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यह कहा जाना चाहिए कि मामला अभी भी हाईकोर्ट में लंबित है। इसलिए, हम इस बात पर विचार नहीं कर रहे हैं कि क्या सीतलवाड़ जमानत पर रिहा है या नहीं और बहरहाल, हाईकोर्ट को उसी पर फैसला लेना है। हम केवल इस तरह के आवेदन की पेंडेंसी के दौरान अपीलकर्ता के हिरासत में होने पर विचार कर रहे हैं। इसलिए उसे अंतरिम जमानत दी जाती है।
-सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस की बेंच, 2 सितंबर को तीस्ता को अंतरिम जमानत देते हुए आदेश में लिखा
सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस यूयू ललित की बेंच ने शुक्रवार 2 सितंबर को सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ की जमानत याचिका पर उन्हें अंतरिम जमानत दे दी। अदालत ने गुरुवार 1 सितंबर को ही संकेत दे दिया था कि गुजरात पुलिस की बातों में इस गिरफ्तारी को लेकर बहुत दम नहीं है, इसलिए क्यों न तीस्ता को जमानत दे दी जाए। लेकिन सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता के बहुत आग्रह पर सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई शुक्रवार 2 बजे तक के लिए टाल दी थी। कोर्ट में शुक्रवार को बमुश्किल दो घंटे बहस हुई और चीफ जस्टिस ने अंतरिम जमानत का आदेश दे दिया।
तीस्ता पर आरोप है कि 2002 के गुजरात दंगों के संबंध में मामले दर्ज करने के लिए दस्तावेजों में साजिश की गई थी। सुप्रीम कोर्ट में रिटायर्ड जस्टिस ए एम खानविलकर की कोर्ट ने जकिया जाफरी से जुड़ी याचिका को खारिज करते हुए अपने फैसले में लिखा था कि ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई करना चाहिए। इसके अगले ही दिन गुजरात पुलिस ने तीस्ता को गिरफ्तार कर लिया। हाईकोर्ट ने तीस्ता की जमानत याचिका नामंजूर कर दी। उसी को तीस्ता ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। चीफ जस्टिस यू.यू. ललित की बेंच में जस्टिस एस. रवींद्र भट और जस्टिस सुधांशु धूलिया भी थे।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने इस मामले को एक सामान्य अपराध माना, जिसमें आरोपी को आसानी से जमानत मिल सकती है। तीस्ता के वकील कपिल सिब्बल की इस दलील को सुप्रीम कोर्ट ने तरजीह दी कि इस केस में गुजरात सरकार और गुजरात पुलिस के पास सिवाय जस्टिस खानविलकर के फैसले की टिप्पणी के अलावा कोई सबूत नहीं है। चीफ जस्टिस की बेंच ने गुरुवार को कहा भी था कि इस मामले में कोई अपराध नहीं है जो इस शर्त के साथ आता हो कि यूएपीए, पोटा की तरह जमानत नहीं दी जा सकती है। ये सामान्य आईपीसी अपराध हैं ... ये शारीरिक अपराध वाले अपराध नहीं हैं। ये अदालत में दायर दस्तावेजों के अपराध हैं।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इस बात को रेखांकित किया कि गुजरात हाई कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई 6 हफ्ते बाद क्यों रखी। इस केस में गुजरात हाई कोर्ट ने 3 अगस्त को नोटिस जारी किया था और अगली सुनवाई 19 सितंबर को रखी थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर हैरानी जताई। चीफ जस्टिस ने सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि क्या गुजरात हाईकोर्ट में यह स्टैंडर्ड प्रेक्टिस है। हमें एक ऐसा मामला दें, जहां एक महिला इस तरह के मामले में शामिल रही हो और हाईकोर्ट ने 6 सप्ताह में जवाब मांगा हो?
अदालत ने शुक्रवाक को साफ तौर पर कहा कि गुजरात हाईकोर्ट को मामले की पेंडेंसी के दौरान ही तीस्ता की अंतरिम जमानत की याचिका पर विचार करना चाहिए था। लेकिन उसने मामले को छह हफ्ते के लिए आगे बढ़ा दिया।
सुप्रीम कोर्ट में तीस्ता के वकील कपिल सिब्बल ने कहा, तीस्ता के खिलाफ एफआईआर में अदालत की टिप्पणियों के अलावा और कुछ नहीं है। उस पर 2002 के दंगों के मामले में मामला दर्ज करने के लिए जाली दस्तावेजों को बनाने का आरोप है, लेकिन पुलिस ने यह यह नहीं बताया कि कौन से दस्तावेज। पुलिस का यह भी कहना है कि तीस्ता ने एक बुजुर्ग जकिया जाफरी की भावनाओं का शोषण किया, हालांकि खुद जकिया जाफरी ने ऐसा कुछ नहीं कहा है।
अदालत ने भी कल एसजी तुषार मेहता से पूछा भी था कि तीस्ता दो महीने से अधिक समय से जेल में थीं, फिर भी कोई आरोप पत्र दायर नहीं किया गया।
बहरहाल, तीस्ता सीतलवाड़ जेल की सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद शनिवार को बाहर आ सकती हैं।
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