नरेंद्र मोदी सरकार के कामकाज के तरीकों, ध्रुवीकरण की राजनीति और अल्पसंख्यकों के प्रति उनके रवैए की आलोचना देश के अंदर तो होती ही थी, अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस पर खुल कर चर्चा होने लगी है। इससे भारत की साख को बट्टा लगता है। दुनिया की सबसे मशहूर पत्रिकाओं में से एक ‘द इकनॉमिस्ट’ ने अपने ताज़ा अंक की कवर स्टोरी भारत पर ही की है और उसे ‘इनटॉलरेंट इंडिया’ नाम दिया है।
‘नरेंद्र मोदी स्टोक्स डिवीजन्स इन द वर्ल्ड्स बिगेस्ट डेमोक्रेसी’ नाम से छपे इस लेख में विस्तार से बताया गया है कि सरकार ने चुनावी फ़ायदे के लिए किस तरह विभाजनकारी नीतियाँ बनाई और किस तरह समुदाय विशेष को निशाने पर लिया है।
नीयत पर सवाल
इसमें नागरिकता संशोधन क़ानून और नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजंस की ख़ास रूप से चर्चा की गई है, उसका विश्लेषण किया गया है और सरकार की नीयत पर गंभीर सवाल खड़े किए गए हैं।‘द इकनॉमिस्ट’ पत्रिका में नागरिकता संशोधन क़ानून पर विस्तार से चर्चा की गई है और कहा गया है कि बीजेपी की नीति ही इस तरह की है, उसने इसके पहले मंदिर का मुद्दा अपनाया था। पत्रिका में लिखा गया है, ‘आपको लगता होगा कि बीजेपी ने अनुमान लगाने में ग़लती की है। इसका चौतरफा विरोध हो रहा है। छात्रों, धर्मनिरपेक्ष लोगों और मोटे तौर पर सरकार की चापलूसी करने वाली मीडिया ने भी मोदी के ख़िलाफ़ बोलना शुरू कर दिया है। इसकी वजह यह है कि मोदी सहिष्णु, बहुधर्मी समाज की जगह कट्टर हिन्दूवादी राष्ट्र बनाना चाहते हैं।’
इस पत्रिका में कहा गया है कि बीजेपी पहले अयोध्या में राम मंदिर के मुद्दे पर राष्ट्रीय स्तर पर छा गई, मसजिद ढहा दी गई और कई जगह दंगे हुए। इसी तरह गुजरात में दंगे हुए तो मोदी ‘हीरो’ बन कर उभरे।
बीजेपी के लिए अमृत, देश के लिए ज़हर!
लेकिन इस मुद्दे पर ‘द इकनॉमिस्ट’ ने मोदी और बीजेपी की तीखी आलोचना की है। लेख में कहा गया है :
“
‘दुख की बात यह है कि जो कुछ बीजेपी के लिए चुनावी अमृत है, वही देश के लिए ज़हर है। संविधान में धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को कमज़ोर किया जा रहा है। मोदी के हाल की पहल से भारत के लोकतंत्र को नुक़सान पहुँचने का ख़तरा है और यह आने वाले कई दशकों तक रहेगा।’
'द इकनॉमिस्ट' के लेख का हिस्सा
हिन्दु-मुसलिम विभाजन से मोदी को लाभ
इंगलैंड से छपने वाली इस मशहूर पत्रिका में इस पर भी ज़ोर दिया गया है कि भारत की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है और हिन्दू-मुसलिम विभाजन से लोगों का ध्यान बँटाने में मदद मिलेगी। लेख में कहा गया है, ‘यह दुख की बात है कि धर्म और राष्ट्रीय पहचान के नाम पर बंटवारे से मोदी को फ़ायदा ही होगा। इससे पार्टी के कार्यकर्ताओं और हिन्दू राष्ट्रवादी समूहों को ऊर्जावान बनाए रखने में मदद मिलती है। यह अर्थव्यवस्था जैसे मुद्दों से भी लोगों को दूर रखता है, पिछले साल की ज़बरदस्त जीत के बाद से ही अर्थव्यवस्था जूझ रही है।’ इस लेख में यह भी कहा गया है कि मोदी यह जानते हैं कि मतदाताओं का एक समूह मुसलमानों को बदनाम करने, उन्हें देश में छिपे गद्दारों के रूप में चिह्नित करने और उन्हें पाकिस्तान-परस्त बनाने को पसंद करता है। इससे मोदी को सत्ता में बने रहने में सहूलियत होती है।
लेख में राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले की भी बात कही गई है और यह भी कहा गया है कि ‘
इस मामले के निपटारे के बाद बीजेपी को अब नई शिकायत की तलाश है। इसी वजह से बीजेपी को नागरिकता क़ानून का मुद्दा बहुत पसंद है। देश के सभी नागरिकों का रजिस्टर बनाने की कवायद कई साल तक चलती रहेगी, लोगों को भावनाओं को भड़काती रहेगी। उस सूची को नवीकरण होता रहेगा और उसे चुनौती दी जाती रहेगी। यह वातावरण बनाया जा रहा है कि देश के 80 प्रतिशत हिन्दुओं को उन ताक़तों से ख़तरा है, जिन्हें देखा नहीं जा सकता और अकेले मोदी ही उस ताक़त से लड़ सकते हैं।’ सीएए पर सवाल
लेख में कहा गया है : ‘दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में भारत की पहचान ख़तरे में है। इसमें कहा गया है, मोदी की नीतियाँ मुसलिम नागरिकों के अधिकारों का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन है। आख़िर क्यों एक धर्मनिरपेक्ष सरकार अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले उत्पीड़ित हिन्दुओं को तो शरण देती है, पर एक भी मुसलमान को पनाह नहीं देगी?’
