चाहे वैश्विक लोकतंत्र सूचकांक हो या फिर फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट या फिर वी-डेम इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट, लोकतंत्र के पैमाने पर गिरते स्तर ने लगता है कि मोदी सरकार को झकझोर दिया है! भले वह इन रिपोर्टों को सिरे से खारिज करती रही है, लेकिन अब ब्रिटेन के एक प्रमुख अखबार द गार्डियन ने रिपोर्ट दी है कि सरकार गुप्त तरीक़े से यह काम कर रही है कि किसी तरह उस रैंकिंग को सुधारा जाए। अख़बार ने आंतरिक रिपोर्टों का हवाला देते हुए लिखा है कि मोदी सरकार को 'दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र' के रूप में ख्याति के धुमिल होने की चिंता सता रही है।
रिपोर्ट में बैठकों के विवरणों के हवाले से कहा गया है कि कई वैश्विक रैंकिंग को सार्वजनिक रूप से खारिज करने के बावजूद सरकारी मंत्रालयों के अधिकारियों को भारत के प्रदर्शन की निगरानी करने के लिए नियुक्त किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार वरिष्ठ भारतीय अधिकारियों ने 2021 से कम से कम चार बैठकें की हैं, जिसमें इस बात पर चर्चा की गई है कि इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट द्वारा तैयार किए गए वैश्विक लोकतंत्र सूचकांक ने पिछले तीन वर्षों से दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश को 'त्रुटिपूर्ण लोकतंत्र' में क्यों डाउनग्रेड किया है।
इसमें कहा गया है कि अन्य रैंकिंग ने भी चिंताएँ बढ़ा दी हैं। 2021 में अमेरिका स्थित गैर-लाभकारी फ्रीडम हाउस ने भारत की स्थिति को एक स्वतंत्र लोकतंत्र से घटाकर 'आंशिक रूप से मुक्त लोकतंत्र' कर दिया। इस बीच, स्वीडन स्थित वी-डेम इंस्टीट्यूट भारत को 'चुनावी निरंकुशता' के रूप में वर्गीकृत करता है।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सार्वजनिक रूप से यह तर्क देते हुए इन रैंकिंग को खारिज कर दिया है कि दिल्ली को 'उपदेश देने की ज़रूरत नहीं है'। उन्होंने रैंकिंग पर पाखंड का आरोप लगाया और उन्हें दुनिया के 'स्व-नियुक्त संरक्षक' कहा।
नौकरशाह ने आगे कहा कि यह लोकतंत्र सूचकांक को अत्यधिक महत्व देता है क्योंकि इससे भारत की प्रतिष्ठा प्रभावित हुई। रिपोर्ट के अनुसार अधिकारी ने कहा, 'हाल ही में फरवरी में चिंताएं व्यक्त की गई थीं कि इन रैंकिंग को केवल राय के रूप में नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि अगर देश को निवेश के लिए राजनीतिक रूप से जोखिम वाली जगह के रूप में देखा जाएगा तो भारत में अंतरराष्ट्रीय व्यापार प्रभावित हो सकते हैं।'
अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार बैठक का नेतृत्व करने वाले अधिकारी ने कहा कि लोकतंत्र सूचकांक कश्मीर का विशेष दर्जा छीनने, 2020 में मुस्लिम विरोधी दंगों और गैर-मुस्लिम आप्रवासियों को नागरिकता देने वाले कानून से प्रभावित है। कश्मीर को विशेष दर्जा मुस्लिम-बहुल राज्य में अधिकारों की रक्षा के लिए दी गई थी। द गार्डियन ने कहा है कि इस रिपोर्ट के मामले में सरकार की ओर से प्रतिक्रिया मांगी गई है।
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