नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर बीजेपी पर विपक्षी दल तो हमलावर हैं ही राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में शामिल दल भी इस क़ानून को लेकर नाराज़गी जता रहे हैं। एनडीए में शामिल एक अहम सहयोगी दल शिरोमणि अकाली दल (शिअद) (बादल) ने भी कहा है कि इस क़ानून में मुसलिमों को भी भारत की नागरिकता देने का प्रावधान होना चाहिए। शिअद ने कहा है कि वह नैशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजंस (एनआरसी) के पूरी तरह ख़िलाफ़ है क्योंकि यह अल्पसंख्यकों के मन में भय पैदा करता है। कुछ दिन पहले बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल (यूनाइटेड) के प्रमुख नीतीश कुमार ने भी कहा था कि वह बिहार में एनआरसी को लागू नहीं करेंगे।
शिअद के बयान के बाद बीजेपी की मुश्किलें इसलिए और ज़्यादा बढ़ गई हैं क्योंकि पश्चिम बंगाल से लेकर, उड़ीसा और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री पहले ही एनआरसी का विरोध कर चुके हैं।
‘एनडीए में कई दल नाख़ुश’
गुजराल ने कहा कि एनडीए में शामिल कई दल नाख़ुश हैं। उन्होंने कहा कि जिस तरह एनडीए में शामिल सहयोगी राजनीतिक दलों के साथ व्यवहार किया जा रहा है, उससे सहयोगी दल ख़ुश नहीं हैं। राज्यसभा सांसद ने कहा कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि एनडीए में बातचीत और चर्चा का होना बंद हो गया है और यह भी दुर्भाग्यपूर्ण है कि अब सलाह-मशविरा भी नहीं होता और नाख़ुश होने की यही वजह है।
बीजेपी की सबसे अहम सहयोगी रही शिवसेना एनडीए छोड़ चुकी है। झारखंड में ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) ने तो साथ छोड़ा ही, बीजेपी चुनाव भी हार गई। झारखंड में ही जेडीयू और लोकजनशक्ति पार्टी ने उसके ख़िलाफ़ चुनाव लड़ा है।
गुजराल ने कहा कि हमें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेता की ज़रूरत है। शिअद नेता ने कहा, ‘वाजपेयी ने 20 दलों के गठबंधन वाली सरकार चलाई थी और सभी दल ख़ुश थे क्योंकि सभी को इज्जत दी जाती थी। वाजपेयी जी के दरवाज़े हमेशा खुले रहते थे और बातचीत होती थी।’ गुजराल ने कहा कि जब तक अरुण जेटली जीवित थे, तब तक भी बातचीत के दरवाजे खुले थे। लेकिन उनके जाने के बाद सब बंद हो गया है।
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