केंद्र सरकार ने एक बार फिर तीन तलाक़ बिल को लोकसभा में पेश किया है। इसे लेकर ख़ासा हंगामा हो रहा है। बता दें कि मोदी सरकार किसी भी सूरत में इस बिल को पास कराना चाहती है। बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में भी वादा किया था कि वह तीन तलाक़ को ख़त्म करने के लिए क़ानून बनाएगी।
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मोदी सरकार पिछली बार भी इस विधेयक को लेकर आई थी और तब सरकार ने विधेयक को लोकसभा में तो पास करा दिया था लेकिन कोशिश करने के बावजूद राज्यसभा में वह इसे पास नहीं करा पाई थी। बहरहाल, मोदी सरकार ने इस विधेयक को प्राथमिकता सूची में रखा है और उसकी कोशिश है कि वह इसी सत्र में इसे पास करा ले। लेकिन विपक्ष की ओर से इसे लेकर लगातार विरोध हो रहा है। सवाल उठ रहा है कि आख़िर मोदी सरकार इस बिल को लेकर इतनी हड़बड़ी में क्यों है और वह क्यों इसे जल्दी से जल्दी पास कराने पर आमादा है।
बिल को पेश करते हुए केंद्रीय क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि इस क़ानून से मुसलिम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा होगी। कांग्रेस की ओर से सांसद शशि थरूर ने कहा कि इस बिल से मुसलिम महिलाओं की हालत में कोई सुधार नहीं होगा और न ही उनके हितों की रक्षा होने वाली है। उन्होंने कहा कि केवल एक समुदाय को ध्यान में रखकर बिल क्यों लाया जा रहा है।
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एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने तीन तलाक़ बिल का विरोध करते हुए कहा कि यह आर्टिकल 14 और 15 का उल्लंघन है। ओवैसी ने कहा कि आपको मुसलिम महिलाओं से इतनी मोहब्बत है तो केरल की महिलाओं से आपको मोहब्बत क्यों नहीं है? आख़िर सबरीमला पर आपका रूख क्या है?विपक्ष के विरोध के बाद वोटिंग कराई गई क्योंकि विपक्ष ने ध्वनि मत से आपत्ति दर्ज कराई थी। वोटिंग के बाद तीन तलाक़ बिल के समर्थन में 186 वोट पड़े जबकि विरोध में 74 वोट पड़े। इसके बाद स्पीकर ओम बिड़ला ने केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद से बिल को पुनर्स्थापित करने का आदेश दिया।
किस बात का है विरोध
मुसलिम समाज में एक साथ तीन तलाक़ का विरोध कर रहे तमाम संगठनों का कहना है कि वे एक साथ तीन तलाक़ के तो ख़िलाफ़ हैं लेकिन ऐसे किसी क़ानून के पक्ष में नहीं हैं, जिसमें तलाक़ देने वाले को तीन साल के लिए जेल भेजने का प्रावधान हो।एक साथ तीन तलाक़ के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वाली महिला संगठनों की भी इस मुद्दे पर यही राय है। लेकिन इसके बावजूद सरकार बिल को मौजूदा स्वरूप में ही संसद में पास कराने पर अड़ी है। इसे लेकर सरकार की नीयत पर पहले से ही सवाल उठते रहे हैं।
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यहाँ ग़ौरतलब है कि जिन मुसलिम देशों ने एक साथ तीन तलाक़ पर पाबंदी लगाई हुई है, वहाँ भी तलाक़ देने वाले शौहर को जेल भेजने का प्रावधान नहीं है। दूसरी बात, देश में मुसलिम समुदाय के अलावा बाक़ी समुदायों में भी तलाक़ का प्रावधान तो है लेकिन किसी भी समुदाय में तलाक़ देने वाले व्यक्ति को जेल भेजने का प्रावधान नहीं है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि सरकार आख़िर मुसलिम समाज में ही तलाक़ देने वाले को जेल भेजने का प्रावधान क्यों करना चाहती है?
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