सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार 24 जुलाई को शंभू बॉर्डर पर यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश देते हुए कहा कि किसानों और सरकार के बीच विश्वास की कमी है। इसलिए कोर्ट एक स्वतंत्र समिति के गठन का प्रस्ताव रखती है, जिसमें प्रतिष्ठित व्यक्तियों को शामिल किया जाएगा ताकि प्रदर्शनकारियों तक उनकी मांगों का समाधान खोजा जा सके। जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने कहा कि एक "तटस्थ अंपायर" की जरूरत है जो किसानों और सरकार के बीच विश्वास पैदा कर सके। इस बेंच में जस्टिस दीपांकर दत्ता और उज्ज्वल भुइयां भी शामिल हैं।
सुप्रीम कोर्ट बेंच ने कहा कि “आपको किसानों तक पहुंचने के लिए कुछ कदम उठाने होंगे। अन्यथा वे दिल्ली क्यों आना चाहेंगे? आप यहां से मंत्रियों को भेज रहे हैं और उनके अच्छे इरादों के बावजूद विश्वास की कमी है।”
अदालत ने कहा कि “एक सप्ताह के भीतर उचित निर्देश दिए जाएं। तब तक शंभू सीमा पर स्थिति को बिगड़ने से रोकने के लिए सभी पक्षों को वहां यथास्थिति बनाए रखने दें।”
सुप्रीम कोर्ट हरियाणा सरकार की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उसे अंबाला के पास शंभू सीमा पर एक सप्ताह के भीतर बैरिकेड हटाने के लिए कहा गया था। जहां किसान 13 फरवरी से डेरा डाले हुए हैं।
सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि वह केवल हरियाणा को हाईकोर्ट के निर्देश पर रोक की मांग कर रहे हैं। उन्होंने कहा, "एक कल्याणकारी राज्य के रूप में भी, हम संवेदनशील मामलों से निपटने के दौरान अप्रिय चीजों को बर्दाश्त नहीं कर सकते। ये केवल राष्ट्रीय राजमार्ग पर प्रतिबंधित हैं। कोई भी अधिनियम इसकी अनुमति नहीं देता है।" पंजाब के अटॉर्नी जनरल गुरमिंदर सिंह ने कहा कि राजमार्ग नाकेबंदी का राज्य की अर्थव्यवस्था पर भारी प्रभाव पड़ा है।
किसान आंदोलन फरवरी में शुरू हुआ था। संयुक्त किसान मोर्चा (अराजनीतिक) और किसान मजदूर मोर्चा संगठनों द्वारा शुरू किए गए आंदोलन के तहत किसान दिल्ली कूच करना चाहते थे। लेकिन हरियाणा सरकार ने उन्हें शंभू बॉर्डर पर रोक दिया। किसानों ने उसके बाद खनौरी (जींद) बॉर्डर से हरियाणा में घुसने की कोशिश की लेकिन उन्हें रोक दिया गया। इस दौरान हिंसा की कई घटनाएं हुईं।
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