सुप्रीम कोर्ट ने बूथ स्तर पर वोटों के रिकॉर्ड प्रकाशित करने का चुनाव आयोग को निर्देश देने से इनकार कर दिया है। चुनाव सुधार पर काम करने वाले एक गैर सरकारी संगठन एडीआर की याचिका में चुनाव आयोग को फॉर्म 17-सी यानी बूथ पर डाले गए वोटों की संख्या का डेटा प्रकाशित करने का निर्देश देने की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका ख़ारिज की कि चुनाव के बीच में चुनाव आयोग के लिए मैन पावर यानी जनशक्ति जुटाना मुश्किल होगा।
जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की अवकाश पीठ ने कहा कि वह इस स्तर पर ऐसा कोई निर्देश जारी नहीं कर सकती और मामले को अवकाश के बाद उचित पीठ के समक्ष सूचीबद्ध कर दिया। यानी याचिका को आगे के लिए टाल दिया गया है।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की अवकाश पीठ ने कहा कि चुनाव प्रक्रिया के संबंध में न्यायालय को 'हस्तक्षेप नहीं करने का दृष्टिकोण' अपनाना होगा और प्रक्रिया में कोई रुकावट नहीं हो सकती है। पीठ ने यह भी बताया कि अंतरिम आवेदन में प्रार्थनाएं 2019 में दायर मुख्य रिट याचिका में प्रार्थनाओं के समान हैं।
जस्टिस दत्ता ने मौखिक रूप से कहा, 'चुनावों के बीच, व्यावहारिक रुख अपनाना होगा। आवेदन को मुख्य रिट याचिका के साथ सुना जाए। हम प्रक्रिया को बाधित नहीं कर सकते। हमें चुनाव आयोग पर थोड़ा भरोसा करना चाहिए।' पीठ ने एक घंटे से अधिक समय तक दलीलें सुनीं।
दो दिन पहले ही दिए गए अपने हलफनामे में चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि इसकी वेबसाइट पर मतदान की संख्या बताने वाले फॉर्म 17सी को अपलोड करने से गड़बड़ियाँ हो सकती हैं।
इसने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि इमेज के साथ छेड़छाड़ की संभावना है और चिंता जताई है कि इससे अविश्वास पैदा हो सकता है।
चुनाव आयोग ने कहा था, 'फॉर्म 17 सी का संपूर्ण खुलासा पूरे चुनावी माहौल को खराब करने और बिगाड़ने का कारण बन सकता है। फिलहाल, मूल फॉर्म 17 सी केवल स्ट्रॉन्ग रूम में उपलब्ध है और इसकी एक प्रति केवल मतदान एजेंटों के पास है जिनके हस्ताक्षर हैं। इसलिए, प्रत्येक फॉर्म 17सी और उसके धारक के बीच संबंध है। वेबसाइट पर अंधाधुंध खुलासे करने से इमेज के साथ छेड़छाड़ की संभावना बढ़ जाती है।'
विपक्षी दलों ने मतदाता संख्या नहीं जारी करने की चुनाव आयोग की दलीलों को खारिज कर दिया है और उन्होंने इसके लिए पोल पैनल की आलोचना की है।
पिछले कुछ हफ्तों में कांग्रेस, सीपीएम और तृणमूल कांग्रेस सहित विपक्षी दलों ने अंतिम मतदान प्रतिशत जारी करने में देरी और प्रत्येक संसदीय क्षेत्र में मतदाताओं की कुल संख्या प्रकाशित करने के लिए चुनाव आयोग को पत्र लिखा है।
कांग्रेस ने मतदान के वास्तविक समय के आंकड़ों और चुनाव आयोग द्वारा जारी अंतिम आंकड़ों के बीच बड़े अंतर पर सवाल उठाए और कहा कि मतदाता चुनाव आयोग में अजीब गतिविधियों से चिंतित हैं।
कांग्रेस नेता और मीडिया एवं प्रचार विभाग के प्रमुख पवन खेड़ा ने चौथे चरण के मतदान के बाद ही कहा था कि अंतर करीब 1.7 करोड़ वोटों का है। उन्होंने इसे अभूतपूर्व बताया। एआईसीसी महासचिव जयराम रमेश ने तब कहा था, 'कुल मिलाकर 1.07 करोड़ का यह अंतर प्रत्येक लोकसभा सीट पर 28,000 की वृद्धि दर्शाता है। यह बहुत बड़ा है। विसंगति उन राज्यों में सबसे अधिक है जहां भाजपा को भारी सीटें खोने की संभावना है। क्या हो रहा है?'
एडीआर के संस्थापक जगदीप एस छोकर ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस से कहा है कि 2019 में चुनाव आयोग ने चार चरण के लोकसभा चुनावों के लिए लिंग-वार मतदान की पूरी संख्या जारी की थी। 2019 में एडीआर ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर 2019 के लोकसभा चुनाव में 347 निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान प्रतिशत और गिने गए वोटों की संख्या के बीच कथित विसंगतियों की जांच की मांग की थी। रिपोर्ट के अनुसार हालाँकि, कम से कम 347 निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान प्रतिशत और गिने गए वोटों की संख्या के बीच विसंगतियां सामने आने के बाद चुनाव आयोग ने अपनी वेबसाइट से लोकसभा चुनाव 2019 का डेटा वापस ले लिया।
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