ने फ़ेक सर्टिफ़िकेट दिया था। लेकिन तब उसने कोई कार्रवाई नहीं की। उसने कार्रवाई की उसके एक महीने और 12 दिन के बाद।आख़िर क्यों एबीवीपी ने इतना समय लिया? क्या कारण था कि 14 नवंबर के बाद ही एबीवीपी ने उन्हें संगठन से बाहर कर दिया और अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा देने को कहा। कारण हम आपको नीचे समझाते हैं।
सोशल मीडिया में वायरल तिरुवल्लुवर विश्वविद्यालय की ओर से जारी कथित पत्र।
दो महीने बाद नहीं हो सकते चुनाव
डूसू चुनाव 13 सितंबर को हुए थे। एबीवीपी की कोशिश थी कि चुनाव के बाद कम से कम दो महीने तक अंकिव के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई न हो क्योंकि लिंगदोह कमिटी की सिफ़ारिशों के अनुसार दो महीने बाद छात्रसंघ के चुनाव फिर से नहीं कराए जा सकते। अगर अंकिव के ख़िलाफ़ पहले कार्रवाई होती और रिक्त हुए अध्यक्ष पद पर फिर से चुनाव हो जाता तो हो सकता था कि एबीवीपी फ़र्ज़ी डिग्री मामले के कारण हार जाती। अब चुनाव के दो महीने पूरे होने के बाद अध्यक्ष पद के लिए कोई नया चुनाव नहीं हो सकेगा मगर एबीवीपी को ही अध्यक्ष पद की कार्यवाहक ज़िम्मेदारी मिलती क्योंकि उपाध्यक्ष पद उसके पास है। इसलिए उसने जानबूझ कर कार्रवाई करने में देरी की और दो महीने पूरे होने का इंतज़ार किया।
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