सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की कोरोना टीका नीति पर सवाल उठाते हुए इसकी आलोचना की है। अदालत ने कहा है कि 45 साल और इससे अधिक की उम्र के लोगों को मुफ़्त कोरोना टीका देना और 45 से कम की उम्र के लोगों से इसके लिए पैसे लेना 'अतार्किक' और 'मनमर्जी' है।
उसने केंद्र सरकार से कहा है कि 31 दिसंबर, 2021 तक कोरोना टीके की उपलब्धता के बारे में विस्तार से बताए।
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सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के दो दिन पहले ही झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिख कर कहा था कि कोरोना वैक्सीन खरीदने की ज़िम्मेदारी राज्यों पर डालना सहकारी संघवाद की अवधारणा के ख़िलाफ़ है।
हेमंत सोरेन ने यह भी कहा था कि कोरोना टीका लगाने के लिए होने वाला खर्च उठाना झारखंड के लिए मुश्किल है क्योंकि कोरोना की वजह से उसकी आर्थिक स्थिति पहले से ही खराब है।
इसके पहले भी कोरोना टीका नीति पर सप्रीम कोर्ट ने केंद्र की आलोचना की थी। इसके पहले 31 मई को हुई सुनवाई के दौरान केंद्र ने अदालत मेंउठाए गए सवालों का जवाब देने के लिए दो हफ़्ते का समय मांगा था।
अदालत ने कहा था, “45 साल से अधिक की उम्र वाले सभी लोगों के लिए केंद्र सरकार वैक्सीन ख़रीद रही है लेकिन 18-44 साल वालों के लिए ख़रीद को दो हिस्सों में बांटा गया है। राज्यों को 50 फ़ीसदी वैक्सीन निर्माताओं द्वारा दी जाएगी और इसकी क़ीमत केंद्र सरकार तय करेगी और बाक़ी निजी अस्पतालों को दी जाएगी।”
सुप्रीम कोर्ट ने इसके आगे कहा था, “केंद्र सरकार ने वैक्सीन की क़ीमतों को तय करने का मामला निर्माताओं पर क्यों छोड़ दिया। केंद्र सरकार को पूरे देश के लिए एक क़ीमत की जिम्मेदारी लेनी होगी।”
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