नागरिकता संशोधन विधेयक पर चौतरफ़ा घिरे गृह मंत्री अमित शाह को अब अमेरिका से भी तगड़ा झटका लगा है। एक अमेरिकी आयोग ने कहा है कि यह विधेयक 'ग़लत दिशा में एक ख़तरनाक मोड़' है। इसके साथ ही इसने यह भी कहा है कि यदि संसद के दोनों सदनों द्वारा 'धार्मिक आधार' वाले इस विधेयक को पास कर दिया जाता है तो इसके लिए अमित शाह और दूसरे प्रमुख भारतीय नेताओं पर प्रतिबंध लगाने पर विचार किया जाए।
यह प्रतिक्रिया तब आई है जब लोकसभा में यह विधेयक पास हो गया है और राज्यसभा में बुधवार को पेश किया जाना है। इस विधेयक को लेकर बीजेपी और अमित शाह पर पूरा विपक्ष तो हमलावर है ही, कई जगहों पर विरोध-प्रदर्शन भी हो रहे हैं। सैकड़ों सामाजिक कार्यकर्ताओं, वैज्ञानिकों, कलाकारों और बुद्धिजीवियों ने नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध किया है। उन्होंने कहा है कि यह विधेयक संविधान में धर्मनिरपेक्ष छवि को तहस-नहस करने वाला है। उनका विरोध इसलिए है क्योंकि इस विधेयक में धार्मिक आधार पर नागरिकता देने की बात की गई है। विधेयक में 31 दिसंबर 2014 तक देश में आने वाले इसलामिक राष्ट्र पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के उन लोगों को नागरिकता देने की बात गई है जो धार्मिक उत्पीड़न का शिकार होते हैं। इन्हें अवैध आप्रवासी नहीं माना जाएगा।
भारत के इस नागरिकता संशोधन विधेयक यानी सीएबी को लेकर अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी संघीय आयोग यानी यूएससीआईआरएफ़ ने बयान जारी किया है।
इसने बयान में कहा है, ‘सीएबी उन आप्रवासियों के लिए नागरिकता का मार्ग प्रशस्त करता है जो विशेष रूप से मुसलमानों को बाहर रखकर धर्म के आधार पर नागरिकता के लिए क़ानूनी मानदंड निर्धारित करता है। सीएबी ग़लत दिशा में एक ख़तरनाक मोड़ है; यह भारत के धर्मनिरपेक्ष बहुलवाद और भारतीय संविधान के उस समृद्ध इतिहास के ख़िलाफ़ है, जो आस्था की परवाह किए बिना क़ानून के समक्ष समानता की गारंटी देता है।’
अमेरिकी संघीय आयोग ने कहा है कि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी के साथ-साथ चल रहे सीएबी की प्रक्रिया की शुरुआत ने आशंका जताई है कि लाखों मुसलिम अपनी नागरिकता गँवा देंगे।
इस बीच हाउस फॉरेन अफेयर्स कमेटी ने भी नागरिकता (संशोधन) विधेयक पर चिंता व्यक्त की है। इसने कहा है कि यह देखते हुए कि नागरिकता के लिए कोई भी ‘धार्मिक परीक्षा’ बहुलवाद को कम करता है, जो भारत और अमेरिका दोनों के लिए मुख्य साझा मूल्य हैं। कांग्रेस कमेटी ने इस मुद्दे पर द न्यूयॉर्क टाइम्स का एक लेख भी साझा किया।
Religious pluralism is central to the foundations of both India and the United States and is one of our core shared values. Any religious test for citizenship undermines this most basic democratic tenet. #CABBillhttps://t.co/7wyeXMFfxl
— House Foreign Affairs Committee (@HouseForeign) December 9, 2019
बता दें कि यूएससीआईआरएफ़ की सिफ़ारिशें लागू करना बाध्यकारी नहीं है। हालाँकि, इसकी सिफ़ारिशों पर अमेरिकी सरकार और विशेष रूप से विदेश विभाग विचार करता है। विदेश विभाग को धार्मिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए विदेशी संस्थाओं और व्यक्तियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने का अधिकार है। लेकिन देखना है कि अब यह संस्था किस तरह की कार्रवाई करती है।
'यूएससीआईआरफ़ का बयान ग़ैर-ज़रूरी'
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा कि इस पर यूएससीआईआरफ़ का बयान न तो सही है और न ही ज़रूरी। उन्होंने कहा, 'इस विधेयक में भारत में पहले से ही रह रहे पड़ोसी देशों में सताए गए अल्पसंख्यक लोगों को भारत की नागरिकता देने की प्रक्रिया में तेज़ी लाने का प्रावधान है। इसमें उनकी मौजूदा दिक़्क़तों को दूर करने और उनके मूलभूत मानवाधिकार की रक्षा करने का प्रावधान है।'उन्होंने कहा कि न तो सीएबी और न ही राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) की प्रक्रिया में किसी भारतीय नागरिक की नागरिकता किसी आस्था के आधार पर जाएगी। उन्होंने कहा, ‘संयुक्त राज्य अमेरिका सहित हर देश को अपनी नागरिकता को मानने और मान्य करने और विभिन्न नीतियों के माध्यम से इस विशेषाधिकार का उपयोग करने का अधिकार है। यूएससीआईआरएफ़ द्वारा व्यक्त की गई स्थिति उसके पिछले रिकॉर्ड को देखते हुए आश्चर्यजनक नहीं है। हालाँकि, यह अफ़सोसजनक है कि उसने केवल अपने पूर्वाग्रहों के आधार पर निर्णय लिया है, जिससे साफ़ है कि उसको इस पर कम जानकारी है और वास्तविक स्थिति का बिल्कुल पता नहीं है।’नागरिकता संशोधन विधेयक को 625 लेखकों, कलाकारों, फ़िल्मकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने संविधान के साथ छलावा क़रार दिया है। उन्होंने इसको वापस लिए जाने की माँग की है। उन्होंने सीएबी को विभाजनकारी, भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक बताया है। उन्होंने कहा कि यह राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी के साथ पूरे देश भर के नागरिकों को अप्रत्याशित उत्पीड़न देगा।
जारी किए गए पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में लेखिका नयनतारा सहगल, अशोक वाजपेयी, अरुंधती रॉय, पॉल ज़चारिया, अमिताव घोष, कलाकार टी.एम. कृष्णा, विवान सुंदरम, सुधीर पटवर्धन, फ़िल्मकार अपर्णा सेन, नंदिता दास, आनंद पटवर्धन, बुद्धिजीवि रोमिला थापर, प्रभात पटनायक, रामचंद्र गुहा, सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़, हर्ष मंदर, अरुणा रॉय, व बेज़वादा विल्सन, जस्टिस ए पी शाह (सेवानिवृत्त), योगेंद्र यादव, वजाहत हबीबुल्ला और ऐसे ही 625 लोग शामिल हैं।
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