ऐसे समय जब भारतीय सरज़मीन पर चीनी सेना मौजूद होने के बावजूद तनाव कम हो रहा है, अमेरिका ने बीजिंग की तीखी आलोचना करते हुए उसे आक्रामक क़रार दिया है। अमेरिकी प्रतिनिधि सभा (हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेन्टेटिव्स) ने आम सहमति से दो अलग-अलग प्रस्ताव पारित कर चीन को भारत के प्रति आक्रामक क़रार दिया और उससे वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सैनिक जमावड़ा कम करने की अपील की है।
प्रतिनिधि सभा में प्रस्ताव पारित कर नेशनल डिफ़ेन्स अथॉराइजेशन एक्ट में संशोधन किया गया।
इस प्रस्ताव में यह कह कर चीन की निंदा की गई है कि उसने लद्दाख के गलवान घाटी में आक्रमण किया और दक्षिण चीन सागर में अपना दबदबा कायम करने की कोशिश की।
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चीन का विस्तारवाद?
यह प्रस्ताव कांग्रेस सदस्य स्टीव चाबोट और भारतीय मूल के सदस्य अमी बेरा ने सोमवार को रखा। इस प्रस्ताव का किसी ने विरोध नहीं किया। इस प्रस्ताव में कहा गया कि वास्तविक नियंत्रण रेखा, दक्षिण चीन सागर और सेनकाकु द्वीप के इलाक़ों में चीन का विस्तारवाद व आक्रमण चिंता का विषय है।बता दें कि पूर्व चीन सागर में कुछ द्वीपों का समूह है, जिसे जापानी सेनकाकु और चीनी दायोवू कहते हैं। इन द्वीपों पर दोनों देशों का दावा है और इस वजह से दोनों के बीच ज़बरदस्त तनाव भी रहा।
इसके पहले मई महीने में जब भारत-चीन तनाव चरम पर था, प्रतिनिधि सभा के विदेशी मामलों की समिति ने भी एक प्रस्ताव पारित कर यही कहा था। उसने भी चीनी को आक्रामक क़रार दिया था।
यह दिलचस्प है कि स्वयं भारत ने अब तक चीन को आक्रामक नहीं कहा है, बीजिंग ने भी नई दिल्ली को ऐसा कुछ नहीं कहा है। पर अमेरिकी संसद ने चीन को आक्रामक क़रार दिया।
कोरोना का फ़ायदा उठाया?
इस प्रस्ताव में यह भी कहा गया है कि चीन ने कोरोना संक्रमण का फ़ायदा उठाया और इस तरह की कार्रवाइयाँ कीं, जिस समय पूरी दुनिया का ध्यान कोरोना की ओर था।दक्षिण चीन सागर का मामला क्या है?
चीन के दक्षिण में बहुत दूर तक फैला दक्षिण चीन सागर वह समुद्र है जो हिन्द महासागर को प्रशांत महासागर से जोड़ता है। इससे सटा हुआ मलक्का स्ट्रेट है, जो चीन के व्यापारिक व सामरिक हितों के लिए अपरिहार्य है।दक्षिण चीन सागर से सटे दूसरे देश इंडोनेशिया, मलेशिया, ब्रूनेई, वियतनाम व फ़िलीपीन्स हैं और इन सबसे चीन के सीमा विवाद हैं। लगभग 13 लाख वर्ग मील में फैले इस सागर के तक़रीबन आधे हिस्से पर चीन का दबदबा है।
चीनी नौसेना के जहाज़ इस पूरे इलाक़े को मथते रहते हैं और दूसरे तमाम देश चीन से या तो डरते हैं या बीच-बीच में भिड़ते रहते हैं।
अमेरिका की दिलचस्पी
अमेरिकी प्रतिनिधि सभा के इस प्रस्ताव को समझने की ज़रूरत है। दरअसल, इस प्रस्ताव के ज़रिए अमेरिका ने भारत की मदद नहीं की है, बल्कि चीन को चेतावनी दी है। वह चीन के विस्तारवाद को लेकर चिंतित ज़रूर है, पर उसकी चिंता गलवान घाटी में घुस आए चीनी सैनिकों को लेकर नहीं है, यह चिंता दक्षिण चीन सागर में गश्त लगाते चीनी युद्धपोत हैं।भारत के नाम पर प्रस्ताव पारित करने के पीछे की रणनीति इसी बहाने दक्षिण एशिया में देर सबेर अमेरिकी सैनिकों की अधिक मौजूदगी है। इसके बारे में अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पिओ खुले आम कह चुके हैं कि वे यूरोप से कुछ सैनिकों को हटा कर एशिया में तैनात करेंगे।
भारत को घसीटने की कोशिश
इसके अलावा अमेरिकी रणनीति इस पूरे मामले में भारत को भी शामिल करने की है। इसे इससे भी समझा जा सकता है कि अमेरिकी युद्धपोत यूएसएस निमिज़ ने भारतीय नौसेना के साथ मिल कर अंडमान निकोबार समुद्र में साझा युद्ध अभ्यास किया है।भारतीय मूल के अमेरिकी प्रतिनिधि राजा कृष्णमूर्ति ने प्रतिनिधि सभा में एक दूसरा प्रस्ताव रखा, उसे भी सर्व सम्मति से पारित कर दिया गया। उसमें चीन से अपील की गई है कि वह कूटनीतिक व राजनयिक चैनल से भारत से बात करे और तमाम समस्याओं का हल खोजे। चीन से कहा गया है उसने वास्तविक नियंत्रण रेखा का उल्लंघन कर ग़लत किया है।
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