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ट्वीट से फेक न्यूज़ फैलाने के लिए माफी मांगें बीजेपी नेता प्रशांत उमराव: SC

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को उत्तर प्रदेश बीजेपी के प्रवक्ता और अधिवक्ता प्रशांत उमराव को 'फेक' न्यूज़ फैलाने के लिए आलोचना की है। अदालत ने तमिलनाडु में बिहार के प्रवासियों पर कथित हमलों पर प्रशांत उमराव को उनके ट्वीट के लिए बिना शर्त माफी मांगने को कहा है।

प्रशांत उमराव ने जो ट्वीट किया था उसकी सामग्री बाद में ग़लत पाई गई थी और इसे हटा दिया गया था। लेकिन तमिलनाडु पुलिस ने पहले ही उमराव के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया था। उमराव ने 21 मार्च को मद्रास उच्च न्यायालय से अग्रिम जमानत ली थी। उन्होंने शीर्ष अदालत के समक्ष अग्रिम जमानत शर्तों को चुनौती देते हुए अलग-अलग याचिकाएं दायर की थीं और अपने हटाए गए ट्वीट से संबंधित मामलों से जुड़ी राज्य में इसी तरह की सभी एफआईआर को एक साथ जोड़ने की मांग की थी।

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उमराव ने 23 फरवरी को एक ट्वीट किया था जिसमें दावा किया गया था कि 15 प्रवासी श्रमिकों को हिंदी बोलने के लिए पीटा गया था, जिनमें से 12 की मौत हो गई थी। पिछले महीने, तमिलनाडु में कथित तौर पर प्रवासी श्रमिकों पर हमले के वीडियो भी सोशल मीडिया पर साझा किए गए थे। फैक्ट चेक करने वालों और राज्य पुलिस विभाग ने उन्हें फेक न्यूज़ बताते हुए खारिज कर दिया था। 

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस बीआर गवई और पंकज मित्तल की पीठ अधिवक्ता और बीजेपी नेता द्वारा दायर दो याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। पीठ ने याचिका पर नोटिस जारी किया और मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा लगाई गई उस शर्त को संशोधित किया जिसमें उन्हें 15 दिनों के लिए पुलिस के सामने पेश होने की ज़रूरत थी।

कोर्ट ने कहा, 'याचिकाकर्ता को 15 दिनों के लिए सुबह 10.30 बजे से शाम 5.30 बजे के बीच पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट करने की शर्त को संशोधित किया जाता है। वह सोमवार को सुबह 10 बजे और उसके बाद जांच अधिकारी द्वारा ज़रूरी होने पर पेश होंगे।'
शीर्ष अदालत ने एक अंतरिम आदेश भी पारित किया कि उच्च न्यायालय द्वारा दी गई अग्रिम जमानत तमिलनाडु राज्य में दर्ज की गई किसी भी अन्य प्राथमिकी पर समान रूप से लागू होगी।

राज्य के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने पीठ को बताया कि अन्य प्राथमिकियों में प्रशांत को आरोपी के रूप में नामजद नहीं किया गया है।

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प्रशांत उमराव की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने पीठ को बताया कि आरोपी ने केवल उन खबरों को ट्वीट किया था जिन्हें पहले ही विभिन्न मीडिया एजेंसियों द्वारा साझा किया जा चुका था। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा, 'उन्होंने ट्वीट किया। एक अशुद्धि थी। यह पता चलने पर उन्होंने ट्वीट को हटा दिया था। अब उनको परेशान करने वाली कई प्रथम सूचना रिपोर्टें हैं।'

न्यायमूर्ति गवई ने कहा, 'इन दिनों हमें इतना संवेदनशील क्यों होना चाहिए?' सुप्रीम कोर्ट के जज ने हाई कोर्ट द्वारा लगाई गई जमानत की शर्त पर भी हैरानी जताई। जस्टिस गवई ने पूछा, 'आप 15 दिनों से हर दिन पांच घंटे क्या जांच कर रहे हैं?'

राज्य पुलिस की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने यह मानने से इनकार कर दिया कि उक्त शर्त में कुछ भी गलत था। वरिष्ठ वकील ने तर्क दिया, 'यह केवल पूछताछ के लिए है।' 

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उन्होंने यह भी बताया कि भाजपा प्रवक्ता न तो पुलिस के सामने पेश हुए और न ही यह कहते हुए कोई हलफनामा दिया कि वह ऐसा कोई भी ट्वीट पोस्ट करने से परहेज करेंगे जो विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देगा। वरिष्ठ वकील ने कहा, 'उन्हें कम से कम अन्य शर्तों का पालन करना चाहिए। आज तक हलफनामा दाखिल क्यों नहीं किया?'। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि उनका ट्वीट गैर-जिम्मेदाराना था और इसके दूरगामी परिणाम थे। उन्होंने कहा, 'उनके ट्वीट को देखें। वह एक वकील हैं। एक वकील कह रहा है कि तमिलनाडु में हिंदी भाषी लोगों पर हमले हो रहे हैं। एक वकील के लिए ऐसा कहना ...'।

न्यायमूर्ति गवई ने फिर कहा कि उन्हें और अधिक जिम्मेदार होना चाहिए। उनको अगली तारीख से पहले माफी मांगने के लिए कहा।

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क़मर वहीद नक़वी
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