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नगालैंड में महिला आरक्षण मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को फटकारा

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को नगालैंड राज्य में महिलाओं के आरक्षण से जुड़े मामले में सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को फटकार लगाई है। 
सुप्रीम कोर्ट, नगालैंड में नगरपालिका और नगर परिषद चुनावों में महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षण की संवैधानिक योजना को लागू करने के लिए कोई कार्रवाई नहीं करने पर केंद्र से सवाल पूछ रहा था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नगालैंड  में महिलाओं के लिए आरक्षण क्यों लागू नहीं किया गया? 
कोर्ट ने भाजपा शासित राज्यों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने में विफल रहने पर केंद्र को फटकार लगाते हुए सख्त टिप्पणियां की है। कोर्ट ने कहा कि जहां केंद्र अन्य राज्य सरकारों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाता है। वहीं संविधान का उल्लंघन होने पर भी जिस राज्य में आपकी पार्टी की सरकार होती है वहां आप कुछ नहीं करते। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि आप अपनी ही पार्टी की राज्य सरकारों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं करते? नगालैंड में महिलाओं के लिए आरक्षण क्यों लागू नहीं किया गया?

केंद्र इस मुद्दे से अपना हाथ नहीं झाड़ सकता

इस मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस एसके कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच ने कहा कि केंद्र इस मुद्दे से अपना हाथ नहीं झाड़ सकता। विशेषकर तब जब राज्य में राजनीतिक व्यवस्था केंद्र सराकर के अनुरूप हो।जस्टिस कौल ने कहा, आपको इसमें शामिल होना होगा। आप एक राजनीतिक व्यवस्था हैं। आपके लिए सक्रिय रूप से हिस्सा लेना आसान होगा।  

जस्टिस  एसके कौल ने सवाल किया कि क्या महिला आरक्षण के खिलाफ कोई प्रावधान है? महिलाओं की भागीदारी का आखिर विरोध क्यों जबकि जीवन के सभी क्षेत्रों में महिलाएं समान रुप से भागीदार हैं।

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आपने वचन दिया था कि आप ऐसा करेंगे

जस्टिस कौल ने केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे एएसजी, केएम नटराज से कहा, आप मुझसे यह मत कहलवाएं कि केंद्र सरकार संविधान को लागू करने की इच्छुक नहीं है, क्योंकि मैं यह कहूंगा। आपने वचन दिया था कि आप ऐसा करेंगे, लेकिन मुकर गए। यही हमारी चिंता है। 

उन्होंने कहा कि यथास्थिति में बदलाव का हमेशा विरोध होता है। लेकिन, किसी को इसे बदलने की जिम्मेदारी लेनी होगी। कोर्ट ने कहा कि नगालैंड के जो भी व्यक्तिगत कानून हैं और राज्य के विशेष दर्जे को किसी भी तरह से नहीं छुआ जा रहा है। 
नगालैंड ऐसा राज्य है जहां महिलाओं की शिक्षा, आर्थिक और सामाजिक स्थिति अन्य राज्यों से अच्छी है। ऐसे में हम यह स्वीकार नहीं कर सकते कि नगालैंड में महिलाओं के लिए आरक्षण क्यों लागू नहीं किया जा सकता है।  इस सुनवाई के दौरान, जस्टिस कौल ने आरक्षण के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि आरक्षण यह सुनिश्चित करता है कि न्यूनतम स्तर का प्रतिनिधित्व हो। 
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संविधान को लागू करना राज्य सरकार का कर्तव्य है

वहीं नगालैंड राज्य के महाधिवक्ता केएन बालगोपाल ने इस केस में कोर्ट से कुछ समय मांगा । कोर्ट ने उनके अनुरोध पर उन्हें समय दिया है। लेकिन कहा है कि यह आखिरी अवसर दिया जा रहा है। केएन बालगोपाल ने कहा कि जब नगालैंड की वर्तमान सरकार सत्ता में आई तो पहली बैठक आरक्षण के मुद्दे पर ही हुई थी। यह निर्णय लिया गया था कि स्थानीय निकाय चुनावों में महिला आरक्षण लागू होगा। उन्होंने बताया कि विभिन्न संगठनों की ओर से चुनावों के बहिष्कार का आह्वान सरकार के चुनाव कराने के इरादे में बाधा है। 
इस पर जस्टिस कौल ने कहा कि नगालैंड के इन संगठनों को चुनाव में भाग न लेने का अधिकार हो सकता है। वहीं संविधान को लागू करना राज्य सरकार का कर्तव्य है। उन्होंने नगालैंड राज्य के महाधिवक्ता से पूछा, कि जब जीवन के सभी क्षेत्रों में महिलाएं बराबरी से भागीदार हैं तो महिलाओं की यहां भागीदारी का विरोध क्यों? कोर्ट ने पूछा कि आप एक तिहाई प्रतिनिधित्व देने में भी क्यों संकोच करते हैं?  
इसके जवाब देते हुए नगालैंड राज्य के महाधिवक्ता ने कहा कि उन्होंने नागालैंड में कुछ महिला संगठनों से इस मुद्दे पर व्यक्तिगत रूप से मुलाकात की थी। हमें एक प्रमुख संगठन ने कहा है कि वे आरक्षण नहीं चाहते हैं।उनके जवाब पर जस्टिस कौल ने कहा, कि जब भी कोई सामाजिक प्रगति होती है तो कानून अक्सर सबसे पहले आता है और अक्सर ही यह सामाजिक बदलावों के लिए मिशाल बन जाता है।   
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क़मर वहीद नक़वी
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