दुनिया के 22 मुसलिम देशों की तरह भारत में भी
ट्रिपल तलाक़ को ख़त्म करने की जो लड़ाई शाहबानो ने 40 साल पहले शुरू की थी, वह लड़ाई लंबे संघर्ष के बाद शायरा बानो ने जीत ली है। केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद ट्रिपल तलाक़ के ख़िलाफ़ उठी आवाज़ें बारास्ते सुप्रीम कोर्ट सरकार के कानों तक पहुँचीं। आख़िरकार सरकार इसके ख़िलाफ़ संसद के दोनों सदनों में
विधेयक पारित कराने में सफल रही। अब राष्ट्रपति के दस्तख़त के बाद क़ानून वजूद में आ जाएगा।
ट्रिपल तलाक़ रोकने के लिए बनाए गए इस क़ानून को मोदी सरकार ऐतिहासिक और क्रांतिकारी क़दम बता रही है। जबकि इसका विरोध करने वाले कांग्रेस और अन्य दल इसे एक ऐसा क़ानून बता रहे हैं जो मुसलिम महिलाओं की दिक़्कतें बढ़ाएगा और मुसलिम पुरुषों को जेल भिजवाने के लिए एक हथियार के रूप में इस्तेमाल होगा। इस विधेयक पर राज्यसभा में बहस के दौरान क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कांग्रेस पर तंज कसते हुए कहा कि ट्रिपल तलाक़ को बैन करने का मामला शाहबानो से लेकर शायरा बानो तक आ गया। लेकिन कांग्रेस वहीं खड़ी है जहाँ वह शाहबानो के मामले में खड़ी थी।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने शाहबानो को आजीवन गुजारा भत्ता देने का फ़ैसला सुनाया था लेकिन तब कांग्रेस ने लोकसभा में भारी बहुमत होने के बावजूद ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड और अन्य मुसलिम संगठनों के दबाव में इस फ़ैसले को पलट दिया था।
बोर्ड ने नहीं उठाए ठोस क़दम
यहाँ ग़ौरतलब है कि उस वक़्त ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कांग्रेस सरकार ख़ासकर प्रधानमंत्री राजीव गाँधी को यह भरोसा दिलाया था कि वह मुसलमानों के निजी क़ानूनों में सुधार के लिए न सिर्फ अभियान चलाएँगे बल्कि ट्रिपल तलाक़ जैसी ग़लत प्रथा को ख़त्म करने के लिए कड़े कदम भी उठाएँगे। लेकिन पिछले 35 साल में बोर्ड ऐसा करने में पूरी तरह नाकाम रहा है। इस बार मोदी सरकार ने ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड या किसी भी मुसलिम संगठन से इस बारे में कोई बातचीत नहीं की।
ख़बर है कि ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष राबे हसन नदवी ने प्रधानमंत्री मोदी को चिट्ठी लिखकर ट्रिपल तलाक़ के ख़िलाफ़ बनाए जाने वाले इस क़ानून के बारे में उनसे सलाह लेने की माँग की थी। लेकिन प्रधानमंत्री ने चिट्ठी का कोई जवाब नहीं दिया।
राज्यसभा में ट्रिपल तलाक़ रोकथाम विधेयक पास होने के बाद ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने उन दलों पर अपना ग़ुस्सा ज़ाहिर किया है जिन दलों ने इसे पास कराने में अपरोक्ष रूप से सरकार की मदद की है।
राज्यसभा में विधेयक के पास होने के बाद बोर्ड ने बाक़ायदा ट्वीट करके कांग्रेस, जनता दल यूनाइटेड और बहुजन समाज पार्टी समेत कई पार्टियों को लताड़ लगाई है। बोर्ड की तरफ़ से महासचिव मौलाना वली रहमानी ने कहा है कि इन पार्टियों ने बीजेपी के राजनीतिक एजेंडे को अपना समर्थन दिया और वोटिंग के समय वॉक आउट करके अपना असली रंग दिखा दिया है।
बोर्ड ट्रिपल तलाक की रोकथाम के लिए संसद के दोनों सदनों में पारित कराए गए इस विधेयक को मुसलिम समाज के अंदरूनी मामलों में ग़ैर ज़रूरी दख़लअंदाजी मानता है। बोर्ड ने कहा है कि हम विपक्षी पार्टियों के रवैये की कड़ी निंदा करते हैं। बोर्ड ने बिल पास होने को भारतीय लोकतंत्र का काला दिन क़रार दिया है। ट्वीट में मौलाना वली रहमानी ने कहा कि निश्चित तौर पर भारतीय मुसलिम महिलाएँ ट्रिपल तलाक़ बिल के ख़िलाफ़ हैं।
