कांवड़ यात्रा मार्ग के भोजनालयों या रेहड़ियों पर अब मालिकों का नाम लिखने की ज़रूरत नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार द्वारा कांवड़ यात्रा मार्ग के भोजनालय को लेकर जारी निर्देशों पर रोक लगा दी है। यूपी और उत्तराखंड सरकार के इन निर्देशों में कहा गया था कि कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित भोजनालयों को ऐसी दुकानों के बाहर मालिकों के नाम प्रदर्शित करने होंगे।
न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और एसवीएन भट्टी की पीठ ने सरकार के निर्देशों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर नोटिस जारी करते हुए अंतरिम आदेश पारित किया। पीठ ने हालांकि साफ़ किया कि भोजनालयों को परोसा जा रहा भोजन प्रदर्शित करना चाहिए। याचिकाकर्ताओं ने इन निर्देशों को धार्मिक भेदभाव का कारण बताते हुए चुनौती दी थी और ऐसे निर्देश जारी करने के लिए अधिकारियों के अधिकार के स्रोत पर सवाल उठाया था।
मूल निर्देश मुजफ्फरनगर पुलिस द्वारा जारी किया गया था। इन पर विवाद होने के बाद भी यूपी की योगी सरकार ने पूरे यूपी में ही काँवड़ यात्रा मार्ग की दुकानों व रेहड़ियों के लिए निर्देश जारी कर दिया। इन निर्देशों को चुनौती देते हुए प्रोफेसर अपूर्वानंद सहित कई लोगों ने याचिकाएं दायर की थीं। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने निर्देशों के पीछे के तर्कसंगत संबंध पर सवाल उठाया।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार अदालत ने कहा है कि कांवड़ियों को मानक स्वच्छता बनाए रखते हुए उनकी पसंद के आधार पर भोजन परोसा जाना जायज है। अपने आदेश में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, 'प्रभावित मालिकों को खाद्य पदार्थों का प्रकार तो बताना होगा, लेकिन नाम नहीं।'
इस पर पीठ ने पूछा कि क्या ये प्रेस बयान में जारी किए गए 'आदेश' या 'निर्देश' हैं। इस पर डॉ. सिंघवी ने साफ़ किया कि पहले निर्देश प्रेस बयानों के माध्यम से जारी किए गए थे। हालांकि, उन्होंने बताया कि अधिकारी इसे सख्ती से लागू कर रहे हैं।
सिंघवी ने कहा,
“
ऐसा पहले कभी नहीं किया गया। इसका कोई वैधानिक समर्थन नहीं है। कोई भी कानून पुलिस आयुक्तों को ऐसा करने का अधिकार नहीं देता। निर्देश हर हाथगाड़ी, चाय-स्टॉल के लिए हैं। कर्मचारियों और मालिकों के नाम देने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होता।
अभिषेक मनु सिंघवी, सुप्रीम कोर्ट में दलील
न्यायमूर्ति रॉय ने फिर पूछा कि क्या सरकार की ओर से कोई औपचारिक आदेश जारी किया गया है। सिंघवी ने जवाब दिया कि यह एक 'छिपा हुआ आदेश' है। उन्होंने बताया कि निर्देशों में 'स्वेच्छा से' लिखा है। उन्होंने तर्क दिया कि ये निर्देश इसलिए छिपे हुए हैं क्योंकि अगर नाम बताए गए तो व्यक्ति को आर्थिक रूप से वंचित होना पड़ेगा। अगर नाम नहीं बताए गए तो व्यक्ति को जुर्माना भरना पड़ेगा।
सिंघवी ने स्पष्ट किया कि हालांकि ये स्वैच्छिक निर्देश हो सकते हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक बयान जारी किया है कि ये निर्देश सामान्य रूप से सभी जिलों पर लागू होंगे।
सिंघवी ने कहा, 'हिंदुओं द्वारा चलाए जाने वाले बहुत से शुद्ध शाकाहारी रेस्तराँ हैं, लेकिन उनमें मुस्लिम कर्मचारी हैं। क्या मैं कह सकता हूँ कि मैं वहाँ जाकर नहीं खाऊँगा? क्योंकि भोजन को किसी तरह से वे छूते हैं?'
इस बीच न्यायमूर्ति भट्टी ने एक दिलचस्प कहानी साझा की। उन्होंने बताया कि केरल में एक होटल हिंदू द्वारा चलाया जाता है और दूसरा मुस्लिम द्वारा। लेकिन वे अक्सर मुस्लिम के स्वामित्व वाले शाकाहारी होटल में जाते थे क्योंकि वे स्वच्छता के अंतरराष्ट्रीय मानकों को बनाए रखते थे।
यूपी सरकार के इस आदेश का एनडीए के सहयोगी दल ही विरोध कर रहे हैं। जेडीयू, आरएलडी के बाद चिराग पासवान ने भी यूपी में योगी के कांवड़ यात्रा नियमों का विरोध किया है।
उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा मार्ग पर खाने-पीने का सामान बेचने वाले होटलों, ढाबों, रेहड़ी-पटरी वालों को अपने मालिकों के नाम प्रदर्शित करने का आदेश दिया गया है और इस पर ही विवाद हो रहा है। इसी को लेकर एनडीए के सहयोगी अब असहज महसूस कर रहे हैं।
चिराग पासवान ने कहा कि वह पुलिस की सलाह या ऐसी किसी भी चीज़ का समर्थन नहीं करते हैं जो 'जाति या धर्म के नाम पर विभाजन' पैदा करती हो।
चिराग पासवान ने कहा, 'हमें इन दो वर्गों के लोगों के बीच की खाई को पाटने की ज़रूरत है। गरीबों के लिए काम करना हर सरकार की जिम्मेदारी है, जिसमें समाज के सभी वर्ग जैसे दलित, पिछड़े, ऊंची जाति और मुसलमान भी शामिल हैं। सभी हैं। हमें उनके लिए काम करने की जरूरत है।' उन्होंने कहा कि जब भी जाति या धर्म के नाम पर इस तरह का विभाजन होता है, तो मैं इसका समर्थन या प्रोत्साहन बिल्कुल नहीं करता।
जदयू नेता केसी त्यागी ने कहा कि बिहार में यूपी से भी बड़ी कांवड़ यात्रा होती है। केसी त्यागी ने कहा था, "वहां ऐसा कोई आदेश लागू नहीं है। जो प्रतिबंध लगाए गए हैं, वे प्रधानमंत्री के 'सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास' के नारे का उल्लंघन हैं। यह आदेश न तो बिहार में लागू है और न ही राजस्थान और झारखंड में। अच्छा होगा कि इसकी समीक्षा की जाए। इस आदेश को वापस लिया जाना चाहिए।"
आरएलडी के राष्ट्रीय महासचिव त्रिलोक त्यागी ने कहा, "आप किसी को सड़क पर ठेले पर अपना नाम क्यों लिखवाते हैं? उन्हें काम करने का अधिकार है... यह परंपरा बिल्कुल गलत है। यह ग्राहक पर निर्भर करता है, वे जहां से चाहें खरीददारी कर सकते हैं...।" जयंत चौधरी ने भी कुछ ऐसी ही टिप्पणी की थी।
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