कोरोना टीका खरीदने की ज़िम्मेदारी राज्यों पर डाल देने के केंद्र सरकार के फ़ैसले के बाद जो निविदाएँ जारी की गईं, उनमें टीका बनाने वाली कंपनियों ने दिलचस्पी नहीं ली। उनमें दिलचस्पी ली खाद्य प्रसंस्करण, फ़ैशन बाज़ार, मैनेजमेंट कंसलटेंसी जैसे असंबद्ध क्षेत्रों की कंपनियों ने। लेकिन कोरोना टीका बनाने वाली कंपनियों ने कहा है कि उन्होंने किसी को एजेंट नियुक्त नहीं किया है।
सवाल यह है कि ये बिचौलिए क्यों और कहाँ से आ गए? टीका बनाने के क्षेत्र में नहीं होने की वजह से ये दूसरी कंपनियों से खरीद कर ही टीके की आपूर्ति करेंगी।
ऐसा क्यों नहीं हो सकता कि केंद्र सरकार सीधे टीका बनाने वाली कंपनियों से टीका खरीदे?
क्या है मामला?
'इंडियन एक्सप्रे'स के अनुसार, महाराष्ट्र सरकार ने पाँच करोड़ और बृहन्मुंबई म्युनिसपल कॉरपोरेशन (बीएमसी) ने एक करोड़ कोरोना टीका के लिए निविदाएँ जारी कीं, उन निविदाओं के 'एक्सप्रेशन ऑफ़ इंटरेस्ट' यानी शुरुआती प्रक्रिया में जिन कंपनियों ने दिलचस्पी ली, उनमें किसी कंपनी के पास टीका बनाने का कोई अनुभव नहीं है।
यही हाल दूसरे राज्यों की निविदाओं के साथ भी हुआ है।
महाराष्ट्र सरकार की निविदा में आठ कंपनियों ने दिलचस्पी ली, उमें से पाँच कंपनियाँ फ़ैशन, कपड़े, आयात-निर्यात के क्षेत्र में हैं या कमीशन एजेंट के रूप में काम करती हैं।
फैशन की कंपनी देगी कोरोना टीका?
सिर्फ तीन कंपनियाँ स्वास्थ्य क्षेत्र की हैं, लेकिन वे भी दवा खरीदने-बेचने के व्यापार में हैं, उनमें से कोई टीका या कोई दूसरी दवा बनाता नहीं है।
'इंडियन एक्सप्रेस' के अनुसार, देश की तीन कंपनियों ने महाराष्ट्र की निविदा में रुचि ली, ये है-गेमचेंजर्ज़, तापड़िया इंटरनेशनल, गेट इट इनोवेशन्स।
जिन विदेशी कंपनियों निविदा की प्रक्रिया में भाग लिया, उनमें विदेशी कंपनियाँ हैं-प्रोक्योरनेट, किनफ़ोक ट्रेडिंग, ग्रुपो फर्मेग्ज़र, मेडिकल सप्लाई और हैडली डेवलपमेंट।
इनमें से गेमचेंजर्ज़ मैनेजमेंट कंसलटेंसी कंपनी है जो ऑटोमोबाइल, फ़ैशन, फूड और दूरसंचार के क्षेत्र में सलाह देती है।
तापड़िया इंटरनेशनल दवा व मेडिकल उपकरणों का कमीशन आधारित कारोबार करती है, यानी कमीशन लेकर सप्लाई करती है। पिछले वित्तीय वर् में इसका कुल कारोबार ही 6.19 करोड़ रुपए का था, जिसमें उसे 1.9 करोड़ रुपए का घाटा हुआ।
गेटइट इनोवेशंस मीडिया, फिल्म मेकिेग और कम्युनिकेश की कंपनी है। इसका वित्तीय वर्ष 2017 का कुल कारोबार ही 4.17 लाख रुपए का है।
ग़लत जानकारियाँ दीं?
विदेशी कंपनियाँ कुछ ज़्यादा ही मजेदार हैं। मेक्सिको की कंपनी ग्रुपो फर्मेग्ज़र का दावा है कि वह खुद तो टीका नहीं बनाती, पर वह स्पुतनिक, फ़ाइज़र, जॉन्सन एंड जॉन्सन व एस्ट्राज़ेनेका के संपर्क में है और उसके टीकों की आपूर्ति कर सकती है।
लेकिन 'इंडियन एक्सप्रेस' की ख़बर में कहा गया है कि न तो फ़ाइज़र न ही किसी दूसरी कंपनी ने यह माना है कि ग्रुपो उसके लिए काम कर रही है या उसके संपर्क में है।
बिचौलिए
किनफ़ोक ट्रेडिंग संयुक्त अरब अमीरात की कंपनी है जो आयात-निर्यात करती है। ऑस्ट्रेलिया की कंपनी प्रोक्योरनेट लॉजिस्टिक्स के क्षेत्र में है, जबकि स्विटज़रलैंड की कंपनी मेडिकल उपकरण खरीदती-बेचती है। अमेरिकी कंपनी हैडले डेवलपमेंट का कहना है कि वह सप्लाई चेन की कंपनी है और ग्लोबल ब्रांड के व्यापार में है।
यही हाल बृन्मुंबई म्युनिसपल कॉरपोरेशन की निविदा का भी है। बीएमसी की निविदा में भाग लेने वाली कंपनी ओटू ब्लू इनर्जी एसआरएल रोमानिया की कंपनी है। उसका दावा है कि वह फ़ाइज़र और एस्ट्राज़ेनेका से टीका लेकर आपूर्ति करेगी। लेकिन इन दोनों ही टीका कंपनियों ने साफ कह दिया है कि उन्होंने इस काम के लिए किसी अधिकृत किया ही नही है।
इस नाकामी के बाद महाराष्ट्र सरकार और बीएमसी, दोनों ने ही यह तय कर लिया है कि वे सीधे कोरोना वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों से टीके खरीदेगी।
'राज्य टीका खुद खरीदें'
कोरोना टीका संकट उस समय शुरू हुआ जब केंद्र सरकार ने बग़ैर किसी योजना के ही 18 साल से ऊपर के सभी लोगों को टीका देने का एलान कर दिया। इसके पास न तो पहले पर्याप्त मात्रा में कोरोना वैक्सीन थे, न इसने वैक्सीन की ज़रूरत का सही अनुमान लगाया, न ही इसने सीरम इंस्टीच्यूट या भारत बायोटेक को अग्रिम ऑर्डर दिया।
केंद्र सरकार ने टीका देने का एलान कर इसकी ज़िम्मेदारी राज्यों पर डाल दी और कहा कि हर राज्य अपनी ज़ररूत के हिसाब से टीका खुद खरीदें। केंद्र सरकार टीके देगी वह मुफ़्त होगा। लेकिन यह साफ नहीं हुआ कि केंद्र कितने टीके देगी। यदि वह पूरे टीके देगी तो राज्यों को खरीदने की ज़रूरत ही क्यों पड़ेगी।
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