सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को केंद्र सरकार से सख़्त लहजे में कहा है कि वह न्यायपालिका को भाषण न दे। अदालत ने यह टिप्पणी तब की जब वह गैंगस्टर अबू सलेम की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। सलेम ने 25 साल से अधिक की जेल की सज़ा के ख़िलाफ़ याचिका लगाई है। प्रत्यर्पण के दौरान भारत द्वारा पुर्तगाल को दिए गए वचन के अनुसार कारावास की सजा 25 साल से अधिक नहीं हो सकती।
अबू सलेम की याचिका पर ही केंद्र ने हलफनामा दायर कर जवाब दिया था। लेकिन हलफनामा में दिए गए जवाब के तौर-तरीक़ों पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराज़गी जताई। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के उस रुख को खारिज कर दिया कि अबू सलेम के प्रत्यर्पण के दौरान पुर्तगाल के सामने की गई प्रतिबद्धता से परे जाकर उसे दी गई 25 साल की सजा को बढ़ाया जाए। अदालत ने इस बात पर भी नाराज़गी जताई कि संबंधित मुद्दे को तय करने का यह 'उचित समय' नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि केंद्र को स्पष्ट होना चाहिए कि वे क्या कहना चाहते हैं। इसने कहा कि हमें गृह मंत्रालय के हलफनामे में 'हम उचित समय पर निर्णय लेंगे' जैसे वाक्य पसंद नहीं हैं।
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश 1993 के बॉम्बे ब्लास्ट मामले के दोषी अबू सलेम की एक याचिका पर सुनवाई कर रहे थे। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने अपने आदेश में कहा कि ऐसा लगता है कि गृह मंत्रालय सुझाव दे रहा है कि मामले के संबंध में न्यायालय को क्या करना चाहिए या क्या नहीं करना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के इस रुख को भी खारिज कर दिया कि अबू सलेम की याचिका समय से काफ़ी पहले दायर की गई है।
पीठ ने कहा, 'हमें आश्वासन के प्रभाव पर फ़ैसला लेना है और हम उस आधार पर अपील की सुनवाई को स्थगित नहीं कर सकते हैं। न ही सरकार को हलफनामे पर यह कहने की अनुमति है कि अपीलकर्ता इस याचिका को नहीं उठा सकता है।'
न्यायमूर्ति एसके कौल ने गृह मंत्रालय से कहा, 'आप कहते हैं कि उचित समय पर प्रतिबद्धता का पालन किया जाएगा। हमने आपसे पूछा, आपको जवाब देना था। आपके गृह सचिव को हमें भाषण देने की कोई ज़रूरत नहीं थी... वह अधिकार आज भी है। वह कैसे कह सकते हैं कि दिए गए आश्वासन के आधार पर बहस करने वाले दोषी का सवाल ही नहीं है।' उन्होंने कहा, 'गृह सचिव कोई नहीं है जो हमें इस मुद्दे पर फैसला करने के लिए कहे।'
बता दें कि मंगलवार को केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि सरकार तत्कालीन उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी द्वारा पुर्तगाल सरकार को दिए गए आश्वासन पर बाध्य है कि अबू सलेम को दी गई कोई भी सजा 25 साल से अधिक नहीं होगी। भल्ला ने कहा था कि यह आश्वासन 25 साल की अवधि 10 नवंबर, 2030 को समाप्त होने के बाद प्रभावी होगा।
पहले एक सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह सीबीआई द्वारा दायर हलफनामे से संतुष्ट नहीं है जिसमें कहा गया है कि भारत द्वारा पुर्तगाल को दिया गया आश्वासन भारतीय अदालतों पर बाध्यकारी नहीं है। अदालत ने 2 फरवरी को अबू सलेम की याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा था।
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