दिल्ली में एक साथ बड़ी संख्या में डॉक्टरों में कोरोना पॉजिटिव की रिपोर्ट आई तो सवाल उठे कि कोरोना वैक्सीन संक्रमण के प्रति कितनी प्रभावी है? यह इसलिए कि उन डॉक्टरों में से अधिकतर को कोरोना की वैक्सीन लगाई जा चुकी थी। जब तब ऐसी रिपोर्ट भी आती रही है कि वैक्सीन लगाने के बाद भी कोरोना संक्रमण हो गया है। हालाँकि ऐसे कुछ ही मामले आए हैं। तो सवाल उठ सकता है कि टीके लगाने के बावजूद संक्रमण क्यों हो रहा है और ऐसे में टीके लगाना क्या ज़रूरी है?
टीके लगाना कितना ज़रूरी है, यह जानने से पहले यह जान लें कि स्थिति क्या है। पिछले हफ़्ते ही दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में कम से कम 37 डॉक्टर कोरोना पॉजिटिव पाए गए। रिपोर्टों में कहा गया था कि अधिकतर ने कोरोना वैक्सीन लगवाई थी। अधिकतर युवा थे। लेकिन ख़ास बात यह रही कि अधिकांश में हल्के लक्षण थे। 32 डॉक्टर घर पर आइसोलेशन में थे और बाक़ी पाँच अस्पताल में भर्ती कराए गए।
इसी बीच ख़बर आई थी कि दिल्ली एम्स में डॉक्टर सहित 35 स्टाफ़ मेंबर कोरोना पॉजिटिव पाए गए। यह चिंता की बात है कि डॉक्टर संक्रमित हो गए क्योंकि देशभर में 16 जनवरी को टीकाकरण अभियान शुरू होने के साथ ही सबसे पहले कोरोना टीका स्वास्थ्य कर्मियों और फ्रंटलाइन वर्कर्स को लगाए गए थे।
ये सिर्फ़ डॉक्टर ही नहीं हैं जिन्होंने वैक्सीन ली है और वे संक्रमित हो रहे हैं। दो दिन पहले की ही 'टीओआई' की रिपोर्ट के अनुसार, केरल के एर्नाकुलम में वैक्सीन लगाए हुए 240 लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए थे। 'लाइव मिन्ट' की एक रिपोर्ट के अनुसार वैक्सीन लगाए हुए एक भारतीय सिंगापुर में कोरोना पॉजिटिव पाया गया था। ऐसी ही कई रिपोर्टें आ चुकी हैं। हालाँकि, इसके बारे में किसी आधिकारिक तौर पर पुष्टि नहीं की गई कि वैक्सीन लेने के बाद किस-किस को संक्रमण हुआ। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि वैक्सीन लेने के बाद भी संक्रमण संभव है। ऐसा इसलिए क्योंकि एक तो वैक्सीन शरीर में इम्युन सिस्टम को सक्रिय करती है यानी एंटी बॉडी बनाती है। कई वैक्सीन इस मामले में 70 फ़ीसदी से लेकर 96 फ़ीसदी तक प्रभावी साबित हुई हैं। ऐसे में संभव है कि कुछ मामलों में वैक्सीन लेने के बाद भी संक्रमण दुबारा हो जाए।
कोरोना के कुछ नए वैरिएंट आने पर भी वैक्सीन निष्प्रभावी साबित हो सकती है। यानी वैक्सीन लगाने के बावजूद संक्रमित होने का ख़तरा हो सकता है। यह दक्षिण अफ्रीकी स्ट्रेन के बारे में कहा जा रहा है कि मौजूदा वैक्सीन उस पर उतनी प्रभावी नहीं है। हालाँकि यूके स्ट्रेन और ब्राज़ीलियन स्ट्रेन पर यह काफ़ी हद तक प्रभावी बताई जा रही है।
सामान्य तौर पर माना जाता है कि जब नया स्ट्रेन आता है यानी म्यूटेशन होता है तो वह पहले से ज़्यादा तेज़ी से फैलने वाला होता है और वैक्सीन या कोरोना से बनी एंटीबॉटी से बचकर यानी उसको मात देकर फैल सकता है।
इसका मतलब है कि यदि इस तरह का मामला हुआ तो पहले से संक्रमित व्यक्ति भी फिर से कोरोना संक्रमण का शिकार हो सकते हैं। इस तरह इसका एक डर यह है कि हर्ड इम्युनिटी बेअसर साबित हो सकती है।
भारत में यूके स्ट्रेन, दक्षिण अफ्रीकी स्ट्रेन और ब्राज़ीलियन स्ट्रेन के अलावा डबल म्यूटेंट के केस आए हैं। डबल म्यूटेंट के केस भारत में मिले हैं और यह दो अलग-अलग म्यूटेंट का गठजोड़ है। इसमें से एक म्यूटेंट ई484क्यू है और दूसरा एल452आर। इन दोनों म्यूटेंट जब अलग-अलग होते हैं तो इनकी पहचान ज़्यादा तेज़ी से फैलने वाले के तौर पर की गई है और ये कुछ हद तक टीकाकरण या कोरोना ठीक होने से बनी एंटीबॉडी को मात भी दे देते हैं। डबल म्यूटेंट के असर के बारे में इस तरह का शोध अभी तक होना बाक़ी है।
माना जाता है कि भारत में सबसे ज़्यादा केस डबल म्यूटेंट और यूके स्ट्रेन के क़िस्म के कोरोना के ही हैं। ऐसा इसलिए कि पंजाब में कुछ सैंपलों की जाँच में क़रीब 80 फ़ीसदी यूके स्ट्रेन के केस मिले हैं तो महाराष्ट्र में कुछ सैंपलों में 61 फ़ीसदी डबल म्यूटेंट के। भारत में जो वैक्सीन उपलब्ध हैं उसके बारे में कहा जा रहा है कि वह यूके स्ट्रेन और ब्राज़ीलियन पर कारगर हैं। हालाँकि डबल स्ट्रेन के बारे में शोध आना बाक़ी है।
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