इसे चूक कहें या पार्टी नेतृत्व की अप्रत्यक्ष आलोचना, बिहार से राज्यसभा सदस्य चुने गए बीजेपी नेता सुशील मोदी ने पार्टी के दिवंगत नेता अरुण जेटली की जयंति पर जो कुछ कहा, उससे बीजेपी खुश तो नहीं ही हुई होगी।
सुशील मोदी ने कहा कि यदि अरुण जेटली जीवित रहे होते तो किसानों का आन्दोलन इतना लंबा नहीं चला होता।
बता दें कि कृषि क़ानून 2020 के खिलाफ़ किसान आन्दोलन एक महीने से अधिक समय से चल रहा है। दिल्ली की सीमा से सटे इलाक़ों में हज़ारों किसान डटे हुए हैं, सरकार के साथ उनकी छह दौर की बातचीत नाकाम हो चुकी है। किसान कृषि क़ानूनों को रद्द करने की माँग पर अड़े हुए हैं, लेकिन सरकार किसी कीमत पर उन क़ानूनों को वापस लेने पर राज़ी नहीं है। मंगलवार को अगली बातचीत होगी, पर इसे लेकर भी किसान संगठनों को बहुत उम्मीद नहीं है।
क्या कहा सुशील मोदी ने?
ऐसे में बिहार के इस पूर्व मुख्यमंत्री ने जो कुछ कहा, वह बेहद अहम हैं। उन्होंने कहा,
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"किसानों को जिस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, जिस पर वे आन्दोलन कर रहे हैं, यदि अरुण जेटली जीवित होते तो वे निश्चित रूप से इसका कोई समाधान ज़रूर ढूंढ निकालते।"
सुशील मोदी, राज्यसभा सदस्य, बीजेपी
पार्टी नेतृत्व की आलोचना
यह बयान अहम इसलिए भी है कि सुशील मोदी को इस बार बिहार का उप-मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया। वे नाराज़ हो गए थे। उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा था कि वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता आजीवन रहेंगे और उन्हें कोई इस पद से नहीं हट सकता।
सुशील मोदी राज्यसभा का सदस्य बन चुके हैं, समझा जाता है कि उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह दी जाएगी। उसके ठीक पहले इस तरह का बयान कई लोगों को हजम नहीं होगा।
इसे परोक्ष रूप से मौजूदा बीजेपी नेतृत्व और ख़ास कर गृह मंत्री अमित शाह की आलोचना समझा जा रहा है। किसानों से सरकारी स्तर पर बातचीत कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर कर रहे हैं, पर इस पूरे मामले को अमित शाह ही देख रहे हैं।
लेकिन सवाल यह उठता है कि जिस अरुण जेटली के बारे में सुशील मोदी ने यह दावा किया है, वे ख़ुद किसानों के बारे में क्या सोचते थे।
क्या कहा था जेटली ने?
उस समय विपक्षी दल बीजेपी के राज्यसभा सदस्य के रूप में कांग्रेस की मनमोहन सिंह सरकार के प्रस्तावों का ज़ोरदार विरोध करते हुए अरुण जेटली ने जो कुछ कहा था, आज कृषि क़ानून 2020 का विरोध करने वाले बिल्कुल वही बात कहते हैं।
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अरुण जेटली ने 6 दिसंबर, 2012 को राज्यसभा में कहा था, "निजी कंपनियों को कृषि क्षेत्र में अनुमति देने और सीधे किसानों से कृषि उत्पाद खरीदने से यूरोप और अमेरिका के किसान बर्बाद हो चुके हैं। अमेरिकी सरकार हर साल 400 अरब डॉलर की मदद सब्सिडी और दूसरे मद में किसानों को देती है ताकि वे किसी तरह जीवित रहें। बिचौलयों को हटाने और निजी कंपनियों को सीधे किसानों से सामान लेने का यह प्रयोग जब अमेरिका, यूरोप में नाकाम रहा, सरकार को ऐसा क्यों लगता है कि भारत में कामयाब होगा?"
लेकिन आज कृषि क़ानूनों के विरोधी बिल्कुल यही तर्क दे रहे हैं और बीजेपी सरकार जो कह रही है, वह 2012 में कांग्रेस पार्टी कहा करती थी।
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