राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप की भारत यात्रा के ठीक पहले धार्मिक आज़ादी से जुड़ी अमेरिकी संस्था ने नागरिकता संशोधन क़ानून पर बेहद गंभीर टिप्पणी की है। संयुक्त राज्य अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग ने कहा है कि नागरिकता संशोधन क़ानून और एनआरसी से भारत के मुसलमानों का मताधिकार छिन सकता है। इसने यह भी कहा है कि भारत में धार्मिक स्वतंत्रता में गिरावट आई है।
संयुक्त राज्य अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग अमेरिकी (यूएससीआईआरएफ़) प्रशासन की संस्था नहीं है, यह निष्पक्ष और स्वतंत्र आयोग है। लेकिन यह संस्था अमेरिकी संविधान के आधार पर बनाई गई है और इसका काम पूरी दुनिया में लोगों की धार्मिक आज़ादी पर नज़र रखना है।
यूएससीआईआरएफ़ ने कहा है, 'इस पर गंभीर चिंता जताई जा रही है कि एनआरसी लागू किए जाने पर ग़ैर-मुसलमानों की रक्षा के लिए सीएए लाया गया है।' इस अमेरिकी संगठन ने कहा :
'सीएए लागू हो जाने के बाद मुसलमानों को एनआरसी के आधार पर बाहर कर दिया जाएगा, वे राज्यविहीन हो सकते हैं, उन्हें देश से बाहर कर दिया जा सकता है या लंबे समय तक उन्हें बंदी डिटेंशन सेंटर में रखा जा सकता है।'
इस आयोग ने आगे कहा, 'बीजेपी के हिन्दुत्ववादी विचारधारा के बढ़ते प्रभाव के रूप में भी सीएए और एनआरसी को देखा जा सकता है। इस विचारधारा के तहत भारत को हिन्दू राष्ट्र माना जा रहा है और इसमें बौद्ध, जैन और सिख धर्म का जोड़ दिया गया है। इसके मुताबिक़, इसलाम विदेशी और हमलावर धर्म है।'
याद दिला दें कि संसद के दोनों सदनों में नागरिकता संशोधन क़ानून पारित कर दिया गया है। इस क़ानून में यह प्रावधान है कि 31 दिसंबर 2014 तक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान से आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, ईसाई और पारसियों को भारत की नागरिकता दी जा सकती है। इसमें मुसलमानों को छोड़ दिया गया है।
सीएए के ख़िलाफ़ देश के अलग-अलग जगहों पर विरोध प्रदर्शन हुए हैं और अभी भी हो रहे हैं। विरोध इस आधार पर किया जा रहा है कि यह भारत की संविधान की मूल आत्मा के विरुद्ध है।
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