कोरोना संक्रमण सबसे पहले जब चीन में और फिर दूसरे देशों में फैला था तो भारत के लिए सबक़ था, तैयार रहना चाहिए था। समय पर तैयारी नहीं की तो इसका असर भी क़रीब-क़रीब सबसे ज़्यादा झेला। अब यूरोप में जब दूसरी लहर है तो भी भारत के लिए सबक़ है और इससे निपटने के लिए पूर्व तैयारी की ज़रूरत है। यह इसलिए कि यूरोप में संक्रमण कम हुआ तो लोगों ने ढिलाई बरती थी। अब यही भारत में हो रहा है। बड़ी मुश्किल से भारत में 24 घंटे में संक्रमण के मामले 50 हज़ार से कम आए हैं। जुलाई के बाद पहली बार ऐसा हुआ है। पहले हर रोज़ संक्रमण के मामले क़रीब 98 हज़ार तक पहुँच गए थे। यूरोप से सबक़ इसलिए भी लेना चाहिए क्योंकि त्योहार का मौसम है और प्रदूषण बढ़ने से भी संक्रमण के फैलने की आशंका जताई गई है। यानी सावधानी हटी दुर्घटना घटी! तो यूरोप में ऐसा क्या हो गया है कि यह हमारे लिए एक तरह की चेतावनी है?
यूरोप फिर से कोरोना की चपेट में है। यानी महाद्वीप में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर शुरू हो गई है। कई देशों में लॉकडाउन लगाना पड़ा है, स्कूल, बार-रेस्तराँ बंद करने पड़े हैं। कई जगहों पर आपात स्थिति घोषित करनी पड़ी है। अब फिर से लोगों में डर का माहौल है। ऐसा उन देशों में है जहाँ कोरोना संक्रमण फैलना बेहद कम हो गया था।
उन देशों में स्थिति इतनी सुधर गई थी कि कुछ देशों में स्कूल-कॉलेज, बार-रेस्तराँ आदि तक खोल दिए गए और कई देशों में स्कूलों को खोलने की बात होने लगी थी। लोग सामान्य ज़िंदगी जीने लगे थे और लोगों ने मास्क उतार फेंका था और सार्वजनिक जगहों पर उस तरह की एहतियात नहीं बरती गई जिस तरह की कोरोना को फैलने से रोकने के लिए होनी चाहिए। यानी लोगों ने ढिलाई बरतनी शुरू कर दी थी। इसी बीच अब संक्रमण की दूसरी लहर आ गई है।
यूरोप में संक्रमण से हालात ऐसे हो गए हैं कि विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ ने चेताया है कि यदि संक्रमण का मामला कम आना शुरू नहीं हुआ तो यूरोप के कई शहरों में आने वाले हफ़्तों में आईसीयू यानी इंटेंसिव केयर यूनिट में क्षमता से ज़्यादा मरीज़ आ सकते हैं। यह वह स्थिति है जब इटली और स्पेन में मार्च महीने में संक्रमण के इतने मामले आ गए थे कि अस्पतालों में जगह कम पड़ गई थी। मार्च महीने के पहले पखवाड़े में न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, इटली के एक शहर के मेयर ने शिकायत की थी कि डॉक्टरों को जबरन यह कहा गया है कि ज़्यादा बुजुर्ग लोगों का इलाज नहीं किया जाए और उन्हें मरने दिया जाए। एक अन्य शहर से रिपोर्ट आई थी कि कोरोना वायरस से पीड़ित लोगों में न्यूमोनिया होने के बाद उन्हें घर भेजा जा रहा था। विकसित देशों में गिने जाने वाले इटली की ऐसी हालत क्यों थी? यह वह इटली है जहाँ की स्वास्थ्य सुविधाएँ दुनिया के उत्कृष्ट देशों की तरह गिनती की जाती हैं।
संक्रमण के पहले दौर से सबक लेने की बात जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल भी कर रही हैं। उन्होंने जर्मनी वासियों से आग्रह किया है कि वे इस लड़ाई में साथ आएँ ताकि जिस तरह साथ मिलकर बसंत ऋतु में कोरोना को नियंत्रित किया था उसी तरह सर्दियों में भी प्रयास किया जाए।
इस बीच फ़्रांस की राजधानी पेरिस और आठ अन्य महानगरीय क्षेत्रों में रात 9 बजे से सुबह 6 बजे तक कर्फ्यू लगाया जा रहा है। फ्रांस में आपात स्थिति घोषित की गई है। इंग्लैंड में फिर से लॉकडाउन करने की माँग हो रही है। इंग्लैंड में विपक्षी दल लेबर पार्टी और मेडिकल के विशेषज्ञ बोरिस जॉनसन से आग्रह कर रहे हैं कि देश में दो हफ़्ते का लॉकडाउन लगाया जाए। स्पेन के कुछ हिस्सों में बार और रेस्तराँ फिर से 15 दिन के लिए बंद किए जाएँगे। चेक में स्कूल और बार बंद कर दिए गए।
पूरे यूरोप में औसत रूप से हर रोज़ क़रीब एक लाख संक्रमण के मामले आने लगे हैं। अब सिर्फ़ यूरोप में ही दुनिया के एक-तिहाई संक्रमण के मामले आने लगे हैं।
यूरोप के इन देशों में कोरोना के मामले अब काफ़ी ज़्यादा आने लगे हैं। फ्रांस में अब हर रोज़ 22 हज़ार से ज़्यादा, इंग्लैंड में क़रीब 20 हज़ार, स्पेन में क़रीब 12 हज़ार, इटली में 8 हज़ार, जर्मनी में 6 हज़ार, नीदरलैंड्स में 7 हज़ार और बेल्जियम में 7 हज़ार मामले आ रहे हैं। दूसरे देशों में भी ऐसी ही स्थिति है। ये वे देश हैं जहाँ संक्रमण के मामले काफ़ी कम हो गए थे। फ़्रांस में एक समय ऐसी स्थिति आ गई थी कि संक्रमण के मामले हर रोज़ सिर्फ़ ढाई सौ आ रहे थे। मई से लेकर जुलाई तक स्थिति नियंत्रण में थी लेकिन बाद में संक्रमण के मामले धीरे-धीरे बढ़ते गए। ऐसी ही स्थिति इंग्लैंड में थी। वहाँ हर रोज़ संक्रमण के मामले कम होकर क़रीब 500 के आसपास हो गए थे। स्पेन में नये संक्रमण के मामले घटकर 200 से भी कम हो गए थे।
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