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उद्धव ठाकरे की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का तुरंत सुनवाई से इंकार 

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे की चुनाव आयोग के खिलाफ दायर याचिका पर तुरंत सुनवाई करने से इनकार कर दिया है। आयोग ने 17 फरवरी 2023 को एकनाथ शिंदे गुट को शिवसेना का नाम और चिह्न इस्तेमाल करने की इजाजत दे दी थी।
आयोग ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले गुट को असली शिवसेना के रूप में मान्यता दे दी थी और उन्हें पार्टी का चुनाव चिह्न ‘धनुष एवं बाण' आवंटित कर दिया था। उद्धव ने चुनाव आयोग के इस फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। 

पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की याचिका पर तत्काल सुनवाई करने का वकील अमित आनंद तिवारी ने अनुरोध किया। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने उनके अनुरोध पर कहा कि
अभी संविधान पीठ जम्मू-कश्मीर के मुद्दे (आर्टिकल 370) पर सुनवाई पूरी करेगी, तब तक आप इंतजार करें। आपके केस में इसके बाद तिथि दी जाएगी।

क्या कहा गया है इस याचिका में  

इस याचिका में कहा गया है कि चुनाव आयोग ने यह निर्णय सुनाकर गलती की है कि दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्यता और चुनाव चिह्न आदेश के तहत कार्यवाही अलग-अलग क्षेत्रों से संबंधित हैं। साथ ही विधायकों की अयोग्यता किसी राजनीतिक पार्टी की सदस्यता की समाप्ति पर आधारित नहीं है। चुनाव आयोग बिना किसी सबूत के राजनीतिक दल में विभाजन के निष्कर्ष पर पहुंचना गया जो कि त्रुटिपूर्ण है। इस याचिका में कहा गया है कि शिवसेना की प्रतिनिधि सभा में आज भी ठाकरे गुट का प्रचंड बहुमत है। 

आयोग ने शिवसेना के संविधान को अलोकतांत्रिक बताया

थाशिवसेना में जून 2022 में बगावत के बाद उद्धव सरकार गिर गई थी और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के ज्यादातर विधायक बागी हो गए थे। इसके बाद एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बने। शिंदे गुट का दावा है कि वही असली शिवसेना हैं इसलिए पार्टी का नाम और निशान उनके पास ही रहना चाहिए।
विवाद बढ़ने के बाद मामला चुनाव आयोग के पास गया। चुनाव आयोग ने इस मामले में  एकनाथ शिंदे गुट को ही असली शिवसेना बताया था। चुनाव आयोग ने 17 फरवरी 2023 को एकनाथ शिंदे गुट को शिवसेना का नाम और तीर-कमान का निशान प्रयोग करने की अनुमति दी थी। 
चुनाव आयोग ने तब माना था कि शिवसेना का मौजूदा संविधान अलोकतांत्रिक है। उद्धव ठाकरे के गुट ने बिना चुनाव कराए ही अपने लोगों को पद देने के लिए इसे बिगाड़ा था। शिवसेना के मूल संविधान में अलोकतांत्रिक तरीकों से बदलाव किया गया था। जिससे पार्टी निजी जागीर की तरह हो गई।  
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क़मर वहीद नक़वी
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