सबरीमला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश दिए जाने के मामले में शीर्ष अदालत आज फ़ैसला सुनाएगी। शीर्ष अदालत ने 28 सितंबर 2018 को सभी उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की मंजूरी दी थी। अदालत के इस फ़ैसले का केरल में पुरजोर विरोध हुआ था और फ़ैसले के ख़िलाफ़ पुनर्विचार याचिका दाख़िल की गई थी। इसके अलावा इस मामले में 64 अन्य याचिकाएं भी दाख़िल की गई थीं। सुनवाई के बाद 6 फरवरी को अदालत ने फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था। चीफ़ जस्टिस ऑफ़ इंडिया (सीजेआई) रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच इस अहम मामले में फ़ैसला सुनाएगी। बेंच में जस्टिस आर. फ़ली नरीमन, जस्टिस ए. एम. खानविलकर, जस्टिस डी. वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदू मल्होत्रा शामिल हैं।
सबरीमला मंदिर का प्रबंधन देखने वाले त्रावणकोर देवासम बोर्ड ने पहले कहा था कि यह लोगों की आस्था और भावना का प्रश्न है, लिहाज़ा, कोर्ट का फ़ैसला लागू नहीं किया जा सकता है। लेकिन बाद में बोर्ड ने इससे यू-टर्न ले लिया था और कहा था कि वह मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का सम्मान करेगा।
बीजेपी ने सबरीमला के अयप्पा मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर लगी रोक हटाने के सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ एक बड़ा आंदोलन खड़ा कर दिया था। बीजेपी की माँग थी कि केरल सरकार अध्यादेश लाकर अदालत के फ़ैसले पर अस्थायी रोक लगाए या पुनर्विचार याचिका दायर करे। लेकिन केरल सरकार ने पुनर्विचार याचिका दायर करने से इनकार कर दिया था।
साल 2019 की शुरुआत में बिंदु और कनकदुर्गा नाम की महिलाओं के मंदिर में प्रवेश करने के बाद इस मामले में जमकर हंगामा हुआ था। सबरीमला मंदिर के पुजारी और अयप्पा के भक्तों का मानना है कि भगवान की पवित्रता को बनाए रखने के लिए 10 से 50 साल की महिलाओं अयप्पा के दर्शन नहीं करने चाहिए।
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