loader

सुप्रीम कोर्ट : हमने हाई कोर्ट को काम करने से कभी नहीं रोका, आलोचना बेबुनियाद

हाई कोर्टों से स्वत संज्ञान लेकर मामले अपने पास लेने के मुद्दे पर वरिष्ठ वकीलों और न्यायविदों की ओर से आलोचना किए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सफाई दी है। उसने कहा है कि हाई कोर्टों को मामले की सुनवाई करने से रोका नहीं गया है इसलिए इस मुद्दे पर हो रही आलोचना बेबुनियाद है। 

मुख्य न्यायाधीश एस. ए. बोबडे, जस्टिस एल. नागेश्वर राव और जस्टिस एस. रवींद्र भट्ट की बेंच ने कहा कि वे वरिष्ठ वकीलों के बयान पर दुखी हैं और ऐसा लगता है कि उन्होंने आदेश देखे बगैर ही टिप्पणी की है। 

बेंच ने कहा,

'हमने एक शब्द भी नहीं कहा है और हाई कोर्ट को सुनवाई करने से नहीं रोका है। हमने केंद्र सरकार से कहा है कि वह हाई कोर्ट जाए और उसे अपनी बात कहे। आपने आदेश पढ़े बगैर ही हमारी मंशा पर सवाल खड़े कर दिए।'


सुप्रीम कोर्ट का खंडपीठ

आदेश बगैर ही आलोचना

जस्टिस नागेश्वर राव ने वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे से कहा, 'आदेश जारी किए जाने से पहले ही इसकी आलोचना उन बातों को लेकर होने लगी, जो उसमें थे ही नहीं। क्या वरिष्ठ वकील ऐसे ही काम करते हैं, क्या वे ऑर्डर देखे बगैर ही बोलते हैं।' 

दुष्यंत दवे ने इस पर जवाब दिया, 'कोई मंशा नहीं जताया गया है, हमने यह सोचा कि आपने मामले हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट को दे दिए हैं, आप अतीत में ऐसा कर चुके हैं। इसलिए हमारा ऐसा सोचना वाजिब है।' 

जस्टिस रवींद्र भट्ट ने कहा,

हमने हाई कोर्ट के बारे में एक शब्द नहीं कहा। हमने हाई कोर्ट को कभी भी सुनवाई करने से नहीं रोका। हमने केंद्र सरकार से कहा है कि वह हाई कोर्ट जाए।


जस्टिस रवींद्र भट्ट, जज, सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष और वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने कहा कि दिल्ली में ऑक्सीजन की कमी हो रहा है और कोर्ट को अंतर-राज्यों के मुद्दे को देखना चाहिए।

इस पर मुख्य न्यायाधीश बोबडे ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट यही तो कर रहा है। 

इसके एक दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कोरोना के छह मामले अलग-अलग अदालतों में चल रहे हैं जिससे भ्रम की स्थिति है। जस्टिस बोबडे ने संकेत दिया था कि ऐसे में हाई कोर्टों में चल रहे सभी मामले सुप्रीम कोर्ट को ले लेने चाहिए।

चौतरफा आलोचना

वरिष्ठ वकीलों ने इसकी आलोचना की थी। पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने इसे 'पीछे ले जाने वाला कदम' बताते हुए कहा, 

मैं सुप्रीम कोर्ट से पूरी तरह असहमत हूं। ये मामले निपटाने में हाई कोर्ट पूरी तरह सक्षम हैं क्योंकि ये स्थानीय स्तर पर होते हैं। स्थानीय स्तर पर स्थानीय मुद्दों को सुलझाने में वे सबसे सक्षम हैं।


मुकुल रोहतगी, पूर्व अटॉर्नी जनरल

वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने कहा, "हाई कोर्टों को अपना काम करने से रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप करना पूरी तरह ग़लत और अनुचित है। इसका एक कारण यह है कि देश में बीते कुछ महीनों में जो कुछ हो रहा है, उस पर सुप्रीम एकदम चुप है।"

उन्होंने कहा,

यदि सुप्रीम कोर्ट को देश के नागरिकों की चिंता होती तो वह पहले ही हस्तक्षेप कर सरकार को कह कर यह सुनिश्चित करता कि पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन, दवाएं व टीके हैं और पर्याप्त संख्या में अस्पताल हैं। सरकार सोती रही है और यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सुप्रीम कोर्ट भी काफी समय तक सोता रहा।


दुष्यंत दवे, वरिष्ठ वकील

हरीश साल्वे एमिकस क्यूरी पद से हटे

एक दूसरे अहम घटनाक्रम में वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने खुद को सुप्रीम कोर्ट के एमिकस क्यूरी पद से अलग कर लिया। उन्होंने इसका कारण बताते हुए कहा कि वे नहीं चाहते कि मामले की सुनवाई इस धारण का साथ हो कि वह एमिकस क्यूरी इसलिए बनाए गए हैं क्योंकि वह मुख्य न्यायाधीश बोबडे के स्कूल दिनों के मित्र हैं। 

मुख्य न्यायाधीश ने इस पर कहा कि वह जानते हैं कि इस तरह के बयानों से साल्वे दुखी हैं और वह उनकी भावनाओं का सम्मान करते हैं। 
यह मामला विवादों में इसलिए है कि साल्वे कई बार एमिकस क्यूरी बनाए जा चुके हैं। गुरुवार को दुष्यंत दवे ने कहा था, 'हरीश साल्वे एक बहुत ही वरिष्ठ वकील हैं और उनकी काबिलियत पर किसी को संदेह नहीं है। वह मुख्य न्यायाधीश बोबडे के बचपन के मित्र हैं। मुझे इसकी कोई वजह नहीं दिखती है कि उन्हें ही बार-बार एमिकस क्यूरी नियुक्त किया जाता है।' 

दवे ने यह मुद्दा भी उठाया कि साल्वे काफी दिनों से विदेश में रहते हैं और उन्हें भारत की ज़मीनी सचाई का पता नहीं है।

उन्होंने इसके अलावा 'कन्फ्लिक्ट ऑफ़ इंटरेस्ट' का मामला भी उठाया। दवे ने कहा कि साल्वे स्टर्लाइट कंपनी की पैरवी कई बार कर चुके हैं। उन्होंने कुछ दिन पहले ही स्टर्लाइट संयंत्र फिर से चालू करने की बात कही थी। ऐसे में इस कंपनी से जुड़े मामले में उन्हें एमिकस क्यूरी नियुक्त नहीं किया जाना चाहिए। 

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

देश से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें