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नफरती भाषण पर कार्रवाई करें या नतीजे भुगतें: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को नफरती भाषण पर बेहद सख्त रुख अपनाया है। इसने कहा है कि आज के जमाने में भी धर्म के नाम पर कैसी-कैसी बयानबाजी हो रही है। अदालत ने नफ़रती भाषण देने वालों को तो चेताया ही, उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं करने वाले राज्यों को भी कार्रवाई की चेतावनी दी है।

नफरती भाषणों को लेकर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्य ऐसे मामलों के ख़िलाफ़ खुद कार्रवाई करें या अवमानना ​​के आरोपों का सामना करने को तैयार रहें। अदालत ने कहा, 'अगर अधिकारी कार्रवाई करने में विफल रहते हैं तो अवमानना ​​की कार्रवाई शुरू की जाएगी।' अदालत ने कहा, 'यह 21वीं सदी है। धर्म के नाम पर हम कहाँ पहुँच गए हैं?' इसने कहा कि भारत में स्थिति चौंकाने वाली है क्योंकि इस देश को धर्म-तटस्थ माना जाता रहा है।

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अदालत ने कहा कि जब तक विभिन्न धार्मिक समुदाय सद्भाव से नहीं रहेंगे तब तक बंधुत्व कायम नहीं हो सकता है। 

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस केएम जोसेफ और ऋषिकेश रॉय की पीठ ने दिल्ली, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के सरकारों को निर्देश दिया कि वे अपने अधिकार क्षेत्र में हुए नफ़रती भाषण के अपराधों पर की गई कार्रवाई के बारे में अदालत के समक्ष एक रिपोर्ट दाखिल करें। कोर्ट ने निर्देश दिया कि इन सरकारों को किसी भी शिकायत का इंतज़ार किए बिना, किसी भी नफ़रती भाषण वाले अपराध के खिलाफ स्वत: कार्रवाई करनी चाहिए।

यह पीठ भारत में मुसलिम समुदाय को निशाना बनाने व आतंकित करने के बढ़ते ख़तरे को रोकने के लिए तत्काल हस्तक्षेप करने की माँग वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

अदालत ने साफ़ कहा कि मामले स्वत: पंजीकृत किए जाने चाहिए और अपराधियों के विरुद्ध क़ानून के अनुसार कार्यवाही की जानी चाहिए। नफ़रती भाषा बोलने वाले के धर्म की परवाह किए बिना कार्रवाई की जानी चाहिए।
अदालत ने चेतावनी दी कि निर्देशों के अनुसार कार्रवाई करने में किसी भी तरह की हिचकिचाहट को अदालत की अवमानना ​​माना जाएगा।
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लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, शीर्ष अदालत की पीठ ने कहा, 'भारत का संविधान भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र और बिरादरी के रूप में देखता है, व्यक्ति की गरिमा, देश की एकता और अखंडता को सुनिश्चित करना प्रस्तावना में निहित मार्गदर्शक सिद्धांत हैं। बंधुत्व तब तक नहीं हो सकता जब तक कि विभिन्न धर्मों के समुदाय के सदस्य या जातियां सद्भाव से रहने में सक्षम हैं।'

याचिकाकर्ता ने चिंता व्यक्त की है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की गई है और ऐसे उल्लंघन केवल बढ़े हैं।

इस चिंता को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने आदेश में कहा, 'हमें लगता है कि अदालत का मौलिक अधिकारों की रक्षा करने और संवैधानिक मूल्यों, विशेष रूप से क़ानून के शासन और राष्ट्र के धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक चरित्र की रक्षा और संरक्षण करने का कर्तव्य है।'

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याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने हाल ही में 'हिंदू सभा' को एक उदाहरण के रूप में पेश किया, जहाँ पश्चिमी दिल्ली के भाजपा सांसद परवेश वर्मा ने मुसलिमों के पूर्ण बहिष्कार का आह्वान किया था। सिब्बल ने कहा, 'हमने कई शिकायतें दर्ज की हैं। यह अदालत या प्रशासन स्थिति रिपोर्ट मांगने के अलावा कभी कार्रवाई नहीं करता है। ये लोग हर रोज कार्यक्रमों में भाग ले रहे हैं।' न्यायाधीशों ने उसी कार्यक्रम में एक अन्य वक्ता जगत गुरु योगेश्वर आचार्य की टिप्पणियों को भी पढ़ा, जिन्होंने 'हमारे मंदिरों पर उंगली उठाने' के लिए 'गला काटने' का भड़काऊ भाषण दिया था।

बता दें कि दो दिन पहले ही संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने अपनी भारत यात्रा के दौरान यहाँ नफ़रती भाषणों को लेकर चेताया था। गुटेरेस ने मुंबई में एक भाषण में कहा था, 'मानवाधिकार परिषद के एक निर्वाचित सदस्य के रूप में भारत की वैश्विक मानवाधिकारों को आकार देने और अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों सहित सभी व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा और बढ़ावा देने की ज़िम्मेदारी है।' उन्होंने अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ बढ़ते नफरती भाषणों को लेकर भी चेताया था।

उन्होंने कहा था कि भारत को 'पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, छात्रों और शिक्षाविदों के अधिकारों और स्वतंत्रता की रक्षा करके और भारत की न्यायपालिका की निरंतर स्वतंत्रता सुनिश्चित करना चाहिए। उन्होंने कहा, 'लैंगिक समानता को आगे बढ़ाने के लिए बहुत कुछ करने की ज़रूरत है।'

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क़मर वहीद नक़वी
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