ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर 24 दिनों के बाद जेल से बाहर आ गए हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा अंतरिम जमानत दिए जाने और आज ही रिहा करने के सख़्त निर्देश के बाद वह जेल से बाहर आए। शीर्ष अदालत ने उनके ख़िलाफ़ 'आपत्तिजनक ट्वीट' के लिए दर्ज छह मामलों में उनकी तत्काल रिहाई का आदेश दिया था।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने काफी देर तक चली सुनवाई के बाद यह फ़ैसला दिया। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि पुलिस द्वारा गिरफ्तार करने की ताक़त का संयम से इस्तेमाल किया जाना चाहिए। अदालत ने तिहाड़ जेल के अफसरों को आदेश दिया था कि ज़ुबैर को बुधवार शाम 6 बजे से पहले रिहा कर दिया जाए।
इससे पहले सोमवार को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश पुलिस को निर्देश दिया था कि वह मोहम्मद ज़ुबैर के खिलाफ 20 जुलाई तक कोई कार्रवाई ना करे। ज़ुबैर के खिलाफ उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी, मुजफ्फरनगर, गाजियाबाद और हाथरस में कुल मिलाकर 6 एफआईआर दर्ज हैं। ज़ुबैर ने अपनी याचिका में कहा था कि उन्हें जमानत दी जाए और उनके खिलाफ दर्ज की गई सभी एफआईआर को रद्द किया जाए।
अदालत का यह मत था कि ज़ुबैर को अब और ज्यादा हिरासत में रखने का कोई औचित्य नहीं है। अदालत ने कहा कि इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि याचिकाकर्ता के खिलाफ दिल्ली पुलिस द्वारा व्यापक जांच की गई है, उन्हें उनकी व्यक्तिगत आज़ादी से वंचित रहने का कोई कारण नहीं दिखता।
सुप्रीम कोर्ट ने ज़ुबैर की जमानत में इस शर्त को भी लगाने से इनकार किया कि वह यानी ज़ुबैर दोबारा ट्वीट नहीं करेंगे।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने उत्तर प्रदेश सरकार के एडिशनल एडवोकेट जनरल से कहा, “अदालत यह नहीं कह सकती कि ज़ुबैर फिर से ट्वीट नहीं करेंगे, यह वैसा ही होगा जैसे एक वकील से कहा जाए कि आप बहस नहीं कर सकते। हम किसी पत्रकार से कैसे कह सकते हैं कि वह नहीं लिखेंगे और अगर कोई ट्वीट कानून के खिलाफ होगा तो वह उसके लिए खुद जवाबदेह होंगे।”
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि ऐसा आदेश कैसे पास किया जा सकता है कि कोई शख़्स बोलेगा ही नहीं।
एसआईटी को भंग किया
अदालत ने अपने आदेश में ज़ुबैर के खिलाफ दर्ज एफआईआर की जांच के लिए बनी एसआईटी को भंग कर दिया। अदालत ने ज़ुबैर के खिलाफ दर्ज सभी एफआईआर को क्लब करने का भी आदेश दिया है और कहा कि यह सभी मामले दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल को देखने चाहिए। बता दें कि उत्तर प्रदेश पुलिस ने ज़ुबैर के खिलाफ दर्ज मामलों की जांच के लिए एसआईटी गठित की थी।
अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि उत्तर प्रदेश पुलिस के द्वारा दर्ज की गई सभी एफआईआर को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल को ट्रांसफर किए जाने का निर्देश भविष्य में ज़ुबैर के ट्वीट को लेकर दर्ज होने वाली सभी एफआईआर पर भी लागू होगा। अदालत ने कहा कि भविष्य में दर्ज होने वाली सभी एफआईआर में भी ज़ुबैर जमानत के हकदार होंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ किया कि ज़ुबैर दिल्ली हाई कोर्ट के सामने उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग करने के लिए स्वतंत्र होंगे।
ज़ुबैर की ओर से दलील
ज़ुबैर की ओर से अदालत में पेश हुईं एडवोकेट वृंदा ग्रोवर ने कहा कि ज़ुबैर के खिलाफ दर्ज सभी एफआईआर लगभग एक ही जैसे ट्वीट को लेकर की गई हैं और किसी भी ट्वीट में ऐसी भाषा का इस्तेमाल नहीं किया गया है जो आपराधिक है या गलत है। उन्होंने कहा कि आज के डिजिटल युग में कोई ऐसा शख़्स जिसका काम झूठी खबरों का भंडाफोड़ करना हो, वह दूसरों की आंखों में चुभता है। लेकिन उसके खिलाफ कानून को हथियार नहीं बनाया जा सकता।
यूपी सरकार की दलील
जबकि उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश हुईं एडिशनल एडवोकेट जनरल गरिमा प्रसाद ने कहा कि ज़ुबैर पत्रकार नहीं हैं। उन्होंने अदालत से कहा कि फैक्ट चेकिंग की आड़ में ज़ुबैर ने भड़काऊ कंटेंट को बढ़ावा दिया है और उन्हें उनके ट्वीट के लिए पैसा मिलता है। एडिशनल एडवोकेट जनरल ने कहा कि यह बात ज़ुबैर ने स्वीकार की है कि वह जितने दुर्भावनापूर्ण ट्वीट करते हैं, उतना ही ज्यादा पैसा उन्हें मिलता है। उन्होंने कहा कि ज़ुबैर को दो करोड़ से ज्यादा रुपए मिल चुके हैं।
क्या है दिल्ली वाला मामला?
