सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को राज्यों से कहा है कि वे प्रवासी श्रमिकों की पहचान करें और 15 दिन के भीतर उन्हें उनके गृह राज्य में भेजें। शीर्ष अदालत ने कहा कि केंद्र व राज्य सरकारें प्रवासी श्रमिकों पर लॉकडाउन के उल्लंघन को लेकर दर्ज मुक़दमों को भी ख़त्म करें। जस्टिस अशोक भूषण, एम.आर.शाह और वी. रामासुब्रमण्यन की बेंच ने यह फ़ैसला दिया। अदालत प्रवासी मजदूरों के संबंध में दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
एनडीटीवी के मुताबिक़, शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा, ‘राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों को ऐसे प्रवासी श्रमिकों की एक लिस्ट बनानी चाहिए, जो अपने घर पहुंच चुके हैं। इस लिस्ट में इस बात का भी जिक्र होना चाहिए कि वे क्या काम करते थे।’
शीर्ष अदालत ने राज्यों और केंद्र से यह भी कहा कि वे लॉकडाउन के बाद प्रवासी श्रमिकों के लिए बनाई गई योजनाओं के बारे में भी बताएं। अदालत ने राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया कि वे प्रवासी श्रमिकों को दी गई नौकरियों के बारे में जानकारी इकट्ठा करें।
इससे पहले 5 जून को सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को श्रमिकों को उनके घर पहुंचाने के लिए 15 दिन का समय दिया था। अदालत ने अपने आदेश में यह भी कहा था कि सभी राज्यों को अदालत को यह बताना होगा कि वे श्रमिकों को किस तरह रोज़गार व दूसरी तरह की मदद दे सकते हैं।
इस दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि रेलवे ने 3 जून तक 4,228 श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलाई हैं और 57 लाख लोगों को उनके घरों तक पहुंचाया है। इसके अलावा 41 लाख लोग सड़क मार्ग से अपने घर जा चुके हैं।
इससे पिछली सुनवाई में शीर्ष अदालत ने कहा था कि प्रवासी मजदूरों से बसों और ट्रेनों का किराया नहीं लिया जाएगा। अदालत ने कहा था कि यह किराया राज्यों को देना होगा।
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