सुप्रीम कोर्ट जाड़ों की छुट्टी के लिए शनिवार को बंद हो रहा है, लेकिन शुक्रवार को आख़िरी दिन रफ़ाल के मामले पर सारी याचिकाएँ ख़ारिज कर उसने राजनैतिक तापमान को आसमान पर पहुँचा दिया है।
मोदी जी की छवि के लिए इससे बड़ा ‘बूस्ट’ वर्षान्त पर शायद ही कुछ और होता। संघ परिवार को इस फ़ैसले से हालिया विधानसभा चुनावों में मिली बड़ी हार से उबरने की ऑक्सिजन मिल गयी है। जब रफ़ाल मामले पर एम. एल. शर्मा नाम के एक विवादित वकील साहब ने सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल डाली थी, तमाम लोगों ने संदेह जताया था कि यह सरकारी खेमे की कोशिश है जो इस पीआईएल के ख़ारिज होते ही 'क्लीन चिट' का काम करेगी। इस पीआईएल में अख़बारी सूचनाओं को आधार बनाया गया था। एडवोकेट शर्मा की कई याचिकाओं पर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जुर्माने लगा चुके हैं। अदालतों ने कई बार उनके तर्कों को आधारहीन पाया है।
लेकिन बाद में आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह राज्यसभा में रफ़ाल जहाज़ों के बारे में सरकार के दो बार दिए गए अलग-अलग मूल्यों के तथ्य के आधार पर इसी मामले में 'इंटरवीनर' यानी एक पक्ष बन गए। जब यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी व प्रशान्त भूषण की तिकड़ी ने भी तमाम राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय सूचनाओं वाले दस्तावेज़ लेकर इस मामले में हस्तक्षेप किया तो क़ानूनी हलकों में इसे गंभीरता से लिया गया।
पाँच विधानसभाओं के चुनाव प्रचार के बीच राहुल गांधी ने ‘चौकीदार ही चोर है’ को मशहूर कर दिया था। बीजेपी वाले दिल मसोस कर रह गए कि काश यह फ़ैसला कुछ हफ़्तों पहले आता तो पाँच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे कुछ और होते। सुप्रीम कोर्ट ने आज के फ़ैसले में क़ीमत, प्रक्रिया और ऑफ़सेट पार्टनर के तीनों मुद्दों पर याचिकाकर्ताओं की दलीलें ख़ारिज कर दीं।
जब सर्वोच्च अदालत ने कहा कि ‘यह कोर्ट के लिए नहीं है कि वह क़ीमत के सही या ग़लत होने की जाँच करे’ तो इसका यह मतलब नहीं निकलता कि कोर्ट ने क़ीमत के मामले में सरकार को ‘क्लीन चिट’ दी है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने क़ानून के अनुच्छेद 32 की सीमित रोशनी में इन याचिकाओं का निरीक्षण किया।
सुप्रीम कोर्ट ने जजमेंट की शुरुआत में ही कार्यपालिका की रक्षा आदि मामलों में फ़ैसले लेने की स्वायत्तता को स्वीकार किया। यह भी कहा कि वह सिर्फ यह देख रहा है कि ऐसे मामले में सुप्रीम कोर्ट को जाँच/सौदे पर रोक जैसी प्रार्थनाओं को स्वीकार करना चाहिये या नहीं!
कांग्रेस के पास बड़े वकीलों की बहुत बड़ी फ़ौज है। प्रशान्त भूषण की तुलना में ऐसे मामलों में कोर्ट के रुख़ को भाँपने में वे ज्यादा कामयाब निकले। कांग्रेस प्रवक्ता सुरजेवाला ने इसे साफ़ किया, 'यह सुप्रीम कोर्ट का मामला है ही नहीं। इसे तो जेपीसी के द्वारा देखा जाना चाहिए। हम सरकार को इसके लिये मजबूर करते रहेंगे।'
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