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चिदंबरम: सुप्रीम कोर्ट के वकील बोले- लोकतंत्र ख़तरे में

चिदंबरम मामले में सुनवाई को लेकर सुप्रीम कोर्ट के कुछ वकीलों के एक समूह ने कहा है कि लोकतंत्र और क़ानून का शासन ख़तरे में है। चिदंबरम की अग्रिम ज़मानत पर सुनवाई के लिए तत्काल लिस्टिंग से सुप्रीम कोर्ट के इनकार करने के विरोध में कुछ वकीलों ने गुरुवार को एक बयान जारी किया है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन से इस संबंध में बयान जारी करने का आग्रह किया है कि वह सुप्रीम कोर्ट के इस इनकार का विरोध करे। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील और पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने बुधवार को आईएनएक्स मीडिया मामले में सीबीआई-ईडी की गिरफ़्तारी से बचने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अग्रिम ज़मानत याचिका लगाई थी और तत्काल सुनवाई की अपील की थी। लेकिन कोर्ट ने तत्काल लिस्टिंग से इनकार कर दिया था और बुधवार शाम को ही चिदंबरम की गिरफ़्तारी हो गई। गुरुवार को सीबीआई कोर्ट ने चिदंबरम को चार दिन की हिरासत में भेज दिया है।

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वकीलों की ओर से जो यह बयान जारी किया गया है इस पर वरिष्ठ वकील चंदर उदय सिंह, जयदीप गुप्ता, हरिन पी रावल, सिद्धार्थ लूथरा, जयंत भूषण, पल्लव शिशोदिया, आर बसंत, मीनाक्षी अरोड़ा, संजय हेगड़े, राजीव धवन सहित सुप्रीम कोर्ट के 140 वकीलों ने हस्ताक्षर किए हैं। क़ानूनी मामलों की रिपोर्टिंग करने वाली वेबसाइट ‘लाइव लॉ’ ने वकीलों के इस बयान को प्रकाशित किया है। इसके अनुसार, बयान में वकीलों ने कहा है, ‘संविधान के संस्थापकों ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि सुप्रीम कोर्ट बार के 40 वर्ष के अनुभव वाले सदस्य, जिसमें से 35 साल वह वरिष्ठ वकील रहे हैं, की तत्काल लिस्टिंग से सुप्रीम कोर्ट इनकार कर सकता है।’

पी. चिदंबरम ख़ुद सुप्रीम कोर्ट के वकील रहे हैं और लंबे समय तक उन्होंने वकालत की है। हालाँकि राजनीति में आने के बाद वह वकालत में उतने सक्रिय नहीं रहे हैं। 

‘लाइव लॉ’ के अनुसार, बयान में कहा गया है कि वकील इस बात से ‘निराश थे कि मामले में एक सुनवाई से भी इनकार कर दिया गया, जबकि व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा के मामलों में माननीय सर्वोच्च न्यायालय बहुत सक्रिय रहा है।’ उन्होंने बयान में लोकतंत्र की स्थिति पर टिप्पणी करते हुए इस बात को साफ़ किया, ‘बार के एक वरिष्ठ सदस्य की अग्रिम ज़मानत के मामले में तत्काल लिस्टिंग से इनकार करने से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि लोकतंत्र और क़ानून का शासन ख़तरे में है’।

सिब्बल ने क्या दी थीं दलीलें?

बता दें कि चिदंबरम की अग्रिम ज़मानत की याचिका की पर तत्काल सुनवाई के लिए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने बुधवार को न्यायमूर्ति रमण के समक्ष दो बार इसका ज़िक्र किया था। एक बार सुबह और दूसरी बार दोपहर 2 बजे। तब सिब्बल ने कोर्ट के सामने कहा था कि सीबीआई ने चिदंबरम के ख़िलाफ़ लुकआउट नोटिस जारी किया है और उन्हें कभी भी गिरफ़्तार कर सकती है। न्यायमूर्ति रमण ने कहा था कि जब तक इसे उचित प्रक्रिया के अनुसार सूचीबद्ध नहीं किया जाता है, तब तक सुनवाई नहीं हो सकती है।

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इसलिए नहीं हुई थी तत्काल लिस्टिंग

चूँकि मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और दूसरे वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस बोबड़े अयोध्या मामले की सुनवाई कर रहे संविधान पीठ में थे, इसलिए पी. चिदंबरम की अग्रिम ज़मानत का मामला अगले उपलब्ध वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस रमण के समक्ष लाया गया था।

जस्टिस रमण ने कहा कि केवल सीजेआई ही मामले की लिस्टिंग के बारे में आदेश पारित कर सकते हैं और सीजेआई के कार्यालय में फ़ाइल भेजी जा सकती है। बाद में सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री ने चिदंबरम के वकीलों को जानकारी दी कि मामला शुक्रवार के लिए सूचीबद्ध है।

जब बुधवार शाम तक सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलती नहीं दिखी तो उन्होंने कांग्रेस मुख्यालय में प्रेस कॉन्फ़्रेंस की और दिल्ली के जोर बाग स्थिति अपने आवास पर चले गए थे। इस प्रेस कॉन्फ़्रेंस के एक घंटे के अंतर ही उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया था। बाद में उन्हें रात को ही सीबीआई हेडक्वार्टर ले जाया गया था।

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चिदंबरम पर क्या हैं आरोप?

आरोप है कि 2007 में वित्त मंत्री रहते हुए चिदंबरम ने अपने बेटे कार्ति चिदंबरम के साथ जुड़ी कंपनियों के माध्यम से मीडिया हाउस से पारस्परिक लाभ लेकर आईएनएक्स मीडिया द्वारा क़रीब 305 करोड़ रुपये के विदेशी प्रत्यक्ष निवेश को मंजूरी दी थी। जबकि विदेशी निवेश के लिए कैबिनेट की आर्थिक मामलों की सलाहकार समिति की इजाज़त लेना ज़रूरी है। इस मामले में सीबीआई ने 15 मई, 2017 को एफ़आईआर दर्ज की थी। 

आरोप यह भी है कि कार्ति ने ही आईएनएक्स मीडिया की प्रमोटर इंद्राणी मुखर्जी और पीटर मुखर्जी को पी. चिदंबरम से मिलवाया था। यह भी आरोप है कि आईएनएक्स मीडिया को विदेशी निवेश की मंज़ूरी दिलाने में कार्ति चिदंबरम ने घूस के तौर पर मोटी रकम ली थी। इस मामले में कार्ति चिदंबरम को गिरफ़्तार भी किया गया था। हालाँकि बाद में उन्हें ज़मानत मिल गई थी। फिर ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज कर जाँच शुरू कर दी थी।

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