इन सभी छात्रों और पूर्व छात्रों ने गृह मंत्री अमित शाह से कहा कि वह पुलिस की बर्बरता को रोकें या अपने पद से इस्तीफ़ा दें। प्रदर्शनकारियों ने जामिया के छात्रों के प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा की निंदा की और कहा कि भारत के संविधान और अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून के तहत यह मानव अधिकारों का घोर उल्लंघन है।
प्रदर्शनकारी छात्रों ने कहा कि विरोध करने का अधिकार संवैधानिक लोकतंत्र का आधार है और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत एक मौलिक अधिकार के रूप में सभी को ऐसा करने की स्वतंत्रता है। प्रदर्शनकारियों की ओर से जारी एक बयान में चीफ़ जस्टिस ऑफ़ इंडिया (सीजेआई) के इस क़ानून के विरोध में हो रहे प्रदर्शनों को दंगा कहने को लेकर चिंता व्यक्त की गई है।
बयान में यह भी कहा गया है कि पुलिस ने यूनिर्वसिटी कैंपस पर हमला किया, लाइब्रेरी में आंसू गैस के गोले छोड़े, महिला छात्रों का उत्पीड़न किया और यह पूरी तरह क़ानून का घोर उल्लंघन है। बयान में असम में प्रदर्शनकारियों के साथ हुई हिंसा और राज्य में इंटरनेट बंद करने की भी निंदा की गई है।
प्रदर्शनकारियों ने माँग की है कि पुलिस को हिंसा करनी बंद करनी चाहिए। उन्होंने यूनिवर्सिटी कैंपस से पुलिस को हटाने की भी माँग की। उन्होंने कहा कि पुलिस की कार्रवाई के ख़िलाफ़ स्वतंत्र जाँच कराई जाए।
नागरिकता क़ानून को लेकर पूर्वोत्तर से शुरू हुआ विरोध पश्चिम बंगाल, दिल्ली सहित कई दूसरे राज्यों में पहुंच गया है और कई जगह पर यह हिंसक भी हो गया है। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में प्रदर्शन के दौरान बड़े पैमाने पर हिंसा हुई और और सीलमपुर, ज़ाफराबाद में भी प्रदर्शनकारियों ने जमकर हिंसा की।
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