क्यों अहम हैं प्रशांत किशोर?
बता दें कि प्रशांत किशोर को चुनावी रणनीति बनाने में माहिर माना जाता है। प्रशांत किशोर की I-PAC (आई-पैक) नाम की कंपनी राजनीतिक दलों के चुनाव प्रचार की रणनीति बनाने का काम करती है। नरेंद्र मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए प्रशांत ने गुजरात के चर्चित कार्यक्रम 'वाइब्रैंट गुजरात' के आयोजन में अहम भूमिका निभाई थी। इसके बाद वह मोदी के क़रीब आए थे और 2014 के लोकसभा चुनावों में उन्होंने बीजेपी की ब्रांडिंग की थी। तब बीजेपी को मिली जीत का श्रेय प्रशांत किशोर की चुनावी रणनीति को दिया गया था। किशोर को 'चाय पर चर्चा' कार्यक्रम कराने का श्रेय भी दिया जाता है। इसके बाद 2015 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में भी प्रशांत किशोर ने अपना लोहा मनवाया। हाल ही में आई-पैक ने आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस के लिए भी काम किया था और वहाँ इस पार्टी को जोरदार सफ़लता मिली है। कुल मिलाकर प्रशांत किशोर के ममता बनर्जी के साथ मिलकर काम करने से बंगाल की लड़ाई बेहद दिलचस्प हो गई है।लेकिन इसमें दो पेच भी हैं। पहला पेच यह है कि 2020 में बिहार में विधानसभा के चुनाव होने हैं और अगर प्रशांत किशोर तृणमूल के लिए काम करने के लिए बंगाल चले गए तो फिर बिहार में वह जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के लिए कैसे प्रचार करेंगे क्योंकि किशोर जेडीयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी हैं, इसलिए उन्हें जेडीयू के लिए भी प्रचार करना होगा। ऐसे में उनके और बिहार के सीएम और जेडीयू मुखिया नीतीश कुमार के संंबंध ख़राब होने स्वाभाविक हैं।
इसे लेकर नीतीश कुमार ने कहा है कि जेडीयू कार्यकर्ताओं की पार्टी है, यह किसी एक व्यक्ति या नेता पर निर्भर नहीं है। नीतीश ने कहा है कि ममता बनर्जी की पार्टी के लिए काम करने के मामले में किशोर से स्थिति स्पष्ट करने के लिए कहा जाएगा।
बता दें कि बीजेपी ने इस बार लोकसभा चुनाव में जोरदार धमक के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। बीजेपी को राज्य में 18 सीटों पर जीत मिली है जबकि 2014 में वह सिर्फ़ 2 सीटें जीती थीं। जबकि तृणमूल 2014 में मिली 34 सीटों के बजाय 22 सीटों पर आ गई।
बीजेपी-तृणमूल आमने-सामने
लोकसभा चुनाव से पहले और चुनाव के दौरान भी बंगाल ही एक ऐसा राज्य था, जहाँ से लगातार राजनीतिक हिंसा की ख़बरें आई थीं। बीजेपी और तृणमूल दोनों एक-दूसरे पर उनके दलों के कार्यकर्ताओं की हत्या का आरोप लगाते रहे हैं। इसलिए यह तय है कि विधानसभा चुनाव में बीजेपी और तृणमूल में कड़ी टक्कर होगी।केंद्र में प्रचंड बहुमत के बाद दोबारा बीजेपी के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद ममता बनर्जी यह जानती हैं कि उन्हें बंगाल की सत्ता में वापसी के लिए बीजेपी के साथ पूरी ताक़त से लड़ाई लड़नी होगी।
बीजेपी में शामिल हो रहे नेता
लोकसभा चुनाव में बड़ी जीत मिलने के बाद पश्चिम बंगाल में लगातार दूसरे दलों के नेता बीजेपी में शामिल हो रहे हैं। शनिवार को गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के 17 पार्षद बीजेपी में शामिल हो गए। कुछ दिन पहले ही ममता बनर्जी को बड़ा झटका लगा था जब उनकी पार्टी के दो विधायक और 50 पार्षद बीजेपी में शामिल हो गए थे। इसके अलावा सीपीएम के भी एक विधायक ने बीजेपी का दामन थाम लिया था।बंगाल में बीजेपी नेताओं के हौसले बुलंद हैं। बंगाल बीजेपी प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय ने कहा है कि आने वाले दिनों में तृणमूल कांग्रेस से और विधायक बीजेपी में शामिल होंगे। बीजेपी नेताओं का दावा है कि 2021 में होने वाले विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को विपक्षी पार्टी का भी दर्जा नहीं मिलेगा। यह तो बात हुई चुनावी दावे की, लेकिन इतना तय है कि अगर प्रशांत किशोर ममता बनर्जी के लिए चुनावी रणनीति बनाते हैं तो इससे मुक़ाबला और कड़ा होगा। लेकिन सियासत का दुखद पहलू यह है कि राज्य में बीजेपी और तृणमूल के नेता एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गए हैं। दोनों दलों के बीच चल रहे खूनी संग्राम को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि बंगाल की सत्ता पर काबिज होने के लिए दोनों ही दल किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हैं।
अपनी राय बतायें