सुप्रीम कोर्ट ने नोटबंदी के फैसले को सही ठहराया है। 5 जजों की बेंच ने 4-1 से यह फैसला सुनाया है। कोर्ट ने इस मामले में दायर सभी 58 याचिकाओं को खारिज कर दिया है। जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस एस. अब्दुल नज़ीर, जस्टिस ए.एस. बोपन्ना और जस्टिस वी. रामासुब्रमण्यन ने नोटबंदी के फैसले को सही ठहराया जबकि जस्टिस बी.वी. नागरत्ना ने बहुमत से अलग फैसला सुनाया है।
बताना होगा कि नरेंद्र मोदी सरकार ने 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी का फैसला लिया था जिसके तहत 500 और 1000 के नोटों को चलन से बाहर कर दिया गया था।
- अदालत ने अपने फैसले में कहा कि रिकॉर्ड को देखने से पता चलता है कि केंद्र सरकार और आरबीआई के बीच इस फैसले को लिए जाने से पहले 6 महीने से ज्यादा वक्त तक बातचीत चली थी।
- अदालत ने कहा, “इस तरह के मामलों में कार्रवाई करने के लिए केंद्र सरकार का केंद्रीय बोर्ड से बातचीत करना जरूरी होता है। आर्थिक नीति के मामलों में संयम रखा जाना जरूरी है। फैसले लेने की प्रक्रिया को केवल इसलिए दोष नहीं दिया जा सकता क्योंकि प्रस्ताव केंद्र सरकार से आया था।”
- अदालत ने कहा कि करेंसी एक्सचेंज के लिए 52 दिनों की निर्धारित अवधि को गलत नहीं कहा जा सकता है।
- अदालत ने कहा कि केंद्र सरकार ने नोटबंदी के मामले में फैसला आरबीआई के बोर्ड की मंजूरी के बाद ही लिया।
आरबीआई एक्ट की धारा 26 (2)
लाइव लॉ के मुताबिक, अदालत ने कहा कि आरबीआई एक्ट की धारा 26 (2) के तहत, केंद्र सरकार को नोटों की किसी भी सीरीज को डिमोनेटाइज करने का अधिकार है और इसका इस्तेमाल नोटों की पूरी सीरीज को डिमोनेटाइज करने के लिए किया जा सकता है।
आरबीआई एक्ट की धारा 26(2) में "कोई भी" शब्द को लेकर कोर्ट ने कहा कि हमें किसी शब्द की ऐसी व्याख्या से बचना चाहिए जो बेतुकी हो।
जस्टिस नागरत्ना का फैसला
दूसरी ओर, बहुमत से अलग फैसला देने वालीं जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि 500 और 1000 रुपए के नोटों की पूरी सीरीज को डिमोनेटाइज करना एक गंभीर मामला है और केंद्र सरकार के द्वारा ऐसा केवल एक गैजेट नोटिफिकेशन करके नहीं किया जा सकता है।
- लाइव लॉ के मुताबिक, जस्टिस नागरत्ना ने अपने फैसले में कहा कि हालांकि यह कदम सोच विचार के बाद उठाया गया लेकिन इसे गैर कानूनी घोषित किया जाना चाहिए।
- उन्होंने कहा कि इसने काले धन, आतंक के वित्त पोषण जैसी बुराइयों पर हमला किया और इस क़दम को उनके द्वारा कानूनी आधार पर गैर कानूनी घोषित किया गया है न कि इसके उद्देश्यों के आधार पर।
- जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि आरबीआई की ओर से जमा किए गए रिकॉर्ड से पता चलता है कि आरबीआई ने बिना अपने विवेक का इस्तेमाल किए नोटबंदी को मंजूरी दे दी और यह पूरी प्रक्रिया 24 घंटे के अंदर पूरी कर ली गई।
- उन्होंने आरबीआई एक्ट की धारा 26(2) को लेकर बहुमत के द्वारा दिए गए फैसले से भी अपनी असहमति जाहिर की।
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि आरबीआई एक्ट की धारा 26(2) के तहत "कोई भी सीरीज" का अर्थ "सभी सीरीज" नहीं हो सकता है। धारा 26(2) नोटों की किसी विशेष सीरीज के लिए लागू हो सकता है ना कि पूरी सीरीज के लिए।
क्या कहा था केंद्र ने?
केंद्र सरकार ने इस मामले में सुनवाइयों के दौरान सुप्रीम कोर्ट को दिए गए हलफनामे में कहा था कि नोटबंदी के फैसले को लेकर पूरी तैयारी की गई थी और तत्कालीन वित्त मंत्री ने भी संसद में कहा था कि सरकार ने फरवरी 2016 में आरबीआई के साथ इस संबंध में चर्चा शुरू कर दी थी हालांकि इसे बेहद गोपनीय रखा गया था।
केंद्र सरकार ने नोटबंदी को चुनौती देने वाली याचिकाओं के जवाब में यह हलफनामा दाखिल किया था।
मोदी सरकार ने नोटबंदी का एलान करते वक्त दावा किया था कि नोटबंदी से जाली नोट और आतंकवाद की फ़ंडिंग पर लगाम लगेगी और काला धन पकड़ा जा सकेगा। लेकिन कई खबरों के मुताबिक, नोटंबदी से कालेधन पर कोई लगाम नहीं लगी, उल्टा अर्थव्यवस्था लड़खड़ा गई और लाखों लोगों की नौकरियां भी चली गईं।
साल 2018 के नवंबर में केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने नोटबंदी के दुष्प्रभावों को स्वीकार किया था। मंत्रालय ने माना था कि नोटबंदी के बाद से नकदी की कमी के चलते लाखों किसान, रबी सीजन में बुआई के लिए बीज-खाद नहीं खरीद सके और इसका उनकी फसल पर बहुत बुरा असर पड़ा था।
सौ लोगों की मौत
नोटबंदी के दौरान अखबारों में प्रकाशित ख़बरों पर नज़र दौड़ाएं तो कम-से-कम सौ लोगों की मौत के समाचार मिले थे। लेकिन मोदी सरकार ने संसद में सिर्फ चार लोगों के मरने की बात कही थी। इनमें से तीन बैंककर्मी थे।
50 लाख रोजगार गए
अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर ससटेनेबल इम्पलॉयमेंट की ओर से जारी ‘स्टेट ऑफ़ वर्किंग इंडिया 2019’ रिपोर्ट में यह दावा किया गया था कि नोटबंदी के बाद दो साल में 50 लाख लोग बेरोज़गार हो गए।
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