सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर में जारी पाबंदियों को लेकर फ़ैसला सुना दिया है। कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि लोगों के अधिकारों की रक्षा करना बेहद ज़रूरी है। कोर्ट ने कहा कि कश्मीर में लंबे समय तक हिंसा हुई है और हम कोशिश करेंगे कि सुरक्षा के मुद्दे पर मानवाधिकारों और स्वतंत्रता के बीच तालमेल बना रहे। कोर्ट ने कहा है कि कश्मीर की राजनीति में दख़ल देना हमारा काम नहीं है।
कोर्ट ने कहा, ‘बिना वजह इंटरनेट पर रोक नहीं लगाई जा सकती। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतांत्रिक व्यवस्था का बेहद अहम अंग है। इंटरनेट इस्तेमाल करने की आज़ादी लोगों का मूलभूत अधिकार है। इंटरनेट बंद करने की न्यायिक समीक्षा की जाएगी।’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार कश्मीर में लगाये गये प्रतिबंध से जुड़े सभी आदेशों की एक हफ़्ते में समीक्षा करे। कोर्ट ने कहा कि इंटरनेट को अनिश्चितकाल के लिए बंद नहीं किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इंटरनेट पर अनिश्चितकाल के लिए प्रतिबंध लगाना ताक़त का दुरुपयोग है। अदालत ने कहा कि सरकार के फ़ैसले के ख़िलाफ़ असंतोष या असहमति की अभिव्यक्ति इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाये जाने का कारण नहीं हो सकती।
संयुक्त राष्ट्र ने जताई थी चिंता
जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म किए जाने को लेकर संयुक्त राष्ट्र ने भी चिंता जताई थी। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (यूएनचसीआर) ने भारत से कहा था कि वह जम्मू-कश्मीर की जनता के तमाम अधिकारों को बहाल करे। यूएनएचसीआर ने एक बयान जारी कर कहा था कि हम इस पर बहुत चिंतित हैं कि भारत-प्रशासित कश्मीर के लोग अभी भी ज़्यादातर मानवाधिकारों से वंचित हैं।
केंद्र ने अनुच्छेद 370 हटाने के फ़ैसले से पहले राज्य में बड़ी संख्या में जवानों को तैनात कर दिया था। इसके बाद राज्य के पूर्व मुख्यमंत्रियों फ़ारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ़्ती को हिरासत में ले लिया था और अभी तक ये तीनों प्रमुख नेता नज़रबंद हैं।
अपनी राय बतायें