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‘गोबर’ चूल्हे के धुएँ में बदरंग हुई उज्ज्वला योजना की चमक

मोदी सरकार जिस तरह से उज्ज्वला गैस योजना को क्रांतिकारी और सफल बताती रही है, क्या यह उतनी ही ज़्यादा विफल साबित नहीं हुई है? उज्ज्वला योजना का लाभ लेने वाले 90 फ़ीसदी परिवार अभी भी खाना पकाने के लिए लकड़ी और गोबर के उपलों जैसे परंपरागत साधन का उपयोग कर रहे हैं। यह आँकड़ा एक ग़ैर-लाभकारी संगठन की रिसर्च रिपोर्ट में आया है। क्या यह रिपोर्ट प्रधानमंत्री मोदी के उन दावों के उलट नहीं है जिसमें वह क़रीब-क़रीब हर सार्वजनिक मंच से कहते हैं कि उनकी सरकार ने गाँवों में ग़रीब महिलाओं को धुएँ से निजात दिला दी है? 

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बता दें कि इस योजना की घोषणा मोदी ने तीन साल पहले आज ही के दिन यानी 1 मई 2016 को उत्तर प्रदेश के बलिया ज़िले में की थी। प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना मोदी सरकार की 10 बड़ी और महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक है। 2011 की जनगणना के हिसाब से जो परिवार बीपीएल श्रेणी में आते हैं, उन्हें उज्ज्वला योजना का लाभ मिल सकता है। शुरू में यह योजना केवल 5 हज़ार परिवारों के लिए लाई गई थी, लेकिन बाद में इसे बढ़ा दिया गया। सरकार का दावा है कि मार्च 2019 तक 7 करोड़ लोग इस योजना से लाभान्वित हो चुके थे। 2021 तक 8 करोड़ बीपीएल परिवारों को गैस कनेक्शन देने का लक्ष्य रखा गया है।

सवाल यह है कि यदि उज्ज्वला योजाना की 90 फ़ीसदी महिलाएँ धुएँ वाले चूल्हे पर खाना बना रही हैं तो सात करोड़ लोगों को कनेक्शन देने का क्या फ़ायदा हुआ? क्या इसे एक बड़ी उपलब्धि कहा जा सकता है?

सरकार के दावे का आधार और हक़ीकत

सात करोड़ से ज़्यादा परिवारों को उज्ज्वला योजना में गैस कनेक्शन दिया जा चुका है। सरकार ने आँकड़ों के आधार पर दावा किया है कि जितने लोगों ने गैस कनेक्शन लिया है उसका 82 फ़ीसदी लोगों ने पिछले एक साल में गैस रीफिल कराया है। इसी आधार पर सरकार ने यह भी दावा किया है कि हरियाणा में सबसे ज़्यादा 97.5 फ़ीसदी लोगों ने पिछले एक साल में कभी न कभी गैस भराया है। 

लेकिन हक़ीकत सरकार ने नहीं बताई। सरकार ने यह नहीं बताया कि ऐसे परिवारों ने साल भर में कितने सिलेंडर रीफिल कराये। साल भर में एक बार गैस रीफिल कराने से क्या साल भर तक खाना बनाया जा सकता है? दरअसल, ऐसे अधिकतर परिवारों ने गैस सिलेंडर को शादी-ब्याह जैसे विशेष मौक़ों पर गैस सिलेंडर रीफिल करा लिया, बाक़ी पूरे साल वे खाना लकड़ी और उपलों के चूल्हों पर बनाते रहे। अधिकतर परिवार तो ऐसे हैं जो किसी रिश्तेदार के आने पर सिर्फ़ चाय-नाश्ता बनाने के लिए गैस चूल्हे का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन सरकार ने इन्हें गैस रीफिल कराने वाले और गैस पर खाना बनाने वाले परिवार के रूप में प्रचारित किया। 

ग़ैर-सरकारी संगठन की रिपोर्टें उज्ज्वला योजना की विफलता की कहानी साफ़-साफ़ कहती हैं। 'टाइम्स ऑफ़ इंडिया' की रिपोर्ट के अनुसार इसी साल फ़रवरी में ग़ैर-लाभकारी संगठन रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर कम्पैसनेट इकॉनमिक्स ने पाया था कि उज्ज्वला योजना के 90 फ़ीसदी लाभार्थी खाना बनाने के लिए लकड़ी और गोबर के उपलों जैसे परंपरागत साधन का उपयोग कर रहे हैं।

