एक संसदीय समिति के सामने पेश हुए ट्विटर के अफ़सरों की केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के अकाउंट को ब्लॉक करने पर खिंचाई की गई। शाह के ट्विटर अकाउंट को पिछले नवंबर में थोड़ी देर के लिए ब्लॉक किया गया था। ट्विटर के अलावा फ़ेसबुक के अफ़सर भी इस बैठक में शामिल हुए थे।
हालांकि समिति के सामने ट्विटर और फ़ेसबुक के अफ़सरों से बातचीत का मुद्दा सोशल मीडिया पर लोगों के अधिकारों को महफूज रखने, सोशल न्यूज़ मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स के दुरुपयोग को रोकने और डिजिटल दुनिया में महिलाओं की सुरक्षा का था। लेकिन बात अमित शाह के अकाउंट को क्यों ब्लॉक किया गया, यहां पहुंच गयी।
एनडीटीवी के मुताबिक़, ट्विटर के अफ़सरों से पूछा गया कि उन्हें किसने ये अधिकार दिए कि वे गृह मंत्री के ट्विटर अकाउंट को ब्लॉक कर दें। इस पर ट्विटर के अफ़सरों ने समझाने की कोशिश की कि उन्होंने अस्थायी रूप से इस अकाउंट को ब्लॉक किया था क्योंकि पोस्ट की गई एक पिक्चर में कॉपीराइट की समस्या थी।
नवंबर में जब यह घटना हुई थी, तब भी ट्विटर ने कहा था कि यह उसके कॉपीराइट नियमों के तहत अनजाने में हुई ग़लती है और इसमें तुरंत सुधार कर लिया गया था। इसके बाद शाह के ट्विटर अकाउंट को तुरंत एक्टिव कर दिया गया था।
बैठक में ट्विटर और फ़ेसबुक ने कहा कि किसी भी कॉन्टेन्ट को लेकर उनके नियम बेहद सख़्त हैं और वे ऐसे किसी भी कॉन्टेन्ट को अपने प्लेटफ़ॉर्म से हटाते हैं जो हिंसा को भड़काने वाला हो।
ट्रंप पर लिया था एक्शन
ट्रंप समर्थकों द्वारा कैपिटल हिल में की गई हिंसा के कारण पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के ख़िलाफ़ ट्विटर बहुत सख़्ती से पेश आया था। ट्विटर ने उनके अकाउंट को हमेशा के लिए सस्पेंड कर दिया था। कंपनी ने कहा था कि कोई भी ट्विटर अकाउंट नियमों से ऊपर नहीं है और हिंसा भड़काने के लिए इसका इस्तेमाल नहीं कर सकता।
बीजेपी की आपत्ति
इसे लेकर बीजेपी नेता परेशान दिखाई दिए थे। बीजेपी युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष तेजस्वी सूर्या ने ट्विटर की कार्रवाई को लेकर कहा था कि यह लोकतांत्रिक देशों के लिए ‘जागने’ का वक्त है। सूर्या को शायद इस बात का डर है कि भविष्य में ट्विटर भारत में किसी नेता के ख़िलाफ़ इस तरह की कार्रवाई न कर दे।
फ़ेसबुक हेट स्पीच मामला
सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म फ़ेसबुक पर हेट स्पीच मामले को लेकर ख़ासा विवाद हो चुका है। पिछले साल अगस्त में फ़ेसबुक को तब आलोचना का सामना करना पड़ा था, जब ‘द वाल स्ट्रीट जर्नल’ ने ख़ुलासा किया था कि फ़ेसबुक ने बीजेपी के कुछ नेताओं की ऐसी पोस्ट को हटाने से मना कर दिया था, जो घृणा फैलाने वाली थीं। फ़ेसबुक इंडिया की पब्लिक पॉलिसी डायरेक्टर आंखी दास की इसे लेकर ख़ासी आलोचना हुई थी। इसके बाद आंखी दास ने पुलिस को शिकायत दी थी कि और कहा था कि उन्हें कथित तौर पर धमकियां मिली हैं।
राहुल ने बोला था हमला
'द वॉल स्ट्रीट जर्नल' की ख़बर के सामने आने के बाद कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने इसे लेकर बीजेपी और आरएसएस पर हमला बोला था। राहुल ने ट्वीट कर कहा था, ‘बीजेपी-आरएसएस भारत में फेसबुक और वॉट्सएप का नियंत्रण करते हैं। इस माध्यम से ये झूठी ख़बरें व नफ़रत फैलाकर वोटरों को फुसलाते हैं।’ ख़ुद को घिरता देख बीजेपी ने केंद्रीय क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद और तमाम प्रवक्ताओं को इसका जवाब देने के लिए टेलीविजन चैनलों के मोर्चे पर तैनात किया था।
विवाद बढ़ने के बाद फ़ेसबुक ने इस पर सफाई दी थी और कहा था कि वह ऐसी सामग्री जिससे ‘नफ़रत को बढ़ावा मिलता हो’ या ‘हिंसा को उकसावा मिलता हो’ उसे रोक देता है।
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