4 नवंबर की सुबह रायगढ़ और मुंबई पुलिस ने अर्णब गोस्वामी को उनके घर से गिरफ़्तार कर लिया था। मुंबई पुलिस ने अर्णब, उनकी पत्नी, बेटे और दो अन्य लोगों के ख़िलाफ़ पुलिस अधिकारियों पर हमला करने के आरोप में एफ़आईआर भी दर्ज की थी।
अर्णब ने रिहाई के लिए बॉम्बे हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था। लेकिन वहां से उन्हें राहत नहीं मिली थी और अदालत ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया था। इसके बाद अर्णब के वकीलों ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट का रूख़ किया था।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदिरा बनर्जी ने इस मामले में सुनवाई की। सुनवाई के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने हैरानी जताई कि केवल पैसे न देने पर ही आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज कर लिया जाए। चंद्रचूड़ ने इस बात पर निराशा जताई कि हाई कोर्ट किसी नागरिक की व्यक्तिगत आज़ादी की सुरक्षा के लिए अपने न्यायिक अधिकारों का प्रयोग करने में असफल रहा। उन्होंने कहा कि अगर यह अदालत आज इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करती है तो यह विनाश के रास्ते पर ले जाने वाला होगा।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘इस आदमी (अर्णब गोस्वामी) को भूल जाओ। हो सकता है कि आप उसकी विचारधारा को पसंद नहीं करते हों। अगर आप उसके चैनल को पसंद नहीं करते तो उसे मत देखिए।’ उन्होंने कहा कि यह कोई आतंकवाद का मामला नहीं है।
चंद्रचूड़ ने कहा कि सभी हाई कोर्ट के लिए यह संदेश है कि वे व्यक्तिगत आज़ादी की सुरक्षा को बरकरार रखने के लिए अपने न्यायिक अधिकारों का प्रयोग करें।
अन्वय नाइक की बेटी अदन्या नाइक की ओर से पेश हुए अधिवक्ता सीयू सिंह ने अदालत से कहा कि जब निचली अदालत अर्णब की जमानत याचिका के मामले में कल फ़ैसला देने वाली है तो ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के इसमें दख़ल देने से बेहद निचली अदालत में ग़लत संदेश जाएगा। उन्होंने कहा कि हाई कोर्ट के आदेश में लिखा है कि याचिकाकर्ताओं की जमानत याचिका पर चार दिनों में फ़ैसला हो जाएगा।
राज्य सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा गिरफ़्तार किए गए पत्रकार सिद्दीक़ी कप्पन के मामले का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि हाथरस जाते वक्त कप्पन को गिरफ़्तार किया गया और तब हम अनुच्छेद 32 के तहत इस अदालत के सामने आये थे। लेकिन अदालत ने हमसे निचली अदालत में जाने को कहा था। उन्होंने जमानत दिए जाने का विरोध किया।
अर्णब की गिरफ़्तारी पर देखिए वीडियो-
जांच अवैध: साल्वे
अर्णब की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने अदालत से कहा कि मजिस्ट्रेट के आगे की जांच के आदेश के बिना केस को फिर से शुरू नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इस मामले में जांच अधिकारी के निर्देश पर आगे की तफ़तीश की जा रही है और यह अवैध है। साल्वे ने कहा कि इससे पूरी तरह राज्य सरकार के दख़ल का पता चलता है।
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार एक ताक़तवर आलोचक की आवाज़ को चुप कराने का काम कर रही है। साल्वे ने गोस्वामी को जिस तरह गिरफ़्तार किया गया, उस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि क्या वह कोई आतंकवादी हैं या उन पर कोई हत्या का आरोप है। उन्होंने कहा कि उनके मुवक्किल को बिना किसी नोटिस के गिरफ़्तार कर लिया गया।
जल्द सुनवाई पर आपत्ति
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष दुष्यंत दवे ने कोर्ट के महासचिव को पत्र लिखकर अर्णब गोस्वामी की रिहाई की याचिका पर तुरंत सुनवाई किए जाने का विरोध किया था।
अर्णब के वकीलों ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की और बुधवार को इसे सुनवाई के लिए लिस्ट कर लिया गया।
दुष्यंत दवे ने पत्र में लिखा है ‘एक ओर जहां हज़ारों लोग उनके मामलों की सुनवाई न होने के कारण जेलों में पड़े हैं, वहीं दूसरी ओर एक प्रभावशाली व्यक्ति की याचिका को एक ही दिन में सुनवाई के लिए लिस्ट कर लिया गया।’ दवे ने कहा है कि वे इस बात से बेहद निराश हैं कि जब भी गोस्वामी सुप्रीम कोर्ट का रूख़ करते हैं, तो उनके मामले को क्यों और कैसे तुरंत सुनवाई के लिए लिस्ट कर लिया जाता है। दवे ने लिखा है कि गोस्वामी को विशेष सुविधा दी जाती है जबकि आम भारतीय परेशान होने के लिए मजबूर हैं।
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