ज़ुबैर को सबसे पहले दिल्ली पुलिस ने 27 जून को गिरफ्तार किया था और तभी से वह जेल में थे। ज़ुबैर ने साल 2018 में एक ट्वीट किया था। इस ट्वीट के खिलाफ किसी गुमनाम ट्विटर यूजर ने दिल्ली पुलिस से शिकायत की थी। हालांकि बाद में यह अकाउंट ट्विटर प्लेटफ़ॉर्म से गायब हो गया था।
ज़ुबैर को दिल्ली पुलिस ने दंगा भड़काने के इरादे से उकसाने और धार्मिक भावनाओं को अपमानित करने के आरोप में गिरफ्तार किया था। ज़ुबैर ने 1983 में बनी एक फिल्म के एक शॉट को 2018 में ट्विटर पर पोस्ट किया था। इसमें एक फोटो थी जिसमें लगे एक बोर्ड पर हनीमून होटल लिखा था और इसे पेंट करने के बाद हनुमान होटल कर दिया गया था।
@balajikijaiin की आईडी वाले ट्विटर अकाउंट से यह शिकायत की गई थी लेकिन अब यह अकाउंट वजूद में नहीं है।
दिल्ली पुलिस ने ज़ुबैर के खिलाफ आपराधिक साजिश रचने और सबूत नष्ट करने के आरोप लगाए थे। इसके अलावा उनके खिलाफ विदेशी चंदा प्राप्त करने के लिए फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट एफसीआरए की धारा 35 भी लगाई गई थी। दिल्ली पुलिस ने कहा था कि ज़ुबैर की कंपनी को पाकिस्तान, सीरिया और अन्य खाड़ी देशों से चंदा मिला है।
क्या है सीतापुर का मामला?
सीतापुर के खैराबाद पुलिस थाने में ज़ुबैर के खिलाफ धार्मिक भावनाएं आहत करने का मुकदमा दर्ज किया गया था। मुकदमे में आरोप लगाया गया था कि मोहम्मद ज़ुबैर ने 3 लोगों- महंत बजरंग मुनि, यति नरसिंहानंद सरस्वती और स्वामी आनंद स्वरूप को नफरत फैलाने वाला करार दिया था।
इस मामले में 27 मई को भगवान शरण नाम के शख्स की ओर से मोहम्मद ज़ुबैर के खिलाफ शिकायत दर्ज की गई थी। स्थानीय अदालत ने इस मामले में ज़ुबैर को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया था।
क्या है लखीमपुर खीरी का मामला?
ज़ुबैर के खिलाफ बीते साल लखीमपुर खीरी के मोहम्मदी पुलिस स्टेशन में एक मुकदमा दर्ज कराया गया था।
स्थानीय अदालत के आदेश पर ही लखीमपुर खीरी में ज़ुबैर के खिलाफ यह मुकदमा पिछले साल दर्ज हुआ था। इस मामले में स्थानीय पत्रकार आशीष कुमार कटियार नाम के शख्स ने ज़ुबैर के खिलाफ ट्विटर पर फर्जी खबर फैलाने का मुकदमा दर्ज कराया था। उसने अपनी शिकायत में कहा था कि ज़ुबैर के ट्वीट से सांप्रदायिक सौहार्द्र खराब हो सकता है।
इसके बाद ज़ुबैर के खिलाफ आईपीसी की धारा 153 ए यानी दो समूहों के बीच नफरत फैलाने के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था। इस मामले में बीते सोमवार को लखीमपुर खीरी की एक स्थानीय अदालत ने ज़ुबैर को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया था।
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