जिस याचिका में 'इंडिया' शब्द को हटाकर और देश का नाम भारत करने की माँग की गई थी उसपर सुनवाई करते हुए सु्प्रीम कोर्ट ने कहा है कि अदालत ऐसा नहीं कर सकती है। भारत के मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे ने बुधवार को कहा कि सुप्रीम कोर्ट ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि 'संविधान में इंडिया को पहले से ही भारत कहा जाता है'। हालाँकि, अदालत ने याचिकाकर्ता को सरकार से इसकी माँग रखने की अनुमति दी है। यानी इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट से यह याचिका खारिज हो गई।
दिल्ली में रहने वाले नमाह नाम के व्यक्ति ने यह याचिका दायर की थी। पहले इस याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई होनी थी, लेकिन इसे मंगलवार यानी दो जून के लिए टाल दिया गया था। लेकिन मुख्य न्यायाधीश के छुट्टी पर होने के कारण मंगलवार को भी इस पर सुनवाई नहीं हो सकी थी।
याचिकाकर्ता ने माँग की थी कि संविधान में संशोधन कर इंडिया शब्द को हटाया जाए। याचिकाकर्ता ने कहा था कि अनुच्छेद 1 में संशोधन यह सुनिश्चित करेगा कि इस देश के नागरिक अपने औपनिवेशिक अतीत को 'अंग्रेज़ी नाम को हटाने' के रूप में प्राप्त करेंगे, जो एक राष्ट्रीय भावना पैदा करेगा। उन्होंने कहा कि इंडिया नाम हटाने में नाकामी अंग्रेज़ों की ग़ुलामी की प्रतीक है।
बुधवार को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने दलील दी कि इंडिया शब्द ग्रीक शब्द इंडिका से आया है। उन्होंने कहा कि इतिहास 'भारत माता की जय' के उदाहरणों से भरा पड़ा है। हालाँकि जब कोर्ट ने इस पर कोई भी सकारात्मक निर्णय नहीं दिया तो वकील ने बेंच से कहा कि उन्हें इसकी इजाज़त दी जाए कि वे केंद्र सरकार के पास इसका प्रतिवेदन भेज सकें। इस आग्रह पर कोर्ट ने संबंधित मंत्रालय को यह निर्देश दिया कि इस याचिका को प्रतिवेदन के तौर पर माना जाए।
बता दें कि संविधान के अनुच्छेद 1 में लिखा है, 'India जो कि भारत है, वह राज्यों का एक संघ होगा। पहले शेड्यूल में राज्य और क्षेत्र निर्धारित किए जाएँगे। India के क्षेत्र में शामिल होंगे।...' इसी India यानी इंडिया शब्द पर याचिकाकर्ता ने आपत्ति की।
याचिकाकर्ता ने कहा था कि इंडिया नाम हटाने में नाकामी अंग्रेजों की ग़ुलामी की प्रतीक है। उन्होंने कहा, 'प्राचीन समय से ही देश भारत के नाम से जाना जाता रहा है। अंग्रेज़ों की 200 साल की ग़ुलामी के बाद मिली आज़ादी के बाद अंग्रेज़ी में देश का नाम इंडिया कर दिया गया। इतिहास को भुलाना नहीं चाहिए।'
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