हालाँकि इस विधेयक के 25 जुलाई को लोकसभा में पास होने के बाद इस बात के आसार बढ़ गए थे कि सरकार इसे राज्यसभा में भी पास करा लेगी। इस मामले में कांग्रेस के तेवर भी ढीले रहे। विधेयक पर वोटिंग के दौरान राज्यसभा में 10 दलों के क़रीब 30 सदस्य मौजूद नहीं थे। इनमें एनसीपी के अध्यक्ष शरद पवार और दिग्गज नेता प्रफुल्ल पटेल, आरजेडी की मीसा भारती, वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी जैसे नाम शामिल हैं। हैरानी की बात तो यह है कि मुसलमानों से एकजुट होकर अपने पक्ष में मतदान करने की अपील करने वाली बीएसपी और समाजवादी पार्टी ने भी इस विधेयक के ख़िलाफ़ वोटिंग करने के बजाय सदन से बाहर रहकर सरकार को मदद देने का रास्ता अपनाया। इसे लेकर सोशल मीडिया पर एसपी और बीएसपी, दोनों की मुसलमानों की तरफ़ से तीख़ी आलोचना हो रही है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल ने भी विधेयक पर सदन से बाहर रहकर सरकार की मदद करने वाले विपक्षी दलों के रवैये की तीख़ी आलोचना की है। उन्होंने कहा कि ऐसे विरोध का कोई मतलब नहीं है। एसपी-बीएसपी के अलावा टीआरएस और वाईएसआर कांग्रेस ने भी वोटिंग के दौरान सदन से बाहर रहकर विधेयक पास कराने में सरकार की मदद की है। ग़ौरतलब है कि एक समय में ट्रिपल तलाक केस में कपिल सिब्बल ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड की तरफ़ से वकील थे। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में इस विधेयक के ख़िलाफ़ दलीलें रखी थी।
तीन तलाक़ बिल पर सदन के फ़ैसले पर ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड की तरह एआईएमआईएम प्रमुख और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने भी सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि इस विधेयक का पास होना कोई ऐतिहासिक फैसला नहीं है। सांसद ओवैसी ने कहा कि यह बिल मुसलिम महिलाओं के ख़िलाफ़ है और ये उनके साथ नाइंसाफ़ी है। ओवैसी ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट में यह विधेयक टिक नहीं पाएगा लेकिन ओवैसी को यह बताना चाहिये कि टीआरएस, जिसने वॉक आउट किया था क्या उससे उनकी पार्टी संबंध तोड़ेगी? ओवैसी की पार्टी का टीआरएस के साथ गठबंधन है।
बीजेपी ने एक तीर से दो निशाने साधे
बात साफ़ है कि बीजेपी ने यह विधेयक पास कराकर एक तीर से दो निशाने साधे हैं। एक तो बीजेपी अपने कट्टर हिंदू वोटर को यह संदेश देने में कामयाब रही है कि वह मुसलमानों के निजी मामलों को क़ानून के दायरे में लाने में कोई कोर-कसर बाक़ी नहीं रखेगी। इस तरह के फ़ैसलों से बीजेपी का कट्टर समर्थक वोटर खुश होता है। दूसरा, ट्रिपल तलाक़ के ख़िलाफ़ सख़्त क़ानून बनाकर बीजेपी मुसलिम समाज में महिलाओं को संदेश देने में कामयाब रही है कि वह ही एक ऐसी पार्टी है जो उन्हें मज़हब के नाम पर उनके ख़िलाफ़ होने वाली ज़्यादती से बचा सकती है।बीजेपी ने एसपी-बीएसपी-टीआरएस और वाईएसआर कांग्रेस को इस मुद्दे पर बेनकाब करके मुसलमानों की आँखों से इनका चश्मा उतारने की कोशिश की है। बीजेपी को उम्मीद है कि आगे चलकर वह इस विधेयक के सहारे मुसलिम समाज में बड़ी सेंध लगा सकती है। इन दलों की हरक़तों को देखकर मुसलिम समाज में नए सिरे से विचार-विमर्श शुरू हुआ है कि आख़िर जो पार्टियाँ सत्ता में आने के लिए उनके वोट पर निर्भर हैं वह उनके निजी मामलों में उनके साथ संसद में क्यों खड़ी नहीं होतीं?
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