पिछले महीने ही नए नियमों के मुताबिक़, गूगल, फ़ेसबुक और वाट्सऐप ने तमाम पदों पर अफ़सरों को नियुक्त करने के लिए सहमति दे दी थी।
ट्विटर ने हालांकि एक आउटसाइड कंसल्टेंट के नाम का प्रस्ताव सरकार के पास भेजा था लेकिन केंद्र ने इससे ठुकरा दिया था और कहा था कि यह उसकी गाइडलाइंस या नियमों के विपरीत है।
ट्विटर की तरह कुछ दिन पहले वाट्सऐप ने भी केंद्र सरकार के इन नए नियमों के ख़िलाफ़ ताल ठोकी थी और दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि इन नियमों से यूज़र की निजता की सुरक्षा भंग होगी। वाट्सऐप ने अदालत से कहा था कि नये क़ानूनों में से एक का प्रावधान असंवैधानिक है और यह लोकतंत्र के सिद्धातों के ख़िलाफ़ है।
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ट्विटर ने अपने रूख़ को बेहद सख़्त करते हुए कहा था कि अभिव्यक्ति की आज़ादी ख़तरे में है और भारत में उसके कर्मचारियों को डराने की कोशिश की जा रही है। इसके बाद केंद्र ने पलटवार करते हुए कहा था कि वह अपने व्यावसायिक फ़ायदे के लिए अभिव्यक्ति की आज़ादी से खिलवाड़ कर रहा है।
इस बीच, कई बड़ी कंपनियों, जैसे- लिंक्ड इन, टेलीग्राम, गूगल, फ़ेसबुक और वॉट्सएप ने आईटी मंत्रालय को अपनी कंपनी में नियुक्त होने वाले चीफ़ कम्प्लायेंस अफ़सर, नोडल कांटेक्ट पर्सन और रेजिडेंट ग्रीवांस अफ़सर से जुड़ी जानकारी भेज दी थी।
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