दिल्ली में आम आदमी पार्टी की ज़बरदस्त जीत पर बीजेपी के पूर्व सहयोगी शिवसेना ने अमित शाह को निशाने पर लिया है। इसने कहा है कि चुनाव में बीजेपी के ख़राब प्रदर्शन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से ज़्यादा गृह मंत्री अमित शाह ज़िम्मेदार हैं। शिवसेना के मुखपत्र सामना में दिल्ली चुनाव में बीजेपी की हार पर संपादकीय छपा है। इसने लिखा है कि बीजेपी राज्यों के चुनाव लगातार इसलिए हार रही है क्योंकि या तो इसे किसी पार्टी या नेता से कड़ी चुनौती मिल रही है। इसने लिखा है कि राज्यों के चुनाव से अलग लोकसभा चुनाव सिर्फ़ मोदी का करिश्मा ने जिताया था।
दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने 70 में से 62 सीटें जीती हैं। बीजेपी को आठ सीटें मिली हैं।
दिल्ली चुनाव के नतीजे के बाद अरविंद केजरीवाल को चारों तरफ़ से बधाइयाँ मिल रही हैं, लेकिन बीजेपी और गृह मंत्री अमित शाह की आलोचना हो रही है। ज़्यादा आलोचना इसलिए हो रही है कि बीजेपी ने दिल्ली चुनाव जीतने के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। इसके लिए साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करने से लेकर, हिंदुत्व, राष्ट्रवाद और बीजेपी नेताओं के भड़काऊ भाषण तक का सहारा लिया गया। ऐसी भाषा का इस्तेमाल किया गया जिसे क़तई इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। कहा जाता है कि अमित शाह की रणनीति ही थी कि तमाम मंत्रियों और बड़ी संख्या में सांसदों को लगाया गया। अमित शाह ने ही चुनावी रैलियों का नेतृत्व किया। वह डोर-टू-डोर कैंपेन में लगे रहे और पार्टी कार्यकर्ताओं से फ़ीडबैक लेते रहे। यही कारण है कि शिवसेना ने अमित शाह को निशाने पर लिया है।
'सामना' ने बुधवार को संपादकीय में लिखा है, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नहीं, गृह मंत्री अमित शाह ने दिल्ली के चुनाव को सम्मान का विषय बनाया था। जेपी नड्डा ने हाल ही में पार्टी की बागडोर संभाली है, लेकिन असली 'खिलाड़ी' अमित शाह थे। पार्टी अध्यक्ष के कार्यकाल समाप्त होने से पहले वह चुनाव जीतना चाहते थे। उन्होंने झारखंड के साथ-साथ महाराष्ट्र को भी खो दिया। राष्ट्रीय राजधानी में आप का झंडा फहरा रहा है, जबकि वित्तीय राजधानी में शिवसेना के मुख्यमंत्री स्थापित हैं।"
संपादकीय में बीजेपी द्वारा नागरिकता क़ानून को मुद्दा बनाए जाने पर भी टिप्पणी की गई है।
सामना के अनुसार, बीजेपी ने नागरिकता संशोधन क़ानून यानी सीएए और दिल्ली में शाहीन बाग़ प्रदर्शन को सिर्फ़ मुसलिम का प्रदर्शन बताया और अपने चुनाव कैंपेन को इसी के इर्द-गिर्द रखा। इसने यह भी लिखा है कि मतदाता ध्रुवीकरण के इस झाँसे में नहीं आए और केजरीवाल के पक्ष में मतदान किया।
सामना ने संपादकीय में लिखा है, 'पिछले साल ही दिल्ली में लोकसभा चुनाव में सातों सीटों पर बीजेपी जीती थी, लेकिन विधानसभा चुनाव में इसे केजरीवाल के रूप में मज़बूत स्थानीय विकल्प का सामना करना पड़ा। केजरीवाल ने अपने काम के दम पर वोट माँगा।'
बता दें कि शिवसेना 2019 के लोकसभा चुनाव तक शिवसेना और बीजेपी गठबंधन में थे। हालाँकि उनके बीच कुछ विवाद होते रहे थे। लेकिन महाराष्ट्र चुनाव नतीजों के बाद गठबंधन को बहुमत मिलने के बावजूद दोनों पार्टियों में तालमेल नहीं बनने के कारण इस गठबंधन की सरकार नहीं पाई थी और दोनों पार्टियाँ अलग हो गईं। शिवसेना ने शरद पवार की पार्टी एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई है। इसके बाद से ही शिवसेना बीजेपी पर हमलावर रही है।
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