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कर्नाटक: हिजाब विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के दोनों जजों का फैसला अलग-अलग

कर्नाटक के शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध को लेकर शीर्ष अदालत के जजों की अलग-अलग राय सामने आई है। जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच ने अपना फैसला सुनाया। जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कर्नाटक हाई कोर्ट के हिजाब पर प्रतिबंध के फैसले को बरकरार रखा है। जस्टिस गुप्ता ने कहा, इस बारे में मेरे 11 सवाल हैं और सीजेआई को बड़ी बेंच का गठन करते समय इन सभी 11 सवालों पर विचार करना होगा और इसके बाद ही बेंच के गठन के मामले में फैसला करना होगा।  

जबकि जस्टिस धूलिया ने कहा कि उन्होंने 5 फरवरी को दिए गए कर्नाटक सरकार के आदेश को निरस्त करते हुए हिजाब पर प्रतिबंध हटाने का आदेश दिया है। 

दोनों जजों की अलग-अलग राय सामने आने के बाद अब इस मामले को सीजेआई की बेंच के सामने भेजा गया है। सीजेआई यूयू ललित इस मामले में एक नई बेंच का गठन करेंगे। इस बेंच में तीन या इससे ज्यादा जज हो सकते हैं। 

जस्टिस धूलिया ने अपने फैसले में कहा कि हिजाब पहनना पसंद का मामला है और इस विवाद को सुलझाने के लिए कर्नाटक हाई कोर्ट के द्वारा जरूरी धार्मिक प्रथा वाली बात को चुनना गलत था। उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 15 के तहत यह पसंद का मामला है और इससे ज्यादा कुछ नहीं है।
बता दें कि कर्नाटक हाई कोर्ट ने अपने फैसले में शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर बैन को बरकरार रखा था। हाई कोर्ट ने कहा था कि हिजाब इसलाम में जरूरी धार्मिक प्रथा नहीं है।  
जस्टिस धूलिया ने कहा है कि इस मामले में फैसला लिखते वक्त सबसे अहम चीज जो उनके दिमाग में आई, वह बच्चियों की पढ़ाई को लेकर थी। उन्होंने लिखा कि यह सभी जानते हैं कि ग्रामीण और छोटे शहरों में छोटी बच्चियों की पढ़ाई कितनी मुश्किल होती है। ऐसी बच्चियों को स्कूल जाने से पहले घर की साफ-सफाई और दूसरे कामकाज में अपनी मां की मदद करनी होती है, इसके अलावा कुछ और मुश्किलें भी होती हैं। मैंने खुद से पूछा कि क्या हम उनके जीवन को बेहतर बना रहे हैं?

अदालत ने हिजाब विवाद को लेकर चली लंबी सुनवाईयों के बाद 22 सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुनवाईयों के दौरान याचिकाकर्ताओं और कर्नाटक सरकार की ओर से अपने-अपने तर्क दिए गए थे। 

कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले के बाद हिजाब विवाद के मसले पर खासा बवाल हुआ था और यह मामला हाई कोर्ट से होते हुए सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था। 

कर्नाटक में मुसलिम छात्राओं ने कक्षाओं और परीक्षाओं का बहिष्कार कर दिया था। हाई कोर्ट के फैसले को मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड और कुछ छात्रों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। कर्नाटक में बीते महीनों में हिजाब से लेकर हलाल मांस पर लगातार विवाद होता रहा है। 

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Supreme Court Karnataka hijab ban verdict today - Satya Hindi
अदालत के सामने मुसलिम छात्राओं ने कहा था कि हिजाब पहनने का अधिकार अभिव्यक्ति के दायरे में आता है और संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत उन्हें यह अधिकार मिला है। जबकि ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने अदालत से कहा था कि कुरान के मुताबिक धार्मिक विद्वानों के बीच इस बात को लेकर आम सहमति है कि हिजाब पहनना आवश्यक है और जो ऐसा नहीं करता है, वह गुनाह करता है। 
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कर्नाटक सरकार की दलील

कर्नाटक सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सामने दी गई दलीलों में कहा था कि हिजाब के खिलाफ इस्लामिक देश ईरान में भी जबरदस्त प्रदर्शन हो रहे हैं। कर्नाटक सरकार ने यह भी कहा था कि कर्नाटक के शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध के खिलाफ हुए प्रदर्शन स्वत: स्फूर्त नहीं थे और यह एक बड़ी साजिश का हिस्सा थे। राज्य सरकार ने अदालत से कहा था कि साल 2022 से पहले कोई भी छात्रा हिजाब नहीं पहनती थी और हिजाब पहनने के आंदोलन की शुरुआत प्रतिबंधित पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया ने सोशल मीडिया के जरिए की। 

राज्य सरकार ने अपनी दलीलों में यह भी कहा था कि हिजाब पर प्रतिबंध लगाने का फैसला अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाने के लिए नहीं लिया गया और सरकार को राज्य में बने हालात की वजह से इस बारे में फैसला लेना पड़ा। 

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कर्नाटक सरकार ने स्कूलों में हिजाब पर प्रतिबंध लगाने के बाद कहा था कि शिक्षण संस्थानों में सिर्फ़ यूनिफॉर्म ही चलेगी और किसी धार्मिक पहचान वाली पोशाक की अनुमति नहीं दी जाएगी।

यह विवाद पिछले साल दिसंबर में तब शुरू हुआ था जब उडुपी के एक स्कूल की छात्राओं ने शिक्षकों के अनुरोध के बावजूद स्कार्फ हटाने और उसका इस्तेमाल बंद करने से इनकार कर दिया था। इसके बाद कुछ छात्राएं हाई कोर्ट चली गई थीं। दक्षिणपंथी संगठनों से जुड़े कार्यकर्ताओं ने हिजाब के विरोध में भगवा गमछा पहनकर स्कूल जाना शुरू कर दिया था। 

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क़मर वहीद नक़वी
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