सुप्रीम कोर्ट मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी की शक्तियों को बरकरार रखने वाले अपने फ़ैसले पर पुनर्विचार करने के लिए सहमत हो गया है। इसके साथ ही इसने केंद्र सरकार को इस मामले में नोटिस जारी किया है। शीर्ष अदालत ने 27 जुलाई के पीएमएलए के फ़ैसले पर दो पहलुओं पर पुनर्विचार करने पर सहमति व्यक्त की - ईसीआईआर की एक प्रति प्रदान नहीं करना, और दोष सिद्ध होने तक निर्दोष होने की अवधारणा को नकारना।
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कांग्रेस नेता कार्ति चिदंबरम द्वारा दायर एक याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया है। इसमें जस्टिस खानविलकर की अगुवाई वाली पीठ द्वारा जुलाई 2022 के प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट यानी पीएमएलए के फ़ैसले की समीक्षा करने की मांग की गई थी।
चिदंबरम द्वारा दायर याचिका में सुप्रीम कोर्ट के 27 जुलाई के उसके फ़ैसले की समीक्षा की मांग की गई थी। इस फ़ैसले में प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट, 2002 के तहत प्रवर्तन निदेशालय को दी गई गिरफ्तारी, कुर्की व तलाशी और जब्ती की शक्ति को बरकरार रखा गया था। इन्हीं प्रावधानों को लेकर आपत्ति जताई गई।
'लाइव लॉ' की रिपोर्ट के अनुसार, सीजेआई एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि प्रथम दृष्टया धन शोधन निवारण अधिनियम यानी पीएमएलए के प्रावधानों को कायम रखने वाले फ़ैसले के दो पहलुओं पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। तीन न्यायाधीशों की इस पीठ ने अंतरिम सुरक्षा देने के अपने आदेश को भी 4 सप्ताह के लिए बढ़ा दिया।
केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिका का विरोध किया। उन्होंने कहा, 'समीक्षा के लिए रिकॉर्ड में साफ़-साफ़ गड़बड़ी होनी चाहिए। और यह एकमात्र अधिनियम नहीं है, बल्कि यह भारत की अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के अनुसार है।'
समीक्षा याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि इस मुद्दे पर पुनर्विचार की ज़रूरत है। उन्होंने कहा, 'फैसले में कहा गया है कि पीएमएलए दंडात्मक कानून नहीं है। इस पर पुनर्विचार करने की ज़रूरत है।'
सीजेआई ने कहा, 'ये दो मुद्दे हैं जिन पर प्रथम दृष्टया हमने पुनर्विचार किया। यही कारण है कि हम इन दो आधारों पर समीक्षा को सीमित कर रहे हैं।' जब सिब्बल ने अपनी बात दोहराई, तो सीजेआई ने कहा, "मेरे भाई सहमत नहीं हैं"। पीठ ने प्रथम दृष्टया मामले को संज्ञान में लेते हुए समीक्षा याचिकाकर्ता को नोटिस जारी किया। पीठ ने याचिकाकर्ता के लिए अंतरिम सुरक्षा को भी चार सप्ताह के लिए बढ़ा दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने 27 जुलाई को ईडी के खिलाफ दायर सभी आपत्तियों को खारिज कर दिया था। इसने पीएमएलए के सभी कड़े प्रावधानों जिसमें जांच करना, तलाशी लेना, संपत्तियों की कुर्की करना, गिरफ्तार करना और जमानत आदि के प्रावधान हैं, इन्हें बरकरार रखा था।
न्यायमूर्ति एएम खानविलकर की अगुवाई वाली बेंच ने यह फ़ैसला सुनाया था। उस बेंच में दिनेश माहेश्वरी और सीटी रविकुमार भी शामिल थे।
इन मामलों में ईडी के अधिकारों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि बिना सुबूत के या सूचना दिए बिना, किसी को भी गिरफ्तार करने की जो ताकत ईडी के पास है वह पूरी तरह असंवैधानिक है। इस मामले में कांग्रेस नेता और सांसद कार्ति चिदंबरम, जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती सहित कई अन्य लोगों ने याचिकाएँ दायर की थी।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में कुल 100 से ज्यादा याचिकाएं दायर की गई थीं। याचिकाकर्ताओं ने अदालत से कहा था कि जांच एजेंसियां पुलिस की ताकत का इस्तेमाल करती हैं इसलिए उन्हें जांच करते समय सीआरपीसी का पालन करने के लिए बाध्य होना चाहिए। क्योंकि ईडी कोई पुलिस एजेंसी नहीं है इसलिए जांच के दौरान किसी अभियुक्त के द्वारा दिए गए बयानों को उसके खिलाफ न्यायिक प्रक्रिया में इस्तेमाल किया जा सकता है और यह किसी भी अभियुक्त को मिले कानूनी अधिकारों के खिलाफ है।
याचिकाओं में कहा गया था कि किसी भी जांच को शुरू करने, गवाह या अभियुक्तों को समन करने, बयानों को दर्ज करने, संपत्तियों को कुर्क करना आदि आजादी के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
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