बीजेपी सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने अपनी ही सरकार पर सवाल खड़े किए हैं। आर्थिक विकास दर में गिरावट से लेकर 'राष्ट्रीय सुरक्षा के कमजोर होने' तक पर। स्वामी ने प्रधानमंत्री मोदी का नाम लेकर कहा है कि वह अपने 8 साल के कार्यकाल में नाकाम साबित हुए हैं।
स्वामी ने आज एक ट्वीट कर कहा, 'सत्ता में 8 वर्षों में हम देखते हैं कि मोदी आर्थिक विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने में विफल रहे हैं। इसके विपरीत 2016 के बाद से विकास दर में सालाना गिरावट आई है। राष्ट्रीय सुरक्षा बेहद कमजोर हुई है। मोदी चीन को लेकर बेख़बर हैं और यह समझ से परे है। ठीक होने की गुंजाइश है लेकिन क्या वह जानते हैं कि कैसे?'
In 8 years in office we see that Modi has failed to achieve targets of economic growth. On the contrary, growth rate has declined annually since 2016. National security has weakened hugely. Modi inexplicably is clueless about China. There is scope to recover but does he know how?
— Subramanian Swamy (@Swamy39) April 19, 2022
वैसे, स्वामी मोदी सरकार पर अक्सर निशाना साधते रहे हैं। लेकिन आर्थिक मामलों में विफल क़रार देना मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों पर सवाल खड़े करता है। देश की जीडीपी विकास दर 2016 के बाद से जो गिरने का सिलसिला शुरू हुआ वह कोरोना काल में रसातल में पहुँच गया था।
भारतीय अर्थव्यवस्था वित्तीय वर्ष 2020-2021 में शून्य से 7.3 प्रतिशत नीचे चली गई, यानी इसकी विकास दर -7.3 दर्ज की गई थी। नेशनल स्टैटेस्टिकल ऑफ़िस यानी एनएसओ ने इस आँकड़े को जारी किया था। मई 2021 में यह रिपोर्ट आई थी और तब कहा गया था कि यह पिछले 40 साल की न्यूनतम आर्थिक विकास दर है। वित्तीय वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही यानी अप्रैल 2020 से जून 2020 के दौरान विकास दर -24.38 सिकुड़ी थी यानी यह इतनी नेगेटिव में थी। वह आर्थिक विकास दर ठीक ऐसे समय पर दर्ज की गई थी जब नरेंद्र मोदी सरकार के सात साल पूरे हो गए थे। मोदी सरकार इस मौक़े पर बढ़-चढ़ कर दावे कर रही थी जबकि विपक्ष उस पर अर्थव्यवस्था चौपट कर देने का आरोप लगाता रहा है।
हालाँकि, रिपोर्टें तो ऐसी थीं कि कोरोना के पहले ही अधिकतर सेक्टर बेहद ख़राब प्रदर्शन कर रहे थे। रही सही कसर कोरोना ने पूरा कर दिया। कोरोना काल में बेरोज़गारी रिकॉर्ड स्तर पर बढ़ गई। करोड़ों लोगों के बेरोजगार होने की रिपोर्टें आईं। हालाँकि, कोरोना से पहले ही सीएमआईई की रिपोर्ट में सामने आया था कि बेरोजगारी 45 साल के रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गई थी।
कोरोना की पहली लहर के बाद अर्थव्यवस्था उबरती हुई लगी लेकिन बाद में आई संक्रमण की लहरों ने उसमें व्यवधान डाला। जब हालात सुधरने लगे तो जीडीपी में 10 फ़ीसदी से भी ज़्यादा बढ़ोतरी की उम्मीद जताई गई, लेकिन वह उम्मीद भी अब टूटती दिख रही है।
विश्व बैंक ने एक हफ्ते पहले ही भारत के लिए अपने आर्थिक विकास दर के पूर्वानुमानों में कटौती की है।
विश्व बैंक ने दक्षिण एशियाई क्षेत्र की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भारत के लिए अपने विकास अनुमान को चालू वित्त वर्ष में मार्च 2023 तक के लिए 8.7% से घटाकर 8% कर दिया है।
बैंक ने कहा है कि भारत में कोरोना महामारी से श्रम बाजार को पूरी तरह उबरने में दिक्कतों और मुद्रास्फीति के दबाव से घरेलू खपत बाधित होगी।
महंगाई बेकाबू!
बता दें कि हाल ही में जारी आँकड़ों में कहा गया है कि मार्च महीने में खुदरा महंगाई दर 6.95 फ़ीसदी रही है। यह 16 महीने का रिकॉर्ड स्तर है। यह लगातार तीसरा महीना है जब महंगाई दर रिजर्व बैंक द्वारा तय सीमा से ऊपर है। भारतीय रिज़र्व बैंक ने इस महंगाई को 6 प्रतिशत की सीमा के अंदर रखने का लक्ष्य रखा है। यानी मौजूदा महंगाई की दर लगातार तीसरे महीने ख़तरे के निशान के पार है और लगातार बढ़ रही है।
खुदरा महंगाई के बाद आए थोक महंगाई के आँकड़ों ने भी चिंता पैदा की है। थोक मूल्य मुद्रास्फीति मार्च में बढ़कर 14.55 प्रतिशत पर पहुँच गई है। यह पिछले चार महीने के उच्चतम स्तर है। इससे पहले फरवरी में यह थोक महंगाई 13.11 प्रतिशत थी।
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