इजरायली कंपनी एनएसओ के पेगासस स्पाइवेयर से कथित जासूसी मामले की जाँच की मांग वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार यानी पाँच अगस्त को सुनवाई होगी। दो जजों की बेंच इन याचिकाओं पर फ़ैसला देगी। इसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमन्ना और जस्टिस सूर्यकांत शामिल हैं। दो दिन पहले ही शुक्रवार को मुख्य न्यायाधीश रमन्ना ने कहा था कि काम का दबाव कम होने पर संभव है कि अगले हफ़्ते इसकी सुनवाई हो। उनके सामने वरिष्ठ पत्रकार एन राम और शशि कुमार की ओर से वकील कपिल सिब्बल ने उनकी याचिका को सूचीबद्ध करने के लिए आग्रह किया था।
एन राम और शशि कुमार पिछले हफ़्ते दायर याचिका में पेगासस मामले की जाँच सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा या सेवानिवृत्त जज से कराए जाने की मांग की थी। आरोप है कि पेगासस स्पाइवेयर से विपक्षी नेताओं, कुछ मंत्रियों, क़रीब 40 पत्रकारों सहित दूसरे लोगों की जासूसी के लिए निशाना बनाया गया है।
पेगासस मामले में अब तक कम से कम तीन याचिकाएँ दायर की जा चुकी हैं। उससे पहले पिछले हफ़्ते ही सीपीएम के एक सांसद और इससे भी पहले एक वकील ने अदालत में याचिका दायर कर ऐसी ही मांग की थी।
एन राम और शशि कुमार की याचिका में कहा गया है कि दुनिया भर के कई प्रमुख प्रकाशनों से जुड़ी वैश्विक जाँच से पता चला है कि भारत में 142 से अधिक व्यक्तियों को पेगासस स्पाइवेयर का उपयोग करके निगरानी के संभावित लक्ष्य के रूप में पहचाना गया था। उसमें यह भी कहा गया कि उस स्पाइवेयर के संभावित टार्गेट किए गए कुछ मोबाइल फ़ोन की फ़ोरेंसिक जाँच में भी पेगासस के हमले के निशान मिले हैं।
एन राम और शशि कुमार की याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट को सरकार को यह खुलासा करने का निर्देश देना चाहिए कि क्या उसने स्पाइवेयर के लिए लाइसेंस प्राप्त किया है या इसका इस्तेमाल प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी भी तरह की निगरानी के लिए किया है।
इस मामले की जाँच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में कराए जाने को लेकर केरल के सीपीएम सांसद जॉन ब्रिटास याचिका दायर कर चुके हैं।
सांसद ने द वायर की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा है कि उन नंबरों में से एक नंबर सर्वोच्च न्यायालय के एक मौजूदा न्यायाधीश के नाम पर पंजीकृत है और यह न्याय के प्रशासन में हस्तक्षेप करने के बराबर है और यह अभूतपूर्व व चौंकाने वाला है।
सांसद की याचिका में कहा गया है कि सरकार ने न तो स्वीकार किया है और न ही इनकार किया है कि स्पाइवेयर उसकी एजेंसियों द्वारा खरीदा और इस्तेमाल किया गया था। बता दें कि सरकार ने एक बयान में कहा है कि उसकी एजेंसियों द्वारा कोई अनधिकृत रूप से इन्टरसेप्ट नहीं किया गया है और विशिष्ट लोगों पर सरकारी निगरानी के आरोपों का कोई ठोस आधार नहीं है।
पिछले हफ़्ते ही एक वरिष्ठ वकील एमएल शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में कथित पेगासस जासूसी मामले की जाँच के लिए याचिका दायर की थी। मीडिया रिपोर्टों का हवाला देते हुए एमएल शर्मा द्वारा दायर याचिका में कहा गया है, 'पेगासस घोटाला गंभीर चिंता का विषय है और भारतीय लोकतंत्र, न्यायपालिका और देश की सुरक्षा पर गंभीर हमला है। निगरानी का व्यापक और ग़ैर-जवाबदेह उपयोग नैतिक रूप से भ्रष्ट है।'
बता दें कि 'द गार्डियन', 'वाशिंगटन पोस्ट', 'द वायर' सहित दुनिया भर के 17 मीडिया संस्थानों ने पेगासस स्पाइवेयर के बारे में खुलासा किया है। एक लीक हुए डेटाबेस के अनुसार इजरायली निगरानी प्रौद्योगिकी फर्म एनएसओ के कई सरकारी ग्राहकों द्वारा हज़ारों टेलीफोन नंबरों को सूचीबद्ध किया गया था। 'द वायर' के अनुसार इसमें 300 से अधिक सत्यापित भारतीय मोबाइल टेलीफोन नंबर शामिल हैं। जो नंबर पेगासस के निशाने पर थे वे विपक्ष के नेता, मंत्री, पत्रकार, क़ानूनी पेशे से जुड़े, व्यवसायी, सरकारी अधिकारी, वैज्ञानिक, अधिकार कार्यकर्ता और अन्य से जुड़े हैं।
पेगासस से जासूसी मामले में कई देशों की सरकारों ने जाँच के आदेश दिए हैं। इसमें फ्रांस के अलावा अल्जीरिया, इजरायल और मेक्सिको जैसे देश शामिल हैं। मेक्सिको के अटॉर्नी जनरल ने हाल ही में कहा था कि एनएसओ ने जिस व्यक्ति थॉमस ज़ेरोन के साथ क़रार किया था, वह भाग कर इज़रायल चला गया और उसकी जाँच की जा रही है।
जिस इजरायल की कंपनी पर आरोप लगे हैं वहाँ भी जाँच के आदेश दिए गए हैं। इस मामले में बुधवार को ही इजरायली सरकारी अधिकारियों ने एनएसओ ग्रुप के कार्यालयों पर छापे मारे हैं। फ्रांस की सरकारी एजेंसी द्वारा इसकी पुष्टि किए जाने से पहले एक रिपोर्ट में कहा गया था कि लीक हुए डेटाबेस के इन नंबरों से जुड़े कुछ फ़ोन पर किए गए गै़र सरकारी फोरेंसिक जाँच से पता चला कि 37 फोन में पेगासस स्पाइवेयर से निशाना बनाए जाने के साफ़ संकेत मिले थे। इनमें से 10 भारतीय हैं।
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