लोकसभा चुनाव में बीजेपी को शिकस्त देने के मक़सद से बना महागठबंधन आख़िरकार ढह गया। महागठबंधन में शामिल बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) सुप्रीमो मायावती ने इससे बाहर आने के पीछे जो कारण बताए हैं, वे किसी के गले नहीं उतर रहे हैं। मायावती ने चुनाव में हार के लिए समाजवादी पार्टी (एसपी) को ज़िम्मेदार ठहराते हुए कहा है कि चुनाव में यादव मतदाताओं ने उत्तर प्रदेश में महागठबंधन का साथ नहीं दिया। हालाँकि उन्होंने यह भी कहा कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव और उनकी पत्नी डिंपल यादव से उनका कोई मनमुटाव नहीं है।
उत्तर प्रदेश की जिन 11 सीटों पर उपचुनाव होना है, वे सीटें हैं - गंगोह, टूंडला, रामपुर, गोविंदनगर, लखनऊ कैंट, प्रतापगढ़, मानिकपुर चित्रकूट, जैदपुर, बलहा, बहराइच, इगलास और जलालपुर।
चुनाव से पहले भी यह चर्चा जोरों पर थी कि चुनाव के बाद मायावती या तो एसपी से गठबंधन तोड़ लेंगी या बीजेपी का दामन थाम सकती हैं। बता दें कि मायावती पहले भी तीन बार - 1995, 1997 और 2002 में बीजेपी के साथ मिलकर यूपी में सरकार बना चुकी हैं।
मायावती ने महागठबंधन से अलग होने के पीछे जो कारण बताए हैं, क्या वह सही हैं या बीएसपी सुप्रीमो झूठ बोल रही हैं, उसके लिए हमें बीएसपी को 2014 और 2019 में मिले वोट शेयर की तुलना करनी होगी।
2014 में एसपी को 22.35%, बीएसपी को 19.77% वोट मिले थे जबकि 2019 में एसपी को 17.96% और बीएसपी को 19.26% वोट मिले। यानी एसपी का वोट शेयर तो गिरा लेकिन बीएसपी का लगभग वही रहा। ऐसे में माया कैसे कह सकती हैं कि उन्हें एसपी का वोट नहीं मिला।
यह बात भी ध्यान रखने वाली है कि 2014 में 0 सीटों के मुक़ाबले इस बार बीएसपी को 10 सीटें मिली हैं, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि मायावती को एसपी और आरएलडी के मतदाताओं का वोट ट्रांसफ़र नहीं हुआ।
मायावती एक बार फिर मुसलिमों के बीच आधार बनाने की कोशिशों में जुटी हैं। 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने सबसे ज़्यादा मुसलिम उम्मीदवारों को टिकट दिया था, हालाँकि इसका उन्हें कोई फ़ायदा नहीं मिला था।
क्या फिर साथ आएँगे दोनों दल?
उत्तर प्रदेश में अगले विधानसभा चुनाव 2022 में हैं, ऐसे में तब तक एसपी और बीएसपी अगर फिर से वापस आना चाहें तो इसके लिए उनके पास काफ़ी वक्त है। अगर 2022 से पहले तक बीजेपी मजबूत स्थिति में ही रही तो ये दोनों दल एक बार फिर गठबंधन कर सकते हैं। इसीलिए मायावती ने अखिलेश के ख़िलाफ़ व्यक्तिगत रूप से एक भी शब्द बोलने से परहेज किया है।मायावती ने बार-बार ‘आधार वोटों’ का जिक्र किया है। मायावती ने चुनाव प्रचार के दौरान यही कहा था कि ‘एक भी वोट न घटने पाये, एक भी वोट न बँटने पाये’, इसका मतलब यही था कि तीनों दलों के आधार वोट यानी मुसलिम-यादव-दलित-जाट वोट महागठबंधन को मिलें।
बीजेपी ने फ़ेल की गणित
लेकिन चुनाव नतीजे साफ़ करते हैं कि बीजेपी की ओर से बिछाई गई चुनावी बिसात के सामने महागठबंधन की यह गणित पूरी तरह से फ़ेल हो गई। बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव के मुक़ाबले अपने वोट शेयर में अच्छा-ख़ासा इज़ाफ़ा किया। 2014 में उसे 42.63% वोट मिले थे जबकि 2019 में उसे 49.56% वोट मिले हैं। जबकि बीएसपी-एसपी-आरएलडी गठबंधन को 2014 में 42.98% वोट मिले थे जबकि इस बार उसे 38.89% वोट मिले हैं।बिहार में 2015 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के ख़िलाफ़ जिस तरह का महागठबंधन बनाया गया था, वैसा उत्तर प्रदेश में इस चुनाव में नहीं बन सका। बिहार विधानसभा के चुनाव में आरजेडी-जेडीयू-कांग्रेस महागठबंधन ने भी जातीय आधार पर वोटों की चुनावी बिसात बिछाई थी, साथ ही नीतीश कुमार की सुशासन बाबू की छवि को मुद्दा बनाया था। ऐसा करके महागठबंधन बीजेपी को मात देने में सफल रहा था।लेकिन उत्तर प्रदेश में बना गठबंधन सिर्फ़ ‘जातीय आधार’ के वोटों तक सिमटकर रह गया। कर्नाटक में बीजेपी के ख़िलाफ़ बने कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन और झारखंड में भी बीजेपी के ख़िलाफ़ ही बने कांग्रेस-जेएमएम गठबंधन भी बीजेपी को मात नहीं दे सका।
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