इस लेख में यह भी कहा गया है कि नागरिकता क़ानून पर चल रहा विवाद तो मुसलमानों के ख़िलाफ़ चल रहे अभियान का नवीनतम हिस्सा भर है, बीजेपी पहले से ही कश्मीर घाटी में मुसलमानों को सामूहिक रूप से दंड दे रही है, उन्हें मनमर्जी तरीके से गिफ़्तार किया गया, उन पर कर्फ़्यू थोपा गया और 5 महीनों तक इंटरनेट ब्लैकआउट कर दिया गया।
गाँधी की चर्चा
‘द इकनॉमिस्ट’ के इस लेख में महात्मा गाँधी की चर्चा की गई है और कहा गया है कि किस तरह मोदी सरकार उनके नाम को बदनाम कर रही है। लेख में कहा गया है, ‘कई मुसलमानों को इसलिए पीट-पीट कर मार डाला गया है कि उन्होंने कथित रूप से किसी हिन्दू को अपमानित किया है, मसलन, किसी हिन्दू महिला से प्रेम किया या गाय को काटा। बीच-बीच में मुसलिम-विरोधी भावना की वजह से गुजरात जैसे नरसंहार होते रहे हैं, जिसमें 1000 से ज़्यादा लोग मारे गए।’
इसमें इससे भी अधिक बुरी बात कही गई है : ‘इसकी आशंका है कि बीजेपी हिन्दुओं को भड़का कर और मुसलमानों को गुस्सा दिला कर फिर रक्तपात करवाए।’
बेकाबू हिन्दू!
इस लेख में कश्मीर से लेकर पाकिस्तान और कई दूसरे मुद्दों पर हिन्दुओं को भड़काने की बात कही गई है और यह डर जताया गया है कि हिन्दू भड़क कर बेकाबू हो सकते हैं। कहा गया है, ‘मोदी यह सोचते होंगे कि अपनी राजनीतिक ज़रूरतों के हिसाब से वह भावनाओं को भड़का कर या उसे कम कर सांप्रद्रायिक तनाव को काबू में रख सकते हैं। यदि वे धार्मिक कट्टरता का फ़ायदा उठा रहे हों तो ज़्यादातर हिन्दू वास्तविक रूप से धर्म परायण हैं। वे आसानी से शांत नहीं होते जैसा गुजरात में देख गया है। पाकिस्तान के बारे में युद्ध की स्थिति की तरह बढ़ा-चढ़ा कर कह कर, कश्मीर में लोगों को कुचल कर और नागरिकता पर भेदभावपूर्ण नीति अपना कर मोदी ने धर्मान्ध लोगों की अपेक्षाएँ बढ़ा दी हैं।’‘द इकनॉमिस्ट’ का यह लेख ऐसे समय आया है जब नरेंद्र मोदी सरकार के ख़िलाफ़ पूरे देश में अलग-अलग जगहों पर आन्दोलन चल रहा है। छात्र. युवा, आम जनता, महिलाएं और समाज के दूसरे तबकों के लोग सड़कों पर हैं। यह लेख अहम इसलिए भी है कि भारतीय मीडिया का बड़ा हिस्सा सरकार के गुणगान करने और इन्हीं मुद्दों पर सरकार का बचाव करने में लगी हुई है। सरकार बातचीत शुरू करने के बजाय बार-बार ज़ोर देकर कहती है कि वह नागरिकता क़ानून पर एक इंच भी पीछे नही हटेगी।
अहम सवाल यह भी है कि विदेशों में भारत की छवि लगातार ख़राब हो रही है। धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, उदारवादी, समन्वयवादी, सर्वग्राही देश की छवि बदल रही है। अब धीरे-धीरे भारत की छवि कट्टर हिन्दूवादी और मुसलमानों से नफ़रत करने वाले देश की बन रही है।
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