अनुच्छेद 370 को हटाये जाने के बाद से ही कई तरह के प्रतिबंधों का सामना कर रहे कश्मीरियों की मुश्किलें ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही हैं। कुछ दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट के कड़े रूख के बाद घाटी में इंटरनेट सेवाओं को बहाल किया गया था लेकिन अब ख़बरें आ रही हैं कि सोशल मीडिया के ग़लत इस्तेमाल के आरोप में कश्मीर में यूजर्स के ख़िलाफ़ मुक़दमे दर्ज किये जा रहे हैं। इस संबंध में जम्मू-कश्मीर प्रशासन की ओर से सफाई आई है कि घाटी में सभी सोशल मीडिया यूजर्स के ख़िलाफ़ मुक़दमे दर्ज नहीं किये गये हैं।
ये मुक़दमे ग़ैर-क़ानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत दर्ज किये गये हैं। इसे लेकर प्रशासन की जमकर आलोचना हो रही है। इंडिया टुडे के मुताबिक़, पुलिस ने कहा, ‘अलग-अलग वीपीएन (वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क) का इस्तेमाल कर उपद्रवी तत्व सोशल मीडिया पर कश्मीर की सुरक्षा को लेकर अफ़वाहें फैला रहे हैं और इन्हीं पोस्ट्स का संज्ञान लेते हुए एफ़आईआर दर्ज की गई हैं।’ पुलिस का कहना है कि इन सोशल मीडिया पोस्ट्स के जरिये अलगाववादी विचारधारा का प्रचार किया जा रहा है और आतंकवादी कृत्यों/आतंकवादियों का महिमामंडन किया जा रहा है। पुलिस के मुताबिक़, इस संबंध में बहुत सारी आपत्तिजनक सामग्री भी जब्त की गई है।
जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने 14 जनवरी को सभी सोशल मीडिया साइट्स पर बैन लगाने का आदेश जारी किया था। आदेश में कहा गया था कि इनके ग़लत इस्तेमाल से शरारती तत्व ग़लत सूचनाएं और अफ़वाहें फैला सकते हैं।
इंडिया टुडे के मुताबिक़, घाटी में सोशल मीडिया पर कई लोगों ने ऐसी पोस्ट्स कीं जिनमें कहा गया था कि कश्मीर बार एसोसिएशन के अध्यक्ष मियां क़यूम को आगरा जेल में हार्ट अटैक आ गया है। बाद में जम्मू-कश्मीर पुलिस ने इस तरह की पोस्ट्स का खंडन किया और इन्हें महज अफ़वाह करार दिया। प्रशासन ऐसी सभी पोस्ट्स पर नजर रख रहा है जिनसे घाटी में शांति भंग होने की आशंका है।
सोशल मीडिया यूजर्स पर यूएपीए लगाये जाने पर एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को निशाने पर रखा है। ओवैसी ने ट्वीट कर कहा, ‘कश्मीर में सब कुछ नॉर्मल है, है ना। हर दिन इस बात के सबूत मिलते हैं कि अमित शाह कश्मीर को कितना कम समझते हैं, ज़ाहिर तौर पर वीपीएन कैसे काम करता है, वह यह भी नहीं समझते। इसलिये उन्होंने क्रूरता, अक्षमता और अपमान के नये वर्ल्ड रिकॉर्ड बना दिये हैं।’
ताज़ा हालात में घाटी में इंटरनेट सेवाएं देने वाली कंपनियों को 1,485 वेबसाइटों तक ही लोगों को एक्सेस देने की अनुमति दी गई है। इसके अलावा किसी भी सोशल मीडिया एप्लीकेशन को वीपीएन का इस्तेमाल करने की भी अनुमति नहीं दी गई है। प्रशासन की ओर से 2जी मोबाइल डेटा सर्विस और फ़िक्स्ड लाइन इंटरनेट कनेक्टिवटी को इस्तेमाल करने की समय सीमा को 24 फ़रवरी तक बढ़ा दिया गया है।
एक हफ़्ता पहले, दो पत्रकारों को जेकेएलएफ़ के द्वारा बुलाये गये बंद की रिपोर्टिंग करने पर हिरासत में ले लिया गया था। कश्मीर प्रेस क्लब ने इस घटना को लेकर कहा था कि सुरक्षा एजेंसियां घाटी में पत्रकारों को डरा-धमका रही हैं।
इंटरनेट पर नहीं लगा सकते रोक
सुप्रीम कोर्ट ने घाटी में इंटरनेट बैन किये जाने को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पिछली महीने कहा था कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतांत्रिक व्यवस्था का बेहद अहम अंग है। कोर्ट ने कहा था कि इंटरनेट इस्तेमाल करने की आज़ादी लोगों का मूलभूत अधिकार है और बिना वजह इस पर रोक नहीं लगाई जा सकती।
शीर्ष अदालत ने सख़्त टिप्पणी करते हुए कहा था कि इंटरनेट को अनिश्चितकाल के लिए बंद नहीं किया जा सकता और केंद्र सरकार से कश्मीर में लगाये गये प्रतिबंधों से जुड़े सभी आदेशों की एक हफ़्ते में समीक्षा करने के लिए कहा था। अदालत ने कहा था कि व्यापार और ई-बैंकिंग सेवाओं के लिए इंटरनेट को शुरू किया जाए।
इसके बाद प्रशासन ने पोस्टपेड और प्रीपेड सेवाएं इस्तेमाल करने वाले मोबाइल धारकों के लिए 2G इंटरनेट सेवाओं को बहाल कर दिया था। लेकिन इसमें शर्त यह लगाई गई कि वे सरकार के द्वारा अधिकृत की गईं 301 सुरक्षित वेबसाइट्स को ही एक्सेस कर पायेंगे।
इंटरनेट और सोशल मीडिया के इस दौर में सोशल मीडिया यूजर्स पर यूएपीए लगाये जाने को क़तई जायज नहीं ठहराया जा सकता। इंटरनेट पर कई महीने तक प्रतिबंध लगने के बाद कश्मीर दुनिया से पूरी तरह कट गया है और अभी भी सिर्फ़ 2जी इंटरनेट सेवा के इस्तेमाल की अनुमति दी गई है। इस वजह से ऑफ़िस जाने वालों, कारोबारियों, छात्रों और अन्य लोगों को बहुत दिक्क़तें हो रही हैं।
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