लॉकडाउन में फँसे दिहाड़ी मज़दूरों के पास एक दिन के लायक भी खाने-पीने की चीजें नहीं बची हैं, उन्हें यह उम्मीद भी नहीं है कि लॉकडाउन ख़त्म होने के तुरन्त बाद स्थिति में सुधार होगा और उन्हें काम मिल जाएगा। एक सर्वे में यह पाया गया है।
इंडियन एक्सप्रेस ने ग़ैर सरकारी संगठन ‘जन साहस’ की ओर से 27-29 मार्च को किए एक सर्वे के हवाले से यह ख़बर दी है।
खाने को कुछ नहीं
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 3,196 दिहाड़ी मज़दूरों का सर्वे किया गया, जिससे बहुत ही भयावह तसवीर उभर कर सामने आई है। यह पाया गया कि लगभग 92.50 प्रतिशत दिहाड़ी मज़दूरों के पास एक से तीन हफ़्तों से कोई काम नहीं है। ‘जन साहस’ ने उत्तर और मध्य भारत के दिहाड़ी मज़दूरों से टेलीफ़ोन पर बात कर सर्वे किया है।
लॉकडाउन में फंसे 42 प्रतिशत मज़दूरों ने सर्वे के दिन कहा था कि उनके पास एक दिन का भी खाने का सामान नहीं बचा है, जबकि उनके सामने लॉकडाउन का बाकी समय पड़ा हुआ ही है।
लॉकडाउन बढ़ा तो?
सर्वे में लगभग 66 प्रतिशत लोगों ने कहा कि ‘यदि लॉकडाउन 21 दिन के तय समय से बढ़ा दिया गया तो वे एक हफ़्ते के लिए भी घर का खर्च नहीं निकाल पाएंगे।’ सर्वे में एक-तिहाई लोगों ने कहा कि ‘वे अभी भी उन्हीं शहरों में फंसे हुए हैं, जहाँ वे काम की तलाश में गए थे। सर्वे में लगभग आधे लोगों ने कहा कि वे अपने गाँव तो पहुँच चुके हैं, पर वहाँ उन्हें दूसरी तरह की दिक्क़तों का सामना करना पड़ रहा है, मसलन, उनके पास राशन नहीं है, वे बाहरी दुनिया से पूरी तरह कटे हुए हैं।
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक़, लगभग 31 प्रतिशत मज़दूरों ने कहा कि उन्होंने घर के खर्चे के लिए क़र्ज़ ले रखे हैं, पर उन्हें रोज़गार नहीं मिला तो उनके लिए यह क़र्ज़ चुकाना मुश्किल होगा। इनमें से ज़्यादातर लोगों ने स्थानीय सूदखोरों से पैसे ले रखे हैं, सिर्फ़ एक-चौथाई लोगों ने बैंक से क़र्ज़ लिए हैं।
लगभग 79 प्रतिशत मज़दूरों ने कहा कि वे जो क़र्ज़ ले रखे हैं, वह नहीं चुका पाएंगे क्योंकि उनके पास रोज़गार ही नहीं है। वहीं, लगभग आधे लोगों ने आशंका जताई है कि क़र्ज़ नहीं चुकाने की वजह से सूदखोर उनकी पिटाई कर सकते हैं।
केंद्र सरकार का निर्देश
केंद्रीय श्रम व रोज़गार मंत्रालय ने 24 मार्च को एक निर्देश जारी कर सभी राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों से कहा था कि वे सभी दिहाड़ी मज़दूरों के खाते में सीधे पैसे डालें। ‘बिल्डिंग एंड अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स सेस एक्ट’ के तहत श्रमिक कल्याण बोर्डों के पास पैसे जमा होते रहते हैं। केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों और केंद्र शासित क्षेत्रों के प्रशासकों से कहा कि वे इस ‘सेस’ से एकत्रित हुए पैसे से यह रकम निकाल कर मज़दूरों को दें। राज्य सरकारों ने कह रखा है कि इस अधिभार यानी सेस से उनके पास 32 हज़ार करोड़ रुपए जमा हुए हैं।
‘जन साहस’ के इस सर्वेक्षण में यह भी पाया गया कि इन मज़दूरों को तुरन्त राशन की ज़रूरत है, इसके अलावा उन्हें तुरन्त रोज़गार का आश्वासन भी चाहिए।
लगभग 83 प्रतिशत मज़दूरों ने कहा कि लॉकडाउन ख़त्म होने के तुरन्त बाद उन्हें काम नहीं मिलने जा रहा है। लगभग 80 प्रतिशत लोगों ने कहा कि 21 दिनों के लॉकडाउन के बाद भी उनके पास खाने को कुछ नहीं होगा, वे अपना परिवार नहीं चला पाएंगे।
उचित मज़दूरी नहीं
सर्वे में पता चला कि लगभग 55 प्रतिशत लोगों को मज़दूरी में रोज़ाना 200-400 रुपए मिलते हैं और उनके परिवार में औसतन चार लोग हैं। इसके अलावा 39 प्रतिशत लोगों को रोज़ 400-600 रुपए मिलते हैं।
इसका मतलब यह है कि ज़्यादातर मज़दूरों को उचित मज़दूरी नहीं मिलती है, उन्हें कम पैसे दिए जाते हैं। दिल्ली में कुशल मज़दूरों की मज़दूरी 692 रुपए, अर्द्ध कुशल की 629 रुपए और अकुशल की मज़दूरी 571 रुपए है।
कितने हैं दिहाड़ी मज़दूर?
देश के सकल घरेलू उत्पाद में निर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी 9 प्रतिशत है, देश के 5.50 करोड़ दिहाड़ी मज़दूरों में सबसे ज़्यादा इसी क्षेत्र में काम करते हैं। इस सेक्टर में काम की तलाश में सालाना लगभग 90 लाख लोग गाँव छोड़ कर शहर आते हैं। साल 2011 की जनगणना के अनुसार देश की लगभग 37 प्रतिशत आबादी आंतरिक प्रवासियों की है, यानी वे लोग जो काम की तलाश में अपने राज्य से दूसरे राज्य जाते हैं। यह संख्या क़रीब 45 करोड़ है।
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