हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति और तबादले पर सुप्रीम कोर्ट कॉलीजियम के फ़ैसलों को लेकर इन दिनों ख़ासा विवाद चल रहा है। हाल ही में कॉलीजियम के उस फ़ैसले पर सवाल उठे थे जिसमें उसने केंद्र सरकार की आपत्ति के बाद गुजरात के जस्टिस अकील कुरैशी के मामले में अपनी ही सिफ़ारिश को पलट दिया था।
जस्टिस विजया ताहिलरमानी के मामले में भी ऐसा ही हुआ था और उन्हें मद्रास हाई कोर्ट से अपेक्षाकृत छोटे मेघालय हाई कोर्ट में भेजने के बाद विवाद हुआ था। इस फ़ैसले पर सुप्रीम कोर्ट के ही पूर्व जस्टिस मदन बी. लोकुर ने भी सवाल उठाए थे। जस्टिस अकील कुरैशी के मामले में तो गुजरात हाईकोर्ट एडवोकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष यतिन ओझा ने आरोप लगाया था कि यह संदेश देने की कोशिश हो रही है कि यदि आप सत्ताधारी पार्टी के ‘ख़िलाफ़’ फ़ैसले देंगे तो आपको इसके नतीजे भुगतने पड़ेंगे।
न्यायपालिका में चल रहे पूरे विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने भी अपनी राय रखी है और कहा है कि हाई कोर्ट के जजों के ख़िलाफ़ शिकायत आने पर उनका ट्रांसफ़र करना कोई प्रभावी समाधान नहीं है।
न्यायपालिका से जुड़ी ख़बरें प्रकाशित करने वाली वेबसाइट बार एंड बेंच के मुताबिक़, चंद्रचूड़ ने बीते मंगलवार को कहा, ‘हमारे संविधान में दो संभावनाओं की बात कही गई है। पहली यह कि ख़राब व्यवहार के लिए जज पर महाभियोग चलाया जाए और दूसरी यह कि अगर आपको किसी जज से दिक़्क़त है तो उसका ट्रांसफ़र कर दिया जाए और आमतौर पर ऐसा किया जाता है।’ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘जब हम न्यायिक आचरण की बात करते हैं तो यह ज़रूरी नहीं है कि महाभियोग हर स्थिति में कोई बेहतर क़दम साबित हो। उसी तरह ऐसे जज जिन्हें उस जगह से दिक़्क़त है, उनका ट्रांसफ़र करना भी कोई हल नहीं है।’
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ प्रोफ़ेसर टॉम गिन्सबर्ग और अजीज जेड हक़ के द्वारा लिखी गई किताब ‘संवैधानिक लोकतंत्र को कैसे बचाएँ’ की लांचिंग के मौक़े पर शिकागो विश्वविद्यालय के दिल्ली केंद्र में आयोजित कार्यक्रम में अपनी बात रख रहे थे। इस दौरान न्यायाधीशों की जवाबदेही और उनके ख़राब आचरण को लेकर उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों को अधिक जवाबदेह बनाने के लिए एक संतुलित तंत्र को तैयार करने की आवश्यकता है।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘लोकतंत्र एक ही बार में नष्ट नहीं होता बल्कि यह धीरे-धीरे होता है, जब हम कुछ छोटी बातों को ऐसे ही छोड़ देते हैं तो यह संवैधानिक लोकतंत्र के लिए ख़तरा होता है। जजों को इस पर ध्यान देना चाहिए कि इन छोटी बातों को किस तरह लागू किया जा सकता है।’ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि उन्हें हाई कोर्ट में एड हॉक जजों को नियुक्त नहीं करने का कोई कारण दिखाई नहीं देता।
यहाँ पर इकोनॉमिक्स इंटलिजेंस यूनिट नाम की संस्था की वर्ष 2017 में आई एक रिपोर्ट का ज़िक्र करना ज़रूरी होगा। रिपोर्ट में कहा गया था कि दुनिया के सिर्फ़ 19 देशों में लोकतंत्र पूरी तरह से कायम है और बाक़ी देशों में लोकतंत्र सही रूप में नहीं है और भारत भी इनमें से एक है। इसमें भारत 42वें स्थान पर था और यह पिछले वर्ष से 10 पायदान नीचे आ गया था।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने इस बात को भी स्वीकार किया कि न्यायपालिका और न्यायधीशों पर लगातार हमले हो रहे हैं और ऐसा सोशल मीडिया पर सिटीजन जर्नलिस्ट की ओर से ज़्यादा किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि आम लोगों के पास अपनी बात रखने की जगह है लेकिन जजों के पास आरोपों का जवाब देने के लिए ऐसा कोई प्लेटफ़ॉर्म नहीं है।
चंद्रचूड़ ने कहा कि अगर आप अदालतों को जवाबदेह बनाना चाहते हैं तो आपको यह समझने की आवश्यकता है कि आप अपने जजों पर भरोसा करें और आपको अदालतों पर भी भरोसा करने की ज़रूरत है। उन्होंने कहा कि अगर अदालतों से विश्वास ही ख़त्म हो गया तो इससे हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में ही बड़े मुश्किल हालात पैदा हो जायेंगे। उन्होंने न्यायपालिका की जिम्मेदारी और आज़ादी के बीच संतुलन बनाने पर जोर दिया।
‘असहमति लोकतंत्र के लिए सेफ़्टी वॉल्व’
हाल ही में जब मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगे थे तब भी जस्टिस चंद्रचूड़ ने अहम टिप्पणी की थी। जस्टिस चंद्रचूड़ ने एक चिट्ठी लिखी थी जिसमें उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की प्रतिष्ठा जैसे बेहद अहम मुद्दे को उठाया था और कहा था कि लोग हमारे पास इसलिए आते हैं क्योंकि उन्हें हम पर भरोसा है और उन्हें लगता है कि हम निष्पक्ष हैं। साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि महिला शिकायतकर्ता ने जिन वजहों से यौन उत्पीड़न मामले की जाँच से ख़ुद को अलग कर लिया है, उन्हें दूर किया जाए।
जब न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति और उनके तबादले की नीति को लेकर इतना विवाद चल रहा है और जस्टिस चंद्रचूड़ ने भी इस बात पर जोर दिया है कि जजों का ट्रांसफ़र करना किसी समस्या का हल नहीं है तो ज़रूरत इस बात की है कि जजों की नियुक्ति और तबादले की व्यवस्था को अधिक पारदर्शी बनाया जाए जिससे न्यायपालिका की छवि को नुक़सान न हो।
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