क्या मारे गए ईरानी कमान्डर कासिम सुलेमानी के तार भारत से भी जुड़े थे? क्या उनके लोगों ने भारत में भी अपनी जगह बना ली थी और यहाँ भी उनके इशारे पर हमले हुए थे? क्या उनके एजेंटों ने ही 2012 में इज़रालयी दूतावास की गाड़ी को निशाना बनाया था?
ये सवाल इसलिए पूछे जा रहे हैं कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने यह कह कर सबको चौंका दिया है कि कासिम सुलेमानी ने लंदन से लेकर भारत तक आतंकवादी हमलों की साजिश रची थी।
बता दें कि ईरान के कुद्स फ़ोर्स के प्रमुख मेजर जनरल कासिम सुलेमानी गुरुवार को जिस समय इराक़ की राजधानी बग़दाद में हवाई अड्डे की ओर जा रहे थे, उनकी कार पर ड्रोन से मिसाइल हमला हुआ। उनकी वहीं मौत हो गई। उनके साथ शिया मिलिशिया के स्थानीय कमान्डर भी थे।
सुलेमानी पर हुए हमले को जायज़ ठहराने की कोशिश में ट्रंप ने कहा :
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सुलेमानी ने निर्दोषों की हत्या को अपना रुग्ण जुनून बना लिया था, यहाँ तक कि लंदन और नई दिल्ली जैसी दूर की जगहों पर भी आतंकवादी साजिश रचने में उसकी भूमिका थी।
डोनल्ड ट्रंप, राष्ट्रपति, अमेरिका
भारत पर आरोप
ट्रंप ने विस्तार से यह नहीं बताया कि सुलेमानी ने नई दिल्ली में कब, कहाँ और कैसे आतंकवादी हमले की साजिश रची थी।पर उनका इशारा क्या नई दिल्ली स्थित इज़रायली दूतावास में डिफेन्स अताशे (रक्षा मामलों में सरकार को सलाह देने वाले अफ़सर) की पत्नी की कार पर हुआ हमला था?
नई दिल्ली में 13 फरवरी, 2012 को हुए इस हमले में ताल येहोसुआ कोरेन घायल हो गई थीं। उनकी बाँह में छर्रे के टुकड़े घुस गए थे। गाड़ी का ड्राइवर और सड़क पर खड़े दो लोग भी ज़ख़्मी हो गए थे। गाड़ी के नीचे चुंबक की मदद से बम लगा दिया गया था।
तत्कालीन इज़रायली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने कहा था कि इस हमले के पीछे ईरान है। उन्होंने यह भी कहा था कि जॉर्जिया में भी बिल्कुल इसी तरह का हमला हुआ था और वह भी ईरान ने ही करवाया था।
उस समय यह कहा गया था कि ईरानी परमाणु वैज्ञानिक मुस्तफ़ा अहमदी रोशन की हत्या इसी तरह गाड़ी के नीचे चुंबक में बम लगा कर दी गई थी। उसका बदला लेने के लिए ही ईरानी अफ़सर की पत्नी पर भारत में उसी तरह का हमला हुआ।
पत्रकार गिरफ़्तार
नई दिल्ली में हुए हमले के मामले में उसी साल 6 मार्च को पत्रकार सैयद मुहम्मद अहमद काज़मी को गिरफ़्तार किया गया था। उन्हें अनलॉफुल एक्टिविटीज़ प्रीवेन्शन एक्ट (यूएपीए) के तहत गिरफ़्तार किया गया था। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें रिहा करने का आदेश दिया, पर यह शर्त लगा दी थी कि वह विदेश नहीं जाएंगे।
दिल्ली पुलिस ने आरोप लगाया था कि काज़मी ने हमला करने वाले ईरानियों के लिए उस इलाक़े की निगरानी की थी। पुलिस ने यह भी कहा था कि हमला करने के लिए ईरानियन रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के 5 लोग भारत आए थे। उनकी पहचान कर ली गई थी, पर उन्हें गिरफ़्तार नहीं किया गया था।
काज़मी के खाते में इतने पैसे कहाँ से आए?
पत्रकार काज़मी के बैंक खाते में लाखों रुपये मूल्य की विदेशी मुद्रा इस हमले से पहले जमा कराई गई थी, लेकिन यह पैसा कहाँ से आया और किसने दिया, काज़मी इसका कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाए थे।
दिल्ली पुलिस के तत्कालीन प्रमुख बी. के. गुप्ता ने कहा था कि 6 मार्च को गिरफ़्तार होने के पहले काज़मी के बैंक खाते में 3.80 लाख रुपये और उनकी पत्नी के बैंक खाते में 18,78,500 रुपये की विदेशी मुद्रा विदेश से आई थी।
इसके अलावा काज़मी के खाते में 5,500 अमेरिकी डॉलर भी पाए गए थे। पर काज़मी इसके स्रोत की संतोषजनक जानकारी नहीं दे पाए थे। प्रवर्तन निदेशालय (एनफ़ोर्समेंट डाइरेक्टरेट) को बाद में फ़ॉरन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट के तहत जाँच करने को कहा गया था।
सवाल यह उठता है कि काज़मी और उनकी पत्नी के बैंक खाते में इतने पैसे कहाँ से आए। वह एक ईरानी अख़बार के लिए कभी-कभी लिखते थे। पर क्या उससे इतने पैसे मिले थे? यदि हाँ तो काज़मी इसके सबूत क्यों नहीं दिखा पाए?
भारत ने विदशों से माँगी थी मदद
भारत ने इस हमले की जाँच में मदद माँगते हुए ईरान, मलेशिया, थाईलैंड और जॉर्जिया को चिट्ठी लिखी थी। उसमें भारत के साथ क़रार और अंतरराष्ट्रीय क़ानून का हवाला देते हुए मदद करने को कहा गया था। इन देशों से ईरानी नागरिक होशंग अफ़सर के बारे में जानकारी माँगी गई थी। गाड़ी के नीचे बम लगाने का आरोप होशंग अफ़सर पर था।
मलेशिया पुलिस ने कुआलालम्पुर हवाई अड्डे पर ईरानी नागरिक मसूद सदगदजादेह को गिरफ़्तार किया था। उसके फ़ोनबुक में भारतीय पत्रकार का नाम था। उसके बाद ही काज़मी को गिरफ़्तार किया गया था।
सवाल यह उठता है कि ईरानी नागरिक सदगदजादेह के फ़ोनबुक में काज़मी का नाम क्यों था? क्या काज़मी उसके संपर्क में थे? सदगदजादेह ईरान के इसलामी रिवोल्यूशनरी गार्ड से जुड़े हुए थे, इससे इनकार नहीं किया जा सकता।
मुश्किल में पड़ सकता है भारत
तो क्या डोनल्ड ट्रंप का आरोप सही है? यदि यह मामला तूल पकड़ता है तो भारत के लिए मुश्किलें बढ़ेंगी। उसे इस मामले की तह में जाना होगा। ऐसे में काज़मी से फिर पूछताछ की जा सकती है। पाकिस्तान पर आतंकवाद का आरोप लगाने वाला भारत इस तरह के हमले के अभियुक्त को नहीं बचा सकता।
भारत इस मामले में हीला हवाला इसलिए भी नहीं कर सकता कि केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार के आने के बाद से इज़रायल से नज़दीकियाँ बढ़ी हैं। इसी तरह ट्रंप प्रशासन से भी मोदी सरकार की नज़दीकियाँ बढ़ी है। उनके कहने पर भारत को जाँच करवानी होगी और उसे यह जाँच करवानी ही चाहिए।
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