दिल्ली की एक अदालत ने बुधवार को आम आदमी पार्टी के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन को दिल्ली दंगों के दौरान हुए आगजनी के एक मामले में बरी कर दिया। अदालत ने ताहिर हुसैन के साथ ही 9 अन्य लोगों को भी इस मामले में बरी किया है। हालांकि ताहिर हुसैन पर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने, आईपीसी की धाराओं के तहत दंगा करने, गैर कानूनी तरीके से लोगों को इकट्ठा करने, आपराधिक साजिश रचने सहित कई मामलों में मुकदमा चलता रहेगा।
अदालत ने इन सभी मामलों को जांच के लिए चीफ मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत को भेज दिया।
अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि यह साफ दिखाई देता है कि ताहिर हुसैन व अन्य के खिलाफ आगजनी की धारा 436 को बिना कुछ सोचे समझे ही जोड़ दिया गया इसलिए इन सभी अभियुक्तों को आगजनी के आरोपों से बरी किया जाता है। हुसैन दंगों को लेकर कई मामलों का सामना कर रहे हैं।
इस मामले में ताहिर हुसैन के अलावा मो. शादाब, शाह आलम, रियासत अली, गुलफाम, राशिद, मो. रिहान, मो. आबिद, अरशद कय्यूम और इरशाद अहमद का भी नाम था।
क्या था मामला?
दयालपुर थाने की पुलिस को 25 फरवरी 2020 को एक पीसीआर कॉल मिली थी। इसमें कहा गया था कि ताहिर हुसैन के घर की छत पर लगभग 100 लोग खड़े थे और वे हिंदू समुदाय की संपत्तियों पर पेट्रोल बम फेंक रहे थे। मामले में शिकायतकर्ता जय भगवान ने कहा था कि दंगों के कारण उसे 35000 का नुकसान हुआ है। इसके बाद पुलिस ने सितंबर 2021 में जय भगवान का बयान दर्ज किया था और इस बयान में जय भगवान ने अभियुक्तों के खिलाफ आगजनी करने का आरोप लगाया था।
ताहिर हुसैन की ओर से पेश हुए वकील ने अदालत में कहा था कि उनके मुवक्किल के खिलाफ आगजनी का कोई आरोप नहीं लगाया गया है।
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सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि किसी के लिए भी यह पता करना मुश्किल है कि यह मुकदमा किस घटना के लिए दर्ज किया गया है और इस मामले में चार्जशीट दायर कर दी गई है। अदालत ने देखा कि दूसरी चार्जशीट में एसएसपी ने जय भगवान की शिकायत को दर्ज किया है। अदालत ने गौर किया कि इस शिकायत को दर्ज करने को लेकर कई काट-छांट की गई है।
दिल्ली पुलिस ने कड़कड़डूमा अदालत में दाखिल की गई चार्जशीट में कहा था कि उत्तरी दिल्ली के चांद बाग इलाक़े में हुए दंगे में ताहिर हुसैन की अहम भूमिका थी। चार्जशीट में यह भी कहा गया था कि ताहिर हुसैन ने बड़े पैमाने पर दंगे की साजिश रची थी।
ताहिर के वकील ने दिल्ली दंगों के दौरान हुई सुनवाइयों में दिल्ली की एक अदालत से कहा था कि अदालत को गुमराह किया जा रहा है और उनके मुवक्किल दिल्ली दंगों के शिकार बने हैं। ताहिर हुसैन ने कहा था कि वह बेगुनाह हैं।
तीन दिन तक चले थे दंगे
उत्तर-पूर्वी दिल्ली में 23 फरवरी, 2020 को दंगे शुरू हुए थे और ये तीन दिन यानी 25 फ़रवरी तक चले थे। इस दौरान यह इलाक़ा बुरी तरह अशांत रहा और दंगाइयों ने वाहनों, घरों और दुकानों में आग लगा दी थी। जाफराबाद, वेलकम, सीलमपुर, भजनपुरा, गोकलपुरी और न्यू उस्मानपुर आदि इलाक़ों में फैल गए इस दंगे में 53 लोगों की मौत हुई थी और 581 लोग घायल हो गए थे।
पुलिस जांच पर अदालत ने उठाए सवाल
दिल्ली दंगों की पुलिस जांच पर अदालतें पहले भी सवाल खड़े कर चुकी हैं। पिछले साल सितंबर महीने में एक अदालत ने कहा था कि पुलिस ठीक से जांच करने में विफल रही है। अदालत ने पुलिस जांच को संवेदनहीन और निष्क्रिय बताया था। अदालत ने कहा था कि पुलिस की ऐसी जांच देशवासियों के पैसे की बर्बादी है।
अदालत ने तो यहां तक कह दिया था कि पुलिस ने सिर्फ़ अदालत की आंखों पर पर्दा डालने की कोशिश की है। कई बार तो अदालत ने जांच को एकतरफ़ा बताया और टिप्पणी की कि बिना किसी सबूत के ही लोगों को आरोपी बना दिया गया।
पिछले साल सितंबर में ही दंगे से जुड़े एक अन्य मामले में अदालत ने सुनवाई के दौरान कहा था कि एक ही जैसी घटना में पांच अलग-अलग एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती हैं। अदालत ने इसे सुप्रीम कोर्ट के द्वारा तय किए गए नियमों के ख़िलाफ़ बताया था और चार एफआईआर को रद्द कर दिया था।
पिछले साल जुलाई महीने में दिल्ली की एक अदालत ने दिल्ली दंगों के दौरान दिल्ली पुलिस के कामकाज और उसके रवैये पर गंभीर टिप्पणी की थी। अदालत ने कहा था कि वह दिल्ली पुलिस के 'उदासीन रवैए' से दुखी है। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने दिल्ली पुलिस के रवैए को 'लापरवाही भरा' बताते हुए कहा था कि उसने दिल्ली में हुए दंगों के दौरान मदीना मसजिद में हुई आगजनी की अलग एफआईआर की जानकारी तक नहीं दी थी।
पिछले साल मार्च महीने में दिल्ली हाई कोर्ट ने एक अभियुक्त के कथित कबूलनामे के लीक होने की जांच रिपोर्ट पर पुलिस को फटकार लगाते हुए कहा था कि यह 'आधा-अधूरा और बेकार काग़ज़ का टुकड़ा है।'
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