डीएमके सांसद ए. राजा ने अलग तमिलनाडु की मांग करते हुए पेरियार का नाम लिया। मौजूदा दौर की युवा पीढ़ी को पेरियार के बारे में जानना चाहिए कि आखिर वो कई दशक बाद आज भी भारतीय राजनीति की महत्वपूर्ण शख्सियत क्यों बने हुए हैं। पेरियार भारतीय राजनीति में आज भी एक ऐसा व्यक्तित्व हैं, जिन पर आने वाली सदियां चर्चा करती रहेंगी।
तमिलनाडु में 1879 में जन्मे ई.वी. रामास्वामी पेरियार को तमिलों की पहचान और आत्मसम्मान आंदोलन के लिए याद किया जाता है। उन्होंने अलग द्रविड़ मातृभूमि यानी अलग तमिलनाडु की परिकल्पना की। इसी के नाम से राजनीतिक दल, द्रविड़ कड़गम (डीके) का शुभारंभ किया।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक पेरियार ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत अपने गृहनगर इरोड में कांग्रेस कार्यकर्ता के रूप में की थी। लेकिन कांग्रेस में बढ़ते ब्राह्मणवाद की वजह से वो कांग्रेस से बाद में अलग हो गए।
ब्राह्मणवाद का विरोध
तिरुनेलवेली के पास एक स्कूल गुरुकुलम में ब्राह्मण और गैर-ब्राह्मण छात्रों के लिए अलग-अलग भोजन के सवाल पर उनका महात्मा गांधी से विवाद हुआ। माता-पिता के अनुरोध पर, कांग्रेस नेता वीवीएस अय्यर ने ब्राह्मण छात्रों के लिए अलग भोजन की व्यवस्था की थी, जिसका पेरियार ने विरोध किया था। गांधी ने एक समझौता प्रस्तावित किया, यह तर्क देते हुए कि एक व्यक्ति के लिए दूसरे के साथ भोजन नहीं करना पाप नहीं हो सकता है। पेरियार ने इस समझौते को मानने से इनकार कर दिया।1924 के वैकोम सत्याग्रह के दौरान पेरियार की प्रसिद्धि तमिल क्षेत्र से बाहर फैल गई। दरअसल, निचली जाति के लोगों को उस समय प्रसिद्ध वैकोम मंदिर के सामने की सड़क का इस्तेमाल करने का अधिकार नहीं था। उस सड़क से सिर्फ ब्राह्मण और अन्य कथित उच्च जाति वाले गुजर सकते थे। पेरियार ने इसके विरोध में अपनी पत्नी के साथ आंदोलन में भाग लिया और दो बार गिरफ्तार हुए। उनके आंदोलन का नतीजा था कि उस सड़क को सभी जातियों के खोला गया। उस सड़क पर ब्राह्मणों का एकाधिकार खत्म हो गया। इस घटना ने उन्हें वैकोम के नायक के रूप में दर्जा दिलाया। पेरियार का इतिहास पढ़ें तो इस घटना का उल्लेख गौरवपूर्वक मिलता है।
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आर्य ब्राह्मणों ने तमिल क्षेत्र में जाति का आयात किया था, जो संस्कृत बोलते थे और उत्तरी भारत से आए थे।
-पेरियार, (इंडियन एक्सप्रेस से)
जस्टिस पार्टी से जुड़े
कांग्रेस को अपने दृष्टिकोण से मोड़ने में नाकाम रहने के बाद, पेरियार ने 1925 में पार्टी से इस्तीफा दे दिया, और खुद को जस्टिस पार्टी और आत्मसम्मान आंदोलन से जोड़ लिया, जिसने सामाजिक जीवन, विशेष रूप से नौकरशाही में ब्राह्मणों के प्रभुत्व का विरोध किया। जस्टिस पार्टी ने एक दशक पहले नौकरशाही में गैर-ब्राह्मणों के लिए आरक्षण की वकालत की थी और मद्रास प्रेसीडेंसी में सत्ता में आने के बाद इसे लागू करने का आदेश जारी किया था।कई दशक पहले पेरियार के विचार महिलाओं को लेकर क्या थे, उसे भी पढ़ा जाना चाहिए। आज जब भारत में महिलाएं तमाम आंदोलनों की अगुआ हैं तो दशकों पहले पेरियार क्या सोचते थे -
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महिलाओं को स्वतंत्र होने की जरूरत है, न कि केवल बच्चे पैदा करने वाली बनकर रह जाएं। उन्हें रोजगार में समान हिस्सेदारी की अनुमति दी जाए।
-पेरियार (इंडियन एक्सप्रेस से)
आत्म सम्मान आंदोलन के जरिए उन्होंने बिना रस्मों वाली शादियों को बढ़ावा दिया। संपत्ति के साथ-साथ महिलाओं के लिए तलाक के अधिकारों को भी मंजूरी दिलाई। उन्होंने लोगों से अपील की कि वे अपने नाम में जाति लिखना छोड़ दें और जाति का उल्लेख न करें। उन्होंने 1930 के दशक में सार्वजनिक सम्मेलनों में दलितों द्वारा पकाए गए भोजन के साथ लोगों को भोजन करने का आंदोलन छेड़ा।
हिन्दी का विरोधः 1930 के दशक में, जब कांग्रेस शासित केंद्र सरकार के एक मंत्रालय ने हिंदी को लागू किया, तो उन्होंने इसका विरोध करते हुए इसे तमिल पहचान और स्वाभिमान पर हमला बताया। उनके तहत चला द्रविड़ आंदोलन जाति के खिलाफ संघर्ष और तमिल राष्ट्रीय पहचान का दावा बन गया।
पेरियार एक विचारधारा है
94 साल की उम्र में पेरियार का निधन 1973 में हुआ था लेकिन उन्होंने ब्राह्मणवाद के खिलाफ एक सशक्त आंदोलन खड़ा कर दिया। तमिलों की मौजूदा पीढ़ी के दौर में वो एक विचारधारा बन चुके हैं। ओबीसी के लोग भी उन्हें अपना नेता मानते हैं। सामाजिक न्याय के ऊपर उन्होंने किताबें लिखीं और व्याख्यान दिए जो इस दौर में बहुत बड़ा दस्तावेज है।
सीएन अन्नादुराई किसी समय पेरियार के सबसे प्रिय शिष्यों में थे। लेकिन उनके बीच अलग तमिलनाडु को लेकर मतभेद पैदा हुए। पेरियार इसे तमिलनाडु की अस्मिता से जोड़ते थे तो अन्नादुराई इसके जरिए सत्ता पाने का सपना देख रहे थे। वही हुआ। अन्नादुराई ने 1949 में डीएमके पार्टी स्थापित कर दी। डीएमके सत्ता में आई। डीएमके और एआईएडीएमके से निकलकर तमाम कद्दावर नेता तमिलनाडु की राजनीति में छाए रहे हैं। एमजी रामचंद्रन, एम करुणानिधि, जयललिता से लेकर स्टालिन तक उसकी ताजा मिसाल हैं। बहरहाल, हालात ये हैं कि तमिलनाडु में डीएमके और एआईएडीएमके सत्ता में आती-जाती रहती हैं लेकिन ये दोनों ही खुद को पेरियार के विरासत की पार्टियां बताती हैं। तमिलनाडु में पेरियार के बिना राजनीति की कल्पना मुश्किल है। पेरियार एक विचार-एक आंदोलन है।
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