बीपीएल परिवारों द्वारा निरंतर गैस रिफिल नहीं कराने के कई कारण रहे हैं। इस पर ग़ैर-सरकारी संगठनों के अलावा एक के बाद एक मीडिया रिपोर्टें भी आती रही हैं। बड़े स्तर पर इन ख़ामियों को उजागर होने के बावजूद इन्हें दूर नहीं किया जा सका है।

पैसे की तंगी

ग़ैर-लाभकारी संगठन ने अपनी रिपोर्ट में नेशनल सैंपल सर्वे ऑफ़िस 2013 के आँकड़ों के हवाले से कहा है कि ग्रामीण भारत में एक परिवार जितना ख़र्च पूरे महीने करता है उसका आधा तो एक सिलेंडर को रीफिल कराने में लग जाता है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यही संभवत: कारण है कि वे अक्सर अपना सिलेंडर रीफिल नहीं कराते हैं। 

दूसरे साधन उपलब्ध

लकड़ी और गोबर के उपले जैसे साधन लोगों के पास आसानी से और वह भी मुफ़्त में उपलब्ध होते हैं। छोटे-छोटे किसानों के पास तो फ़सलों से अनाज निकाले जाने के बाद और भी ज़्यादा विकल्प उपलब्ध होते हैं। इस मामले में उनकी पहुँच भी आसान होती है। बाजरे और मक्के की रोटी, मडुवा की रोटी, लिट्टी, बाटी जैसे परंपरागत भोजन परंपरागत चूल्हे पर लोग बनाना पसंद करते हैं। उनका का मानना है कि इससे स्वाद पर फर्क पड़ता है। 

सब्सिडी में देरी

जिनको सब्सिडी मिलती भी है उनकी शिकायतें रहती हैं कि सब्सिडी समय पर नहीं मिलती है। वैसे नियम तो 4-5 दिन में सब्सिडी ट्रांसफ़र का है, लेकिन इसमें काफ़ी ज़्यादा दिन लग जाते हैं। बीपीएल परिवारों के पास इतने पैसे नहीं होते कि वे सब्सिडी आने का इतने लंबे समय तक इंतज़ार करें। गाँवों में अधिकतर ऐसी शिकायतें भी आती हैं कि सब्सिडी बैंक खाते में नहीं आती है और बार-बार उन्हें इसके लिए एलपीजी डिस्ट्रिब्यूटर और बैंक के चक्कर काटने पड़ते हैं। 

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क्या मुफ़्त है उज्ज्वला योजना?

केंद्र की मोदी सरकार ‘उज्ज्वला योजना’ को ग़रीब महिलाओं के लिए मुफ़्त में दी गई योजना बताती रही है। लेकिन सच्चाई यह है कि इस योजना के तहत दिया गया गैस कनेक्शन यानी सिलेंडर और चूल्हा मुफ़्त नहीं है। किसी भी लाभार्थी को गैस कनेक्शन लेते ही 1750 रुपये चुकाने पड़ते हैं। इनमें से 990 रुपये गैस चूल्हे के लिए जाते हैं जबकि 760 रुपये का पहला सिलेंडर आता है। 

दरअसल, सरकार इस योजना के तहत लिए गए कनेक्शन में पहले छह सिलेंडर की रीफिलिंग पर मिलने वाली सब्सिडी ख़ुद रख लेती है, ताकि 1600 रुपये की दी गई आर्थिक सहायता चुकता कर लिया जाए। सरकार सिर्फ़ 150 रुपये का रेग्यूलेटर मुफ़्त में देती है। इसके एवज में पीतल बर्नर वाले चूल्हे की जगह लोहे का बर्नर लगा चूल्हा दिया जाता है। गैस पाइप भी छोटा दिया जाता है। बता दें कि उज्ज्वला योजना के उपभोक्ताओं को पहले छह सिलेंडर बाजार दर पर ख़रीदने होते हैं जो 750 से 900 रुपये का पड़ता है। सामान्य रूप से एक सिलेंडर पर सब्सिडी 240 से 290 रुपये मिलती है। इस लिहाज़ से सरकार पहले छह सिलेंडर की रिफिलिंग के दौरान क़रीब 1740 रुपये प्रति ग्राहक वसूल लेती है। हालाँकि बताया जा रहा है कि हाल में इस नियम में बदलाव किया गया है।

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क़मर वहीद नक़